सुविधाओ के कमीं से झुझता जिला अस्पताल , कलेक्टर कार्यालय के सामने यह हाल , मुख्यमंत्री भी मानते है रेफर सेंटर मगर हालात जस के तस ,

गौरेला – पेण्ड्रा – मरवाही : – गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले की स्थापना के बाद आज तक जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था में कोई खास बदलाव देखने को नहीं आया है। 3 लाख 36 हजार 421 लोगों की जनसंख्या वाले इस गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले में तीन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र 15 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 75 उप स्वास्थ्य केंद्र हैं। जहां जिला बनने के बाद लोगों को उम्मीद थी कि स्वास्थ्य व्यवस्था सुधरेगी लेकिन इसका कोई खास असर देखने को नहीं मिल रहा है एक तरफ जहां 50 बिस्तर के मातृ शिशु अस्पताल को जिला अस्पताल में बदल तो दिया गया पर आज भी मरीजों को स्वास्थ्य सुविधा के लाभ के लिए प्राइवेट अस्पतालों या अन्य जिलों के भरोसे रहना पड़ता है।
जबकि जिला बनने के दो साल बाद भी गर्भवती महिलाओं और इनके आपातकालीन प्रसव को लेकर सुविधाओं में कमी आज भी बनी हुई है मरीजो और परिजनों का कहना है कि गर्भवती महिलाओं को नौवें माह पूर्ण होने के बाद प्रसव या ऑपरेशन संबंधित सुविधाओं का जिला अस्पताल में न होने का हवाला देकर या तो बिलासपुर रेफर कर दिया जाता या किसी अन्य निजी अस्पताल में इलाज कराने की सलाह दे दी जाती है जो आर्थिक रूप से तकलीफ़ देह हो जाता है चूंकि जिले से बिलासपुर की दूरी लगभग 100 किलोमीटर है ऐसे में आपात स्थिति के मरीजों को जान पर बन आती है .
वही जिला प्रबंधन से इस बारे में जानकारी ली गयी तो उन्होंने बताया कि अन्य जिला अस्पतालों के जैसे यहाँ भी उतनी ही चिकित्सा सुविधा उपलब्ध है आपातकालीन सुविधा चौबीसों घँटे चालू रहती है बहुत क्रिटिकल होता है तभी मरीज को बिलासपुर भेजा जाता है कुछ स्टाफ को नोटिस भी दिया गया है लापरवाही बरतने के लिए तब सवाल यह उठता है कि जब जिला अस्पताल में सर्व सुविधाएं है फिर भी आज जिला अस्पताल रिफर सेंटर क्यो है .
जिला अस्पताल जिसे सेनेटोरियम के नाम से भी जाना जाता है यह वही अस्पताल है जहाँ नोबेल पुरस्कार विजेता रविन्द्रनाथ टैगोर अपनी बीमार पत्नी बीनू को लेकर यहाँ टीबी रोग का इलाज कराने आये थे
यही नही दो माह पहले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जब जिले के दौरे पर आए थे तो उन्होंने ने भी जिला अस्पताल को रेफर सेंटर कहा था कमियों और शिकायतों का भी जिक्र भी किया था मगर इसके बाद भी जिला अस्पताल की शिकायतों की अम्बार लगा हुआ है
आपको बता दे यह मंजर जिला कलेक्टर कार्यालय के सामने का है जब जिले के उच्चाधिकारियों के नाक के नीचे के यह हालात है तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि ग्रामीण क्षेत्रो में प्राथमिक और उपस्वास्थ्य केंद्रों का क्या हाल होगा , जबकिं क्षेत्रवासियो की एक उम्मीद थी जिला बनने के बाद कम से उन्हें जिले में ही समुचित स्वास्थ सुविधाएं मिलेंगी मगर आज दो वर्ष बाद भी यही हालात बने हुए है और लोग इलाज के अभाव में दर दर भटकने को मजबूर है .