संगीन मामलों में घिरे संचालक चौबे , खुद ही न्यायाधीश बनकर सुशासन के प्रशासन का बना रहे मजाक

संगीन मामलों में घिरे संचालक चौबे , खुद ही न्यायाधीश बनकर सुशासन के प्रशासन का बना रहे मजाक

रायपुर : – राज्य संसाधन केंद्र के संचालक सुरेंद्र चौबे के विवादित कारनामें सुर्खियां बटोर रहे है जहाँ यह अधिकारी नियम कानून को धता बताते हुए अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर मनमानी करते हुए नजर आ रहे है . यह इस विभाग में इस कदर पैठ जमा चुके है कि अब इन्हें लगने लगा है कि यह सरकार और शासन से ऊपर हो चुके है तब तो खुलेआम नियमो की धज्जियां उड़ा रहे है .

सेवानिवृत अधिकारी को बताया अपराधी :-

महिला एवं बाल विकास विभाग के कुछ अधिकारियों के अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर काम करने के बेहद संगीन मामले सामने आ रहे हैं . ऐसे ही एक मामले में सुरेंद्र चौबे संचालक राज्य स्तरीय संसाधन केंद्र ने सूचना के अधिकार में अपीलीय अधिकारी की हैसियत से एक आदेश पारित करते हुए सेवानिवृत अधिकारी उमाकांत तिवारी को लिखित में अपराधी घोषित कर दिया है .

क्या है पूरा मामला

पूरा मामला ये है कि उमाकांत तिवारी सेवानिवृत अधिकारी ने दिनांक 8 जून 2023 को राज्य संसाधन केंद्र में सूचना के अधिकार के अंतर्गत एक आवेदन प्रस्तुत किया . जिसमे उन्होंने 1 जनवरी 2017 से 31 दिसम्बर 2022 तक की संचालक द्वारा उपयोग में लाये गए शासकीय वाहन की लॉगबुक की सत्यापित प्रति की मांग की . इस मांग पर जनसूचना अधिकारी ने दिनांक 14 जुलाई 2023 को पत्रोत्तर देते हुए लेख किया कि भंडार शाखा में उक्त जानकारी उपलब्ध नहीं है .

जन सूचना अधिकारी ने यह भी लेख किया कि उन्होंने संचालक यानी सुरेंद्र चौबे को भी नोटशीट भेजकर जानकारी चाही पर पत्रोत्तर देने के दिनांक तक नोटशीट का कोई उत्तर प्राप्त ना होने से वे जानकारी देने में असमर्थ नजर आए . इस पत्रोत्तर के उपरांत नियत समयावधि में दिनांक 29 जुलाई 2023 को उमाकांत तिवारी ने अपीलीय अधिकारी के समक्ष अपील स्वीकार कर जानकारी प्रदान करने का आवेदन पत्र प्रस्तुत किया . अपीलीय अधिकारी के रूप में सुरेंद्र चौबे ने स्वयं से सम्बद्ध प्रकरण स्वयं ही सुनने का निर्णय लेकर उमाकांत तिवारी को पत्र दिनांक 28 अगस्त 2023 द्वारा 4 सितंबर को उपस्थित होने का लेख किया . इस पत्र पर उमाकांत तिवारी द्वारा मुख्यतः दो गम्भीर आपत्ति दर्ज की गई .

प्रथम ये की जिस वाहन का उपयोग संचालक स्वयं कर रहे हैं और उन्हें जनसूचना अधिकारी ने नोटशीट भेजकर लॉग बुक की मांग की है उसमें वे स्वयं डीम्ड जनसूचना अधिकारी हो गए हैं और वे इस कारण से अपील नहीं सुन सकते हैं .

दूसरा यह कि चूंकि जिस वाहन की लॉग बुक चाही गई है उसका उपयोग वे स्वयं कर रहे हैं और न्याय शास्त्र के मूलभूत सिद्धांत अनुसार कोई भी अपने प्रकरण में न्यायाधीश नहीं हो सकता है . उमाकांत तिवारी द्वारा इन आपत्तियों के साथ अधिनियम के अनुसार कार्यवाही करने का आवेदन किया .

उमाकांत तिवारी के इस आवेदन की अंतर्निहित गंभीर कानूनी आपत्तियों को दरकिनार कर सुरेंद्र चौबे ने अपना प्रकरण खुद ही अपीलीय अधिकारी के रूप में बिना आवेदक की उपस्थिति के एकपक्षीय रूप से सुन लिया और एक आदेश दिनांक 4 सितंबर 2023 पारित कर उमाकांत तिवारी को एक आपराधिक समूह का सदस्य लिखित रूप से घोषित कर उनकी अपील खरिज कर दी और तो और सुरेंद्र चौबे ने यहाँ तक लिख डाला कि लॉग बुक की कॉपी देने से उनकी यानी सुरेंद्र चौबे के जीवन और शारीरिक सुरक्षा को खतरा है . सुरेंद्र चौबे ने अपने अपीलीय आदेश में उमाकांत तिवारी को तीन बार आपराधिक षड्यंत्र रचने वाले व्यक्ति के रूप में आदेश में लिखित उल्लेख किया है उनकी अपील भी स्वयं ही खारिज कर दिया है .

कैसे कानून कि धज्जियाँ उड़ा रहे सुरेंद्र चौबे : –

देशभक्ति का चोला ओढ़े कथित रूप से स्वयं को नियम कानून से चलने वाले अधिकारी के रूप में दर्शाने वाले सुरेंद्र चौबे ने इस प्रकरण में कानून की खुली धज्जियां उड़ाई है जैसे :-

1 : – सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत डीम्ड जन सूचना अधिकारी होने के नाते वे अपनी अपील स्वयं सुन ही नहीं सकते थे इस प्रकरण में उन्हें तत्काल अपने नियंत्रणकर्ता अधिकारी संचालक महिला एवं बाल विकास को पत्र लिखकर प्रकरण विशेष के लिये स्वतंत्र अपीलीय अधिकारी नियुक्त करवाना था जो कि नहीं किया गया .

2 : – जब जन सूचना अधिकारी ने उन्हें नोटशीट भेजकर लॉग बुक की जानकारी मांगी थी तो उसी समय जन सूचना अधिकारी के समक्ष अपनी आपत्ति प्रस्तुत करनी थी कि ये जानकारी देने से उनके जीवन व शारीरिक सुरक्षा को खतरा है . इसके बाद जन सूचना अधिकारी को यह निर्णय लेना था कि सूचना प्रकट की जाए अथवा नहीं । लेकिन ऐसा न करते हुए उन्होंने नोटशीट का कोई उत्तर ही नहीं दिया ।

3 : – इस प्रकरण में सुरेंद्र चौबे के द्वारा संचालक राज्य संसाधन केंद्र की हैसियत से उपयोग किये जा रहे वाहन की लॉग बुक मांगी गई थी । इसलिये बिना किसी सन्देह के वे प्रभावित पक्षकार थे । न्याय के मौलिक सिद्धान्तों के अनुसार कोई भी प्रभावित पक्षकार अपने विरुद्ध खड़े दूसरे पक्षकर के बारे में निर्णयकारी भूमिका में कतई नहीं हो सकता है । जबकि सुरेंद्र चौबे ने न्याय के सिद्धान्त की खुली धज्जियां उड़ाकर अपने ही पक्ष में निर्णय दे डाला ।

4 : – उमाकांत तिवारी ने अपील के निर्णय के पूर्व ही एक अभ्यावेदन देकर स्वयं के प्रकरण में स्वयं निर्णय लेने पर वैधानिक आपत्ति दर्ज करवा दी थी । इस अभ्यावेदन की आपत्तियों पर कोई भी निराकरण या सुसंगत तर्क सहित निर्णय का उल्लेख सुरेंद्र चौबे ने अपने आदेश दिनांक 4 सितंबर 2023 में नहीं किया जबकि अपीलीय अधिकारी को अपील के सम्बंध में प्राप्त सभी अभ्यावेदनों व आपत्तियों के निराकरण का स्पष्ट बोलता हुआ आदेश अपने विनिश्चय से पारित निर्णय में करना अनिवार्य है ।

5 :- अपीलीय अधिकारी से केवल दो बिंदुओं पर निर्णय देना अपेक्षित होता है ,पहला जन सूचना अधिकारी द्वारा सूचना प्रकट न करना उचित है या अनुचित और दूसरा यदि सूचना दी जाए तो निशुल्क दी जाए या सशुल्क दी जाए । इस प्रकरण में सुरेंद्र चौबे ने जन सूचना अधिकारी के निर्णय पर कोई टिप्पणी की ही नहीं है बल्कि उसे पूरी तरह नजरअंदाज करके उमाकांत तिवारी को आपराधिक प्रवृत्ति का घोषित करते हुए सूचना प्रकट करने से इंकार कर दिया है ,जो कि बेहद ही आश्चर्जनक है ।

6 : – अपीलीय प्रकरण का निराकरण करते समय जन सूचना अधिकारी की उपस्थिति अनिवार्य है । इस अपील के निराकरण के आदेश दिनांक 4 सितंबर में जन सूचना अधिकारी उपस्थित थे या नहीं इसका कोई उल्लेख ही नहीं है । यहाँ तक कि जिस पत्र क्रमांक 1603 दिनांक 28-8-2023 द्वारा आवेदक उमाकांत तिवारी को आहूत किया गया है उसकी प्रतिलिपि भी जन सूचना अधिकारी को नहीं दी गई ।

7 : – लॉग बुक की प्रति देने से किस तरह का जीवन को और शरीर को खतरा हो सकता है ये समझ से परे है । वो भी वर्ष 2023 में बीते छह वर्षों की लॉग बुक से जीवन को क्या खतरा है ? किसके जीवन को खतरा है ? शासकीय वाहन के रिकार्ड से कोई शातिर अपराधी भी किसी अधिकारी को क्या नुकसान पंहुचा सकता है ? ये तर्क भारी हास्यास्पद प्रतीत हो रहे हैं ।

8 :- अपील आदेश दिनांक 4 सितंबर 2023 में सुरेंद्र चौबे ने स्वयं स्वीकार किया है कि उमाकांत तिवारी की किसी जांच में वे जांच दल में हैं । ऐसी परिस्थिति में सुरेंद्र चौबे को तुरंत जन सूचना अधिकारी के समक्ष अपना पक्ष रखना चाहिए था जबकि उन्होंने जन सूचना अधिकारी के समक्ष कोई पक्ष नहीं रखा और ना ही पारित आदेश में उनका उल्लेख है । इससे पता चलता है कि वे पहले ही शायद ये मानसिकता बना चुके थे कि इस प्रकरण को बाहर नहीं जाने देना है और खुद ही सुनकर निपटारा अपने ही पक्ष में करना है ।

क्रिमिनल कोर्ट के पावर इस्तेमाल किये सुरेंद्र चौबे

किसी व्यक्ति को आपराधिक षड्यंत्र करने या आपराधिक षड्यंत्र में शामिल होने या आपराधिक समूहों या समूह के सदस्य होने का फैसला सुनाना केवल और केवल जिला एवं सत्र न्यायाधीश को होता है । ये फैसला भी सबूतों ,गवाहों ,साक्ष्यों और उभय पक्षों की पूरी सुनवाई के बाद दिया जाता है । सुरेंद्र चौबे द्वारा पारित लिखित आदेश दिनांक 4 सितंबर 2023 में उमाकांत तिवारी को अनेको बार आपराधिक षड्यंत्र रचने वाले व आपराधिक समूह का सदस्य होने वाला घोषित किया गया है । आदेश में अपील खारिज करने जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया है जबकि सूचना के अधिकार में अपील निराकृत करने जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है । उमाकांत तिवारी को सुरेंद्र चौबे ने बैर भाववश कार्यवाही करने का भी लेख किया है और पर्याप्त दस्तावेजी साक्ष्य उपलब्ध होने का भी लेख किया है न्यायालयीन प्रकिया में इन सभी को स्पष्ट प्रदर्शों के रूप में ही मान्य किया जाता है ।

उक्त मामले की जांच पड़ताल करने पर पता चला है कि सुरेंद्र चौबे ने इससे पूर्व कभी भी उमाकांत तिवारी से जीवन व शरीर की सुरक्षा को खतरा होने की कोई पुलिस रिपोर्ट दर्ज नहीं करवाई है । सुरेंद्र चौबे के उपरोक्त सभी कृत्य जिला एवं सत्र न्यायालय के न्यायाधीश के अधिकार इस्तेमाल करने की श्रेणी में प्रतीत हो रहे हैं ।

सुधि पाठकों के लिए प्रकरण में प्रथम आवेदन से लेकर अंतिम आदेश तक हम जस का तस इस समाचार के साथ दे रहे हैं ।

विभाग को चाहिए कि ऐसे विभागीय अधिकारी के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करते हुए उनके विरुद्ध आपराधिक प्रकरण दर्ज कराना चाहिये जो कि न केवल अपने लिए लागू आचरण संहिता की खुले आम धज्जियां उड़ा रहे हैं बल्कि अधिकारी की जगह खुद को न्यायाधीश समझकर सुशासन के प्रशासन को भी मजाक बना रहे हैं

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