विष्णुदेव साय सरकार अपने मंत्री के अधिकार की रक्षा करने में भी असफल
महिला एवं बाल विकास विभाग की सचिव मंत्री के अधिकार क्षेत्र में कर रहीं हस्तक्षेप, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से शिकायत
रायपुर : – प्रदेश की विष्णुदेव साय सरकार अपने मंत्री के अधिकारों का रक्षा करने में भी असफल साबित हो रहे है . विष्णुदेव साय को छत्तीसगढ़ की कमान सम्हाले लगभग दस माह हो गए इस दौरान प्रदेश में कानून व्यवस्था की हालत बद से बत्तर हो गई है वहीं आईएएस अधिकारियों की निरंकुशता इस कदर बढ़ गई है कि हालात यह है आईएएस अधिकारी मंत्री के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप कर अपनी मनमानी कर रहे और सरकार आंखें मुंदे बैठी है . भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी सप्रमाण प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से शिकायत की है कि महिला बाल विकास विभाग की सचिव मंत्री के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप कर अपनी मनमानी कर रही हैं . सत्तारुढ़ पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी के शिकायत के बाद भी अधिकारी उसी विभाग में जमी हुई हैं और मनमानी कर रहें हैं । जिसको लेकर भाजपा नेता ने आईएएस सचिव पर क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर कार्य करने का गंभीर आरोप लगाया है .
सचिव की कार्यप्रणाली पर भाजपा नेता का गंभीर आरोप
प्रदेश में महिला एवं बाल विकास विभाग अपने कारनामों के लिए कुख्यात है . जिसपर भाजपा आरटीआई के प्रदेश संयोजक डॉ. विजय शंकर मिश्रा ने आईएएस महिला बाल विकास में पदस्थ सचिव पर आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री से कार्रवाही किये जाने की मांग की है इस संबंध में डॉ. मिश्रा ने बताया कि महिला बाल विकास में पदस्थ सचिव शम्मी आबिदी छत्तीसगढ़ राज्य में वर्ष 2007 की भारतीय प्रशासनिक सेवा की अधिकारी हैं इन्हें 17 वर्षों की भारतीय प्रशासनिक सेवा के अनुभव के बाद भी नियम कानूनों का कोई ज्ञान नहीं है, एवं वे मनमाने ढंग से अनाधिकृत ढंग से अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर कार्य संपन्न कर रही है जिसके दस्तावेज सप्रमाण शिकायत की गई है .
उपसंचालक ने मांगा वीआरएस सचिव ने ही कर दिया अस्वीकृत : –
डॉ. मिश्रा ने शिकायत में बताया कि महिला एवं बाल विकास विभाग में कार्यरत एक उप संचालक रामजतन कुशवाहा द्वारा दिनांक 03 जनवरी 2024 को विधिवत छत्तीसगढ़ सिविल सेवा पेंशन नियम 1976 के नियम 42 के तहत निर्धारित प्रारूप कमांक 28 में भरकर एक आवेदन पत्र प्रस्तुत करके लगभग 07 माह उपरांत की आशायित तिथि 31 जुलाई 2024 से स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति हेतु आवेदन पत्र प्रस्तुत किया गया था . जिसे छत्तीसगढ़ सिविल सेवा पेंशन नियम 1976 के नियम 42 के अनुसार दिनांक 31 जुलाई 2024 से रामजतन कुशवाहा स्वतः सेवानिवृत्त कर दिया जाना चाहिए था साथ ही रामजतन कुशवाहा द्वारा 31 जुलाई 2024 तक स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति हेतु प्रस्तुत किया गया आवेदन दिनांक 03 जनवरी 2024 वापस भी नहीं लिया गया
उक्त मामले में प्रकरण की नस्ती में कोई जाँच/मांग लंबित न होने का लेख कर नस्ती प्रशासकीय अनुमोदन हेतु 19 फरवरी 2024 को आईएएस सचिव शम्मी आबिदी को प्रस्तुत की गई, जिस पर दिनांक 20 फरवरी 2024 को शम्मी आबिदी ने “चर्चा करें” लिखकर नस्ती वापस कर दी एवं मौखिक निर्देश दिये कि नस्ती लंबित रखी जाये . नस्ती में न तो महिला एवं बाल विकास विभाग की भारसाधक मंत्री जी से कोई प्रशासकीय अनुमोदन लिया गया और न ही रामजतन कुशवाहा द्वारा दिनांक 31 जुलाई जुलाई 2024 आवेदन वापस लिया गया । दस्तावेजों के अनुसार आईएएस सचिव शम्मी आबिदी ने मौखिक निर्देश देकर आवेदन को अस्वीकृत करने का पत्र जारी करने को कह दिया दिनांक 12 अगस्त 2024 को संयुक्त सचिव ने अपने स्तर से पत्र दिनांक 12.08.2024 जारी कर आवेदन अस्वीकृत कर दिया जबकि नियमतः यह घोर अनाधिकृत कार्रवाही है जो आईएएस ने अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर किया है .
विभागीय मंत्री को अंधेरे में रखकर दिया मौखिक आदेश : –
आईएएस सचिव शम्मी आबिदी ने विभाग के भारसाधक सचिव की हैसियत से ये अधिकार प्राप्त नहीं था कि वे स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का आवेदन स्वीकृत या अस्वीकृत करें ये अधिकार पूरी तरह से प्रशासकीय विभाग की भारसाधक मंत्री को है इस तरह आईएएस सचिव शम्मी आबिदी ने पूरी तरह अनाधिकृत तरीके से अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर विभागीय मंत्री की शक्तियों का अतिक्रमण कर स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का आवेदन अस्वीकृत किया .
रामजतन कुशवाहा के आवेदन को शम्मी आबिदी को नस्ती में प्रथम बार प्रस्तुत करने के उपरांत नस्ती विधिवत जावक होकर उनके पास जाती रही, परंतु उन्होंने नस्ती को वापस लौटाकर सम्पूर्ण कार्यवाही मौखिक रूप से संपन्न करवाई . उनका यह कृत्य मंत्रालयीन कार्य प्रकिया के पूरी तरह से विपरीत है . शम्मी आबिदी ने रामजतन कुशवाहा की आशायित तिथि 31 जुलाई 2024 के उपरांत भी उनसे कार्य लिया और इस सम्पूर्ण कार्यवाही से विभागीय मंत्री को अंधेरे में रखकर किया गया उन्होंने नस्ती एक भी बार विभाग की भारसाधक मंत्री को निर्णय के लिए प्रस्तुत नहीं किया .
इससे यह प्रतीत होता है कि इन्हें नियम, निर्देशों का कोई ज्ञान नहीं है अथवा ज्ञान होने की दशा में भी वे नियम, निर्देशों को पूरी तरह अनदेखा कर मनमाने ढंग से शासन चला रही है इस घोर अनाधिकृत कृत्य के लिए शाशन को चाहिए कि उक्त अधिकारी को तत्काल शासकीय सेवा से पृथक कर रामजतन कुशवाहा के प्रकरण में वीहित प्रकिया का पालन न होने की वजह से प्रकरण को पुनः निर्णय हेतु विभाग की भारसाधक मंत्री को प्रस्तुत किया जाना चाहिये .