पत्रकारिता की जीत – सुनील नामदेव की बरी होने से खुला पिछली सरकार के फर्जी केस मॉडल का काला चेहरा

पत्रकारिता की जीत – सुनील नामदेव की बरी होने से खुला पिछली सरकार के फर्जी केस मॉडल का काला चेहरा
रायपुर : – छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता के लिए आज का दिन ऐतिहासिक बन गया। वरिष्ठ पत्रकार सुनील नामदेव को जिला एवं सत्र न्यायालय रायपुर ने सभी आरोपों से दोषमुक्त कर दिया है। यह वही मामला है, जिसे पिछली भूपेश बघेल सरकार के समय अभूतपूर्व राजनीतिक दबाव और अदृश्य सरकारी इशारों के तहत गढ़ा गया था।
अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश शैलेश कुमार शर्मा ने सख्त टिप्पणी के साथ फैसला सुनाते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने में नाकाम रहा और पुलिस द्वारा प्रस्तुत पूरे केस की नींव ही कमजोर थी। न्यायालय ने साफ़ कर दिया किसी निर्दोष को साजिशन फंसाया नहीं जा सकता।
पिछली सरकार का फंसाओ चुप कराओ मॉडल उजागर –
इस केस की पूरी पृष्ठभूमि उन काले दिनों की याद दिलाती है जब छत्तीसगढ़ में पत्रकारों पर सरकारी कोप टूटता था और सत्ता की आलोचना करने वालों को सबक सिखाने की खुली कोशिशें होती थीं। जिन पत्रकारों की कलम सत्ता में बैठे लोगों को असहज करती थी, उनके खिलाफ शिकायतें तैयार रखी जाती थीं। असहमति को देशद्रोह , धमकी , ब्लैकमेलिंग , ड्रग्स , शराब कुछ भी जोड़कर अपराध बनाने की कोशिश की जाती थी। कई पत्रकारों को फोन टैपिंग, पीछा कराने, और दमनकारी कार्रवाई का सामना करना पड़ा। सुनील नामदेव का मामला उसी तंत्र की उपज था।
जेब में ड्रग्स रखकर फँसाने की चौंकाने वाली साजिश –
सुनवाई के दौरान जो तथ्य सामने आए, वे लोकतांत्रिक राज्य के लिए शर्म का विषय हैं। सूत्र बताते हैं कि पत्रकार को गिरफ्तार करने से पहले उनकी जेब में नशीला पदार्थ रखकर पूरा मामला तैयार किया गया। अभियोजन पक्ष न तो ड्रग्स की बरामदगी का वैज्ञानिक आधार साबित कर पाया, न ही कोई विश्वसनीय गवाह खड़ा कर सका।
कोर्ट ने पाया कि पुलिस की पूरी कहानी विरोधाभासी थी , जब्ती पंचनामा में खामियां थीं , मौके के गवाह अनुपस्थित थे और सबसे महत्वपूर्ण फँसाने की मंशा साफ झलक रही थी। इस तरह के गंभीर अपराध का आरोप पुलिस साबित ही नहीं कर पाई। यही न्यायालय ने पत्रकार को पूर्णतः बरी करने का आधार बनाया।
यह केवल एक व्यक्ति की नहीं पूरे मीडिया की जीत है
सुनील नामदेव की बरी होना पत्रकारिता की स्वतंत्रता में भरोसा लौटाने वाला फैसला है। यह उन सभी पत्रकारों के लिए संदेश है जिन्हें पिछली सरकार में सवाल पूछने, घोटाले उजागर करने, या भ्रष्टाचार की खबरें लिखने की कीमत फर्जी केसों से चुकानी पड़ती थी। यह फैसला साबित करता है कि सत्ता कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, न्यायपालिका उसके डर से झुकती नहीं।
सत्ता बदली, सच्चाई सामने आई
सरकार बदलने के बाद कई ऐसे फर्जी केस की फाइलें खुल रही हैं, जिनमें पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और आम नागरिकों को व्यवस्थित तरीके से टारगेट किया गया था।
सुनील नामदेव का केस इनमें सबसे बड़ा उदाहरण बनकर सामने आया है।
न्यायपालिका ने दिया डर के खिलाफ लड़ने का साहस –
इस फैसले ने न केवल एक पत्रकार को न्याय दिया, बल्कि यह साफ संदेश भी दे दिया कि फर्जी केसों की राजनीति टिकती नहीं कानून किसी का निजी हथियार नहीं और सच दबाने से नहीं मिटता
अब सवाल उठ रहा है –
क्या इस फर्जीवाड़े के जिम्मेदार पुलिस अफसरों और नेताओं पर कार्रवाई होगी? क्या इस साजिश की जांच होगी? क्या राज्य में मीडिया के दमन का ब्लैकलिस्ट सार्वजनिक होगा? पत्रकारिता जगत उम्मीद कर रहा है कि इस मामले के बाद सरकार और संस्थाएं ऐसी गलतियों को दोहराने से पहले सौ बार सोचेंगी।
सुनील नामदेव की बरी होने का फैसला सिर्फ एक केस का अंत नहीं, बल्कि सत्ता के दमन और डर की राजनीति के खिलाफ एक निर्णायक विजय है। यह छत्तीसगढ़ की लोकतांत्रिक व्यवस्था में भरोसा बढ़ाने वाला दिन है जहाँ न्याय ने एक बार फिर कलम की आज़ादी को सम्मान दिया है।










