प्रशासनिक दक्षता मे भी एक मिसाल हैं पद्मिनी भोई सपनों को हकीकत में बदलकर समाज की नारियों को एक नई राह दिखाई पद्मिनी भोई ने

प्रशासनिक दक्षता मे भी एक मिसाल हैं पद्मिनी भोई
सपनों को हकीकत में बदलकर समाज की नारियों को एक नई राह दिखाई पद्मिनी भोई ने
रायपुर : – हौसले इंसान के हर मंजिल को उसके कदमों में झुका देती है इन्ही हौसलों और संघर्ष ने छतीसगढ़ के सराईपाली में रहने वाली लड़की के हौसले ने उसके सपनों पर जैसे पर लगा दी। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि खेती किसानी की रही है। यह पृष्ठभूमि उदाहरण है उस समाजिक दस्तूर की जहाँ यह भ्रांति है कि गाँव की प्रतिभाएं शिखर तक नहीं पहुंच पाती इस मिथक को तोड़ा है पद्मनी भोई ने जिन्होंने अपने पहले अटेम्ट में ही राज्य प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में टॉप किया और वर्तमान में वह आईएएस हैं और सीजीएमएससी की एमडी हैं।
अविभाजित छत्तीसगढ की पहली परीक्षा , तब सुविधाओं का था अभाव
मध्यप्रदेश से अलग होकर वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ अस्तित्व में आया। वर्ष 2003 का समय था जब छत्तीसगढ़ में पहली बार राज्य सेवा आयोग की परीक्षाएं हुई। उस समय न तो आज जैसी कोचिंग की सुविधा थी न मोबाईल इंटरनेट का दौर विकसित हुआ था। ऐसे में सुविधाओं की कमी में जिस तरह पहले ही अटेम्ट में पद्मनी भोई ने टॉप किया और बन गई अपने समाज और प्रदेश के लिए एक नजीर। उनके सपनों को हकीकत में बदलने के जज़्बे और जुनून को देखकर औरो ने भी प्रेरणा ली। पद्मनी भोई के भाई ने भी उसे अपना आदर्श मानकर कड़ी मेहनत की और राज्य प्रशासनिक सेवा में चयनित हुए।
सपनों को हकीकत में बदलकर समाज की नारियों को एक नई राह दिखाई पद्मिनी भोई ने
अपने सपनों को हकीकत में बदलकर समाज और प्रदेश भर की नारियों को एक नई राह दिखाने का कार्य किया है पद्मनी भोई ने। वें बताती हैं कि उनके गांव में पहले शिक्षा को लेकर जागरूकता नही थी कमोवेश यह हालात आज भी देश में है जहाँ नारियों को पढ़ाने लिखाने पर बहुत ज्यादा तरजीह नही दी जाती मगर समाज के साथ साथ देश भर की नारियों के लिए यह प्रेरणा है कि आज महिलाएं पुरुष के कंधे से कंधे मिलाकर शासन-प्रशासन, चिकित्सा हर क्षेत्र में अपना जौहर दिखा रही है। पद्मनी भोई को देखकर उसके गांव के लोग भी अब शिक्षा पर ज्यादा ध्यान देने लगे हैं और सिविल और प्रशासनिक परीक्षाओं की तैयारी करने लगे है कुछ तो आज बड़े-बड़े पदों पर आसीन होकर अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
पिता के त्याग और संघर्ष का निचोड़ है यह सफलता
पद्मनी बताती हैं वह आज जिस मुकाम पर हैं यह उनके पिता के त्याग और संघर्ष का निचोड़ है। कृषि जिनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि है जिन्होंने बच्चों के शिक्षा-दीक्षा के उद्देश्य से गांव से शहर की ओर रुख किया और त्याग और संघर्ष कर बेटियों को पढ़ाया और आज इस काबिल बनाया की वह दूसरे के लिए आज प्रेरणा बन रही है। पद्मनी भोई की छोटी बहन भी सरकारी सेवाएं दे रही है जो शिक्षिका है उनका भाई जिला पंचायत सीईओ हैं।
मान लो तो हार ठान लो तो जीत
यह सत्य कहानी बताती है कि अगर मान लिया जाए तो हार है मगर ठान लिया जाए तो जीत ही जीत है। युवाओ की प्रेरणास्रोत पद्मनी युवाओं से कहती है कि वह लगन मन से पढ़ाई करें। उनका कहना है कि शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जिससे दशा और दिशा बदली जा सकती है। एक शिक्षित समाज बेहतर कल की ओर आगे बढ़ेगा। इसके लिए युवाओं को जिस तरह की मदद हो सकता है वह जरूर करेंगी। स्टडी मटेरियल नोट्स तैयार करने में उनका छोटा भाई भी युवाओं का मदद करता है ताकि परीक्षा की तैयारी करने में उन्हें असुविधा न हो।