एक अफसर के नवाचार ने बदल दी मितानिनों और आशा कार्यकर्ताओ की तकदीर , खिल उठे चहरे

एक अफसर के नवाचार ने बदल दी मितानिनों और आशा कार्यकर्ताओ की तकदीर , खिल उठे चेहरे
रायपुर : – कहते है जहाँ चाह वहाँ राह इसी तर्ज पर एक अफसर के नवाचार की मेहनत रंग लाई और इस नवाचार से मितानिनों और आशा मितानिनों की तकदीर बदल गई . गांव-गांव और घर-घर जाकर लोगों की सेहत की निगरानी कर दवाईयां वितरण करने वाली मितानिनों और आशा मितानिनों को अब मानदेय जैसी जरूरतों के लिए दफ़्तरों का चक्कर काटना नहीं पड़ रहा है . प्रदेश सरकार ने इस नवाचार का नाम नवा सौगात दिया , जिसके तहत मितानिनों के डारेक्ट खाते में अब मानदेय आना शुरू हो गई है .
ग्रामीण स्वास्थ्य की रीढ़ है आशा कार्यकर्ता : –
ग्रामीण अंचल क्षेत्रो में जहाँ आज भी स्वास्थ्य का अभाव है वहाँ यह आशा कार्यकर्ता ग्रामीण क्षेत्रो के लिए वरदान बन गई है . बता दे कि 2003-4 में ग्रामीण गर्भवती स्त्री की गर्भधारण के समय सह्योगिनी के रूप में संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने एवं जच्चा बच्चा की देखभाल करने के उद्देश्य के इसकी शुरुआत की गई थी . इसके बाद यही मितानिन राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन 2005 के राष्ट्रीय स्तर पर लांच होने के बाद आशा कार्यकर्ता संपूर्ण भारत में ग्रामीण स्वास्थ्य की रीढ़ बनकर उभरी है . इन आशा कार्यकर्ता को मिलने वाला मानदेय की व्यवस्था अलग रूप और राज्यो के हिसाब से अलग अलग की गई है जहाँ छत्तीसग़ढ़ राज्य में मानदेय भुगतान की व्यवस्था बताती है कि राज्य में आशा मितानिनों और ग्रामीण स्वास्थ्य सुधार के लिए सरकार कितनी सजक है .जिस प्रकार मनरेगा में श्रमिकों का भुगतान राज्य से सीधे किसी श्रमिक के बैंक खाते में जा रहा था वैसा पहले मितानिन के मामले में नहीं हो पा रहा था , ब्लॉक में पैसा जाने के बाद उस ब्लॉक से संबंधित सभी मितानिनों को एक साथ भुगतान किया जा रह था .
6-6 महीने का भटकाव न मेसेज मिलता न जानकारी : –
उक्त मसले में यह देखा गया कि 150 से ज्यादा ब्लॉक्स (विकासखंड) में मितानिनो को प्रति माह भुगतान न मिलकर साधारणतः दो महीने में एक बार या तीन महीने एक बार पैसा मिल पा रहा था . कई कई ब्लॉको में स्थिति यह थी कि मितानिनों के भुगतान का पैसा अन्य कार्यो में भुगतान ( स्वास्थ्य व्यवस्था में दवाई , उपकरण) में इस्तेमाल हो जाने से 6 महीने तक भी भुगतान नहीं हो पाता था . साथ ही साथ खाते में पैसा आने पर यह पता नहीं चल पाता था कि किसी मितानीन को उसे मिलने वाली तीन प्रकार की राशि में से कौन से प्रकार में कितना पैसा किस महीने में मिला है क्योंकि किसी मितानिन को इसके संदर्भ में कोई NIC या मोबाइल से मैसेज नहीं मिलता था .
पैसा मिला सायं सायं : –
प्रदेश में जब सत्ता बदली विष्णु की सुशासन की सरकार ने वर्ष 2025 में नवा सौगात का कार्यक्रम आयोजित किया . इस कार्यक्रम की सोच एक अधिकारी के अथक प्रयास का परिणाम है कि आज राज्य की 70 हजार से अधिक मितानिनों को राज्य स्तर से सीधे उनके खाते में पैसा दिया जाना शुरू हुआ , मितानिनों ने इस “पैसा मिलेगा सायं सायं ” की व्यवस्था के लिए मुख्यमंत्री को सहृदय धन्यवाद भी ज्ञापित किया .
कौन है वह अधिकारी : –
राज्य में कोई भी अच्छा कार्य या नवाचार से सरकार की प्रशंसा होती है मगर इसे परिलाक्षित करने का कार्य अधिकारी का होता है बता दे इस सोच को मूर्त रूप देने का कार्य किया है वर्ष 2013 बैच के आईएएस जगदीश सोनकर ने जगदीश तत्कालीन लोक स्वास्थ्य कल्याण विभाग के एमडी थे . उनकी दूरदर्शी सोच का निचोड़ यह निकला कि आज जो महिलाएं स्वास्थ्य की सजक प्रहरी जिन्हें आशा कार्यकर्ता कहा जाता है उन्हें समय पर और उनके खाते में मानदेय की राशि पहुँचाई जाने लगी . एक आईएएस अधिकारी की धरातली सोच का यह बेहतरीन सोच का नमूना जिसकी सराहना खुले दिल से की जा रही है .
SMS एलर्ट से मिलेगी हर भुगतान की जानकारी : –
उल्लेखनीय है कि बिल गेट्स जब बिहार राज्य में आना हुआ तब बिहार में इस समस्या को तत्कालीन मुख्यमंत्री को आशा कार्यकर्ताओं की बेहतर व्यवस्था के लिए निवेदन किया था तब ऐसी भुगतान की व्यवस्था बन पाई थी , अभी भी भारत के कुछ गिने चुने राज्य ही है जहाँ राज्य स्तर से सीधे आशा कार्यकर्ता को भुगतान किया जा रहा है . संभवतः छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है जहाँ भुगतान प्राप्त होने के बाद SMS अलर्ट की व्यवस्था भी की गई है जिस मैसेज में मितानिन को यह भी पता चल जाता है कि उसे किस महीने किस मद में कौन सी राशि प्राप्त हुई है .
महतारी वंदन की तरह बदल रही आशा कार्यकर्ताओं की तकदीर
महतारी वंदन में जिस प्रकार 12000 रुपए की राशि मिलने से प्रदेश की महिलाओं का उद्धार हुआ है , लाडली लक्ष्मी की राशि कई राज्यों में सरकार के कार्यो के मूल्यांकन शीट का हिस्सा है , वैसे ही 70 हजार से अधिक आशा कार्यकर्ताओ को कवर करने की दृष्टि से एवं प्रति महिला प्रतिमाह छह से साढ़े छह हजार के औसत मानदेय प्राप्ति की व्यवस्था से सरकार की सकारात्मक सोच और आशा कार्यकर्ताओं की संवेदनाओं को समझते हुए इस पहल से निश्चित ही इनकी तकदीर बदल रही है . अब यह महिलाओ को निश्चित समय और सम्पूर्ण भुगतान हो रहा है जिससे आशा कार्यकताओं के चेहरे खिल उठे है .