कथा यदि जीवन को न जोड़े तो उसकी प्रासंगिगता कठिन हो जाती है – मैथिलीशरण भाई जी

00 जो व्यक्ति गुण और दोष को अलग करके देखता है वो अभिव्यक्ति है
रायपुर। रोज रामायण पढ़ते है और रोज नया अर्थ समझते है। कोई दिन ऐसा नहीं है किसी चौपाई में, जो कंठस्थ है उनमे भी मिलता है और याद की जाती है उनमें भी मिलता है। भगवान राम ने जन्म से लेकर और राम राज्य तक कोई भी कार्य अपने स्वयं निर्णय लेकर नहीं किया। या तो गुरुदेव ने कहा या पिताजी ने कहा, या हनुमान जी ने कहा या सीताजी ने कहा या किसी ने नहीं कहा इसको करना है तो उससे पूछा कि इसको कैसे करना है। कथा यदि जीवन को न जोड़े तो कथा की जो बात है जो वास्तविक वर्तमान स्वरुप है उसकी प्रासंगिगता लगा पाना कठिन हो जाएगी। सुअवसर का पता हमें कई बार नहीं होता है, जब जनक जी महाराज ने अवसर देखा तब सीताजी को बुलवाया। मन, वचन और कर्म से चतुराई को जो छोड़ देगा और भगवान का भजन करेगा उसके ऊपर भगवान कृपा करेंगे। सखियां चतुर है, जो मन, कर्म और वचन की चतुराई का उपयोग ंसंसार के लिए करते है उनके लिए चतुराई घातक है। लेकिन जो लोग मन, कर्म और वचन से चतुराई का उपयोग भगवान के लिए करते है, श्री किशोरी जी के लिए करते है वो चतुराई भी धन्य हो जाती है। जितने दोष है उतने दोष संसार में चाहे लोभ, लालच, काम, क्रोध हो ये सारे दोष रामचरित्र मानस में भक्ति के उपादान ही बताए गए है। भगवान के सबसे बड़े भक्त है हनुमान और भरत जी उन्होंने जो भगवान के चरणों में अपने आप को समर्पित कर दिया। जैसे कमल के पुष्प के ऊपर या किसी और पुष्प के ऊपर मंडरा करके अपने ढंग उसमें डालकर के उनके मकरंद के रस का पान करता है तो ऐसे लोभी भंंवरा कौन है क्योंकि भरत जी का मन लोभी भंवरा का था।

कथा यदि जीवन को न जोड़े तो उसकी प्रासंगिगता कठिन हो जाती है-मैथिलीशरण भाई जी मैक आडिटोरियम में कथा सत्संग में मैथिलीशरण भाई जी श्रद्दालुओं को बताया कि लोभ की आलोचना तो बहुत होती है, लोभी व्यक्ति को ऐसा नही करना चाहिए। संसार में जो दोष है उन्हीं दोषों का उपयोग और प्रयोग यदि भगवत दृष्टि से कर दिया जाए तो दोष गुण हो जाता है। भगवन राम ने भरत जी से कहा भी था कि गुण और दोष अनेक होते है, लेकिन गुण और दोष को अलग करके मत देखो। शब्द को सुना जाता है, उसके मकरंद को ग्रहण किया जाता है और जिस मकरंद को भरतजी ने भगवान राम के चरणो पीते है उस मकरंद को आज अपने मुख से कांध पीला रहे है। गुण और दोष अलग-अलग पदार्थ नहीं है क्योंकि होता सिर्फ गुण है, जब गुण का दुरुपयोग किया जाता है तब उसका नाम दोष पड़ जाता है। श्रुति वेद का एक नाम है और श्रुति कान का भी नाम है तो श्रुति बनती कैसी है। जब तक कोई अंग अपना कार्य नहीं करेगा जिस प्रकार मशीन अपना कार्य करती है उसके गुण के अनुसार उसका नाम डाला जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि जब वाणी कान में जाती है तब श्रुति बनती है, श्रुति बाद में हुई कि वाणी पहले हुई। क्योंकि श्रुति तभी तो बनी जब सुनी गई।

कथा यदि जीवन को न जोड़े तो उसकी प्रासंगिगता कठिन हो जाती है-मैथिलीशरण भाई जी

भले ही हमने और आप ने नहीं सुना लेकिन सत्पऋषियों ने इसे सुना या जिन महापुरुषों ने इसको सुना उसका नाम वेद पड़ गया। वेद पहले लिखे नहीं गए पढ़े गए। उसी का अभियंस, स्वरुप और नाम एक है आकाशवाणी। आकाश से जो वाणी होती है उसका नाम है तत्पदार्थ, जिसमे कोई व्यक्ति सामने दिखाई नही देता है, लेकिन होती है इसलिए सुनाई जिसको देती है वह होती है। कहीं-कहीं सबको सुनाई देती है और कहीं कहीं किसी को सुनाई देती है किसी को नहीं। क्योंकि जिस अमृत या मकरंद को भरतजी भगवान राम के चरणों में अपनी मति लगाकरके पान करते है, आज भगवान अपनी वाणी से भरत जी अपनी श्रुति से सुना रहे है। भरत श्रुति है वह क्यों है, भरत श्रुति इसलिए है कि वह धर्म के योद्धा है। रायपुर के श्रोताओ से महाराज जी ने कहा कि आपकी आँखों से हमने कथा को निकाला है। आपके जीवन से हमने आचरण सीखा है। इसके दो अर्थ है – क्या करना चाहिए यह भी सीखा और क्या नहीं करना चाहिए यह भी सीखा और हमसे भी आप दोनों सीखिएगा।

कथा यदि जीवन को न जोड़े तो उसकी प्रासंगिगता कठिन हो जाती है-मैथिलीशरण भाई जी भाईजी ने कहा कि जो व्यक्ति गुण और दोष को अलग करके देखता है वो अभिव्यक्ति है। पदार्थ का निर्माण तब होगा जब विरोधी पक्ष उसको ग्रहण ना करें। सबसे पहले विरोध को स्वीकार करना सीख लीजिए और जो व्यक्ति यह सोचें कि हमारा कोई विरोध न करें, सब समर्थन करें, वह व्यक्ति जीवन मानसिक रोगी हो जाएगा। जिन लोगों को नींदें कम आती है, वह वही लोग होते है जो प्रशंसा की इच्छा करते है और सच्ची निंदा करते है तो वह नाराज हो जाते है। झूठी निंदा या प्रशंसा की जाए तो वह प्रसंन्न हो जाते है। इसका तात्पर्य यह है कि वह सत्य और झूठ को जानता ही नहीं है। सामने बैठकर के घड़ी और मोबाइल देखना खतरनाक चीज है,उसका कारण क्या है मुझे शॉर्ट सर्किट होता है। जब दो तारें मिल जाती है जो रौशनी है उससे कहीं ज्यादा रौशनी होने लगती है। लेकिन वह क्षणिक होती है। उसका कारण क्या है हम घूसकरके बोल रहे है और आप बाहर निकाल रहे है।

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