छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग के वैधानिकता और विश्वसनीयता पर उठ रहे सवाल ,15 अक्टूबर से राज्य प्रशासनिक सेवा के 703 अभ्यर्थियों का होना है साक्षात्कार

  1. छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग के वैधानिकता और विश्वसनीयता पर उठ रहे सवाल
  2. 15 अक्टूबर से राज्य प्रशासनिक सेवा के 703 अभ्यर्थियों का होना है साक्षात्कार

रायपुर : – विपक्ष में रहते हुए भाजपा छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग में व्याप्त भ्रष्टाचार और अव्यवस्था को लेकर सड़क से लेकर सदन तक आंदोलन करके सत्ता में वापस लौटी है और अब उसी के वैधानिकता और विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे हैं। छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग द्वारा राज्य प्रशासनिक सेवा के विभिन्न पदों के लिए 703 अभ्यर्थियों का 15 अक्टूबर को साक्षात्कार होना है। साक्षात्कार से लगभग एक सप्ताह पूर्व छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग के वैधानिकता पर सवाल उठना एक गंभीर संकट है ।
जानकारों के मुताबिक वर्तमान में कार्यरत छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग का गठन असंवैधानिक है तो इस आयोग के द्वारा लिये गये निर्णय क्या संविधान और कानून सम्मत है ?

आइये जानते हैं कि छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग कैसे पिछ्ले एक साल से असंवैधानिक तरीके से काम कर रही है। संविधान के अनुच्छेद 316(1) के तहत राज्यपाल के द्वारा राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ती की जाती है। संविधान के अनुसार लोक सेवा आयोग के लिए नियुक्त आधे से अधिक सदस्यों को भारत सरकार या राज्य सरकार में कार्य करने का कम से कम 10 साल का अनुभव (कार्यरत या अवकाश प्राप्त ) होना चाहिए । छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग में वर्तमान मे 5 पदों की व्यवस्था है जिसमे 1 अध्यक्ष और 4 सदस्य है . इनमे से एक साल से भी अधिक समय से 1 अध्यक्ष और 1 सदस्य का पद खाली है।

वर्तमान मे कार्यरत 3 सदस्यों में से एक डाॅ. प्रवीन वर्मा को लोक सेवक के तौर पर राज्य या भारत सरकार में कार्य का अनुभव बिल्कुल भी नहीं है। वे एक निजी चिकित्सक हैं और बेमेतरा के कांग्रेस के पूर्व विधायक के पुत्र हैं।

दूसरे सदस्य संत कुमार नेताम को भी राज्य या केंद्र सरकार मे कार्य का अनुभव नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि दोनो सदस्यों की नियुक्त पूर्ववर्ती सरकार में राजनीतिक तौर हुई थी .

इसी में तीसरी सदस्य सरिता उईके शासकीय महाविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर कार्यरत रही हैं। बतादे कि उईके सिहावा के पूर्व विधायक लक्ष्मी ध्रुव की सगी भाभी हैं।

यह नियुक्तियां पूर्ववर्ती भूपेश सरकार के दौरान की गई थी। पूर्व में नियक्त तीन सदस्यों मे से दो सदस्य अर्थात दो तिहाई 66 प्रतिशत सदस्य आयोग मे गैर सरकारी, गैर लोक सेवक हुए जबकि संविधान के अनुसार आधे से अधिक अर्थात 50 प्रतिशत से अधिक कार्यरत या अवकाश प्राप्त 10 वर्षो के अनुभवी लोक सेवक होने चाहिए। जबकि वर्तमान में छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग मे सिर्फ एक तिहाई 33 प्रतिशत ही सरिता उईके ही इस मापदंड के हिसाब से नियुक्त है। जब आयोग का गठन ही संविधान के नियमानुसार नहीं है तो इस आयोग के द्वारा लिए गए और भविष्य मे लिए जाने वाले निर्णय कैसे संवैधानिक होगे?

ये तीनों सदस्य 2021, 2022, 2023 में आयोजित छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग परीक्षा के दौरान भी थे जिनके खिलाफ भाजपा के द्वारा व्यापक पैमानें पर भ्रष्टाचार, भाई भतीजावाद के गंभीर आरोप लगाए गए आंदोलन किए गए और जिसपर सीबीआई जांच चल रहा है ,उसमे ये तीनों सदस्य कार्यरत रहे है और साक्षात्कार बोर्ड के अध्यक्ष रहे है। अब 15 अक्टूबर से शुरू हो रहे राज्य प्रशासनिक सेवा के अभ्यर्थियों के साक्षात्कार बोर्ड के भी अध्यक्ष ये तीनों रहेंगे।

सवाल यह उठता है कि जिस बोर्ड और उसके अध्यक्षों के खिलाफ सीबीआई जांच-पड़ताल चल रहा है क्या उनको साक्षात्कार लेने का अधिकार है ? और क्या वो फिर से वही भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद नही करेंगे? छत्तीसगढ के भाजपा सरकार जो बड़े पैमाने पर पूर्व सरकार के राज्य लोक सेवा आयोग मे हुये भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन कर युवाओं का साथ पा कर सरकार मे आयी आज 10 महीनो मे भी छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग जैसे संवैधानिक संस्थान में एक अध्यक्ष, सदस्य तक नियुक्त नही कर पायी है। जबकि ये दोनो रिक्त पदो पर सिर्फ संविधान के अनुसार कम से कम 10 वर्षों तक केंद्र या राज्य सरकार मे कार्यरत या अवकाश प्राप्त लोक सेवक से ही भरे जाने है। यहां पर अन्य निगम ,मंडल ,आयोग की तरह राजनैतिक नियुक्ति नही की जानी चाहिए चूंकि पूर्ववर्ती सरकार द्वारा पहले से दो सदस्यों की राजनैतिक नियुक्ती किया जा चुका है .

ऐसे में लोक सेवा आयोग की वैधानिकता और विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजमी है वही 15 अक्टूबर से राज्य प्रशासनिक सेवा के 703 अभ्यर्थियों के साक्षात्कार पर भी कई प्रश्न चिन्ह खड़े होते है और सरकार भी ऐसे गंभीर युवाओ से जुड़ने वाले मुद्दे पर खुद ही स्पष्ट नही हो पा रही है जिस राज्य में लोक सेवा आयोग जैसी संस्था पर सवालिया निशान लगने लग जाए उससे अंदाजा लगाया जा सकता है सरकार युवाओ के भविष्य के लिए कितनी चिंतित और संवेदनशील है .

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