अफ़सर-ए-आ’ला (हर रविवार को सुशांत की कलम से)

"सुशांत की कलम से"

अफ़सर-ए-आ’ला
(हर रविवार को सुशांत की कलम से)

“सुयोग्य कुमार” बड़ा खेल खेलने की तैयारी में
एक माननीय हैं जो फिल्ड में कम सोशल मिडिया में ज्यादा सक्रिय रहतें है। अपने आप को सबसे ईमानदार और कर्मठ बताने सोशल मिडिया में छाए रहने वाले “सुयोग्य कुमार” इन दिनों अपने बड़े दांव को लेकर सियासी गलियारों में चर्चा में हैं। केंद्रीय नेताओं के सबसे करीबी होने के दंभ भरने वाले माननीय एक बिल्डर के साथ मिलकर एक बड़ा खेल खेलने की तैयारी में है। पिछले दिनों राजधानी में एक कालेज की भूमि को हथियाने के फेर में सुर्खी बटोरने वाले इस बिल्डर के साथ “सुयोग्य कुमार” नया रायपुर में कई एकड़ में भव्य होटल बनाने के जुगाड़ में लगा है। जानकारों का कहना है कि पिछले कुछ दिनों में इस प्रोजेक्ट को लेकर दोनों के बीच कई दौर की बैठक हो चुकी है। इस प्रोजेक्ट का खाका लगभग तैयार हो गया। पूंजी बिल्डर का रहेगा और प्रशासनिक काम “सुयोग्य कुमार” का। इस पूरे प्रोजेक्ट में किसकी हिस्सेदारी क्या होगा इस पर अभी बैठकों का दौर जारी है।

हे राजन शकुनि के फेर में न पड़ें राज-काज चौपट हो जाएगा
प्रशासनिक गलियारों में शकुनि के चाल-चरित्र को लेकर सुगबुगाहट है। कुछ लोगों का कहना है शकुनि की चाल में राजन इतना उलझ गए हैं कि उन्हें अच्छा-बुरा कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा है। राजन के सबसे विश्वसनीय सलाहकार शकुनि अपनी दुर्भावना के चलते योग्य और कर्तव्यनिष्ठ सेनापतियों को अधिकारहीन करके बैठा रखा है। वहीं उनकी परिक्रमा करने वाले और चढ़ावा चढ़ाने वाले अकर्मण्य लोगों को पाॅवर देकर मोर्चे में आगे खड़े कर रखा है। अयोग्य लोगों के कर्मों का फल आमजनता भुगत रही है। राजन को उतना ही दिखाई दे रहा है जितना शकुनि दिखाना चाहता है। शकुनि की इस करतूत से प्रशासन लुंज-पुंज और कानून व्यवस्था चौपट हो रहा है। अगर समय रहते राजन की आंख नहीं खुली तो संगठन की जी तोड़ मेहनत के बाद मिली राज-काज जाता रहेगा। समय रहते मोर्चे पर योग्य सेनापतियों को अगर तैनात नहीं किया गया तो सब कुछ चौपट हो जाएगा। राजन से उसके शुभचिंतक गुहार लगा रहें हैं कि शकुनि बहुत अच्छा षड़यंत्रकारी हो सकता है पर अच्छा सलाहकार नहीं अतः उसके मोह-माया से वाहर निकलकर वास्तविकता से शीघ्र रूबरू हों।

भेंट के शौकीन मंत्री जी –
जंगल विभाग में नीचे से लेकर शीर्ष में बैठे अधिकारी ऐसे जादुई है कि सत्ता किसी की हो तूती इनकी ही चलती है। ऐसा ही एक एसडीओ स्तर का अधिकारी है जो वर्तमान में कटघोरा वनमंडल में पदस्थ है। इनके जादुई किस्से दूर दूर तक फैले है , तत्कालीन सरकार में यह एक समय मे तीन-तीन पद संभालने वाले यह साहब पहले रेंजर की कुर्सी में बैठकर घोटालों की बाउचर बनाते थे फिर उस बाउचर को एसडीओ की कुर्सी में बैठकर सत्यापित किया करते थे फिर डीएफओ की कुर्सी में बैठकर भुगतान , उस समय एक चर्चित नेचर कैम्प घोटाला हुआ था जिसमे इन साहब के ऊपर निलबंन से लेकर वसूली की कार्रवाही हेतु उच्चाधिकारियों को पत्राचार हुआ लेकिन दो साल बीत जाने के बाद भी न तब की न अब की सरकार में हिम्मत नही हुई कि इनपर कार्रवाही कर सके। अब तो इस अधिकारी को उसके ही किये घोटाले का जांच अधिकारी बना दिया गया है। बताते है कि एक प्रभारी मंत्री जी से पुष्प भेंट मुलाकात के बाद यह आदेश जारी हुआ है। वैसे भी मंत्री जी भेंट लेने की काफी शौकीन है , निश्चित ही पुष्प के साथ मंत्री जी को एक बड़ी भेंट और चढ़ाई गई होगी। तब तो घोटालेबाज अधिकारी को उसके ही घोटाले का जांच अधिकारी बना दिया गया।

कश्मकश में महिला मंत्री –
एक महिला मंत्री है वह कश्मकश में है उन्हें समझ ही नही आ रहा है क्या करना है क्या नही अचानक ही कभी उनको सूझता है तो वह विभाग की सचिव को लेकर दौरे में निकल पड़ती है और छोटे-छोटे कर्मचारी दैनिक वेतन भोगी महिलाओं पर टूट पड़ती है। उन्हें जमकर खरी खोटी सुनाती है और उसका वीडियो भी बनवाती है। अब इनकी सचिव जो है बड़ी चालाक और चतुर है वह भी मंत्री मेडम को ऐसे कामो में उलझा कर रखती है ताकि मंत्री जी की टेडी निगाह उनपर न पड़ जाए। मंत्री मेडम यहाँ आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओ को डांटती फटकारती रही और उधर बच्चो को मिलने वाली सामग्री में ही घोटाला हो गया। बताते है मेडम के विभाग में एक से एक खटराल अधिकारी है जो अर्सो से अंगद ही तरह पैर टिकाए बैठे है जो मेडम को अपने हिसाब से मैनेज करते है। मंत्री मेडम की हालत यह हो गई है की “करे तो करे क्या बोले तो बोले क्या”

जाना था दवाखाने पहुँच गए मयखाने-
प्रदेश भर में लचर स्वास्थ्य व्यवस्था दवाओं पर कमीशन और उसको लेकर तमाम शिकायतो को सुनते हुए मंत्री जी ने कठोर निर्णय लिया और वह पहुँच गए मयखाने औचक निरीक्षण करने मंत्री जी भी गजबे करते है अभी कुछ दिन पहले ही एक नागदेवता इनको लाखों की मूर्ति भेंट करने पहुँचे थे। साहेब को चुप्पे रख लेना था यह कोई हल्ला मचाने की बात थोड़ी थी। मंत्रियों को ऐसे तोहफे आते रहते है। मगर साहेब लगे वीडियो बनवाने और करा ली अपनी फजीहत , मंत्री जी यही नही रुकते वह एक जिले के दौरे में पहुँचते है यह वो जिला है जो किसी जमाने मे अपनी टीवी के इलाज के लिए मशहूर था आज वहाँ स्वास्थ्य की हालात बत से बत्तर है। कलेक्ट्रेड के सामने बना यहाँ का जिला अस्पताल आये दिन खुद बीमार पड़ा रहता है। मंत्री जी को चाहिए था कि जिला अस्पताल जाते और वहाँ का औचक निरीक्षण करे ताकि व्यवस्थाओं का सुधार होता। मगर मंत्री जी जिनको दवाखाने जाना था वह मयखाने पहुँच गए। गए तो गए ऊपर से फ़ोटो भी खुद ही वायरल कर दी। लोगो ने भी सोशल प्लेटफॉर्म में साहेब की खिंचाई करते हुए उन्हें उनका मूल काम याद दिला दिया। साहब याद रखिए मंत्रिमंडल का विस्तार ही बस नही होना है किसी का पत्ता भी कटना है देखियेगा कही इन सब चक्करों में आपका पत्ता ही न कट जाए।

खात्मा की जगह खारिजी भेजने वाले खुद खात्मे की ओर –
तत्कालीन सरकार में हुआ एक बहुचर्चित घोटाला जो आज भी सुर्खियों में है। उस घोटाले की जांच करने वाले अधिकारी और उनके साथ एक आईपीएस ने खुद को बचाने के लिए ऐसा मकड़जाल फैलाया कि आज वही अधिकारी अपने ही फैलाने मकड़जाल में उलझते जा रहे है। यह अधिकारी खुद तो फंस रहे इनके साथ एक दिग्विजयी पीठासीन भी रडार में है। मसला एक एफआईआर से जुड़ा है जिसमे गवाह देने वाले एक अल्बर्टो को चीफ सिग्नेचर होम बुलाते है और करीब 17 पन्नो की गवाही पेन ड्राइव में अपलोड करते है यह पेन ड्राइव की गवाही दिग्विजयी पीठासीन तक पहुँचती है और पूरा बयान आधे घण्टे में निपट जाता है। जबकिं वास्तिवकता में 17 पन्ने की गवाही लेने में कम से कम 4 दिन का समय लगेगा ही। जिस शिकायत के आधार पर एफआईआर दर्ज की गई थी उसकी जगह एक अज्ञात शिकायत दर्ज किया गया , इसमे गलती यह हो गई कि प्राप्त शिकायत को गायब न करते हुए उस शिकायत के अस्तित्व को बरकरार रखा गया , और अनुषांगिक अज्ञात शिकायत लेकर आवक नंबर वही रखा गया। यही से इस पूरे षणयंत्र का संदेह चालू हुआ उक्त मामले में गंभीर जांच चल रही है। जिस मामले खात्मा करना था वही षणयंत्र कर मामले में खारिजी भेज दी गई। खरिजी भेजने का उद्देश्य तीन वरिष्ठ अधिकारियों को षणयंत्र पूर्वक फंसाया जाना था अब खरिजी कराने वाले अधिकारी खुद खात्मे की ओर बढ़ रहे है।

यक्ष प्रश्न –
1 . जंगल विभाग का वो कौन सा खटराल अफसर है जो चुनाव के पहले संगठन को 10 करोड़ रुपये देने की डींगें हांक रहा था और इसी तर्ज पर खुद को बचाए हुए है?क्या सच मे संगठन को 10 करोड़ मिला !

2 . सोने की मणि लिया हुआ वह कौन अधिकारी है जो सीएम हाउस में प्रमुख सचिव बनते बनते रह गए।

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