अफ़सर-ए-आ’ला (हर रविवार को सुशांत की कलम से)

अफ़सर-ए-आ’ला
(हर रविवार को सुशांत की कलम से)

उधार के चीफ़ की विदेश यात्रा-
मुख्यमंत्री के विदेश दौरे में सीएस अमिताभ जैन सबसे बड़ी चर्चा का नाम बने। सवाल यह कि सितम्बर अंत में सेवावृद्धि खत्म होने वाले उधार के चीफ़ को विदेश ले जाने की क्या मजबूरी है? अफ़सरशाही में कानाफूसी है कि यह सरकारी दौरा है या फेयरवेल टूर? योजनाएँ सीखनी हैं तो उनको मौका दिया जाए जो आगामी सीएस बनेंगे। ताकि लौटकर सरकार के बचे साल काम में लगा सकें। लेकिन यहाँ तो फार्मूला साफ है। पहले घूमो फिर रिटायर हो जाओ। लोग कह रहे है कि साहब फाइलें उठाते-उठाते थक गए होंगे। अब ट्रॉली बैग उठाने का मन होगा। राजधानी के गलियारों में यह भी तंज़ है क्या सरकार का मोह कांग्रेस के चीफ़ सेकेट्री से खत्म नहीं हो रहा? कंपनी नए प्रोडक्ट को विदेश ले जाए तो समझ आता है। पर यहाँ तो एक्सपायरी डेट छपी बोतल विदेश भेजी जा रही है। अफसरशाही के गलियारों में तो इसे सूटकेस डिप्लोमेसी का नया मॉडल बताया जा रहा है। लोग पूछ रहे हैं यह दौरा विकास की दिशा में निवेश है या सिर्फ़ रिटायरमेंट पैकेज का बोनस?

विदेश दौरा पार्ट-2
मुख्यमंत्री का जापान से कोरिया वाला विदेशी दौरा सुर्खियों में है और होना भी चाहिए। वजह साफ है। जाने वालों की लिस्ट में एक ऐसे अफसर हैं जिन्हें इस अगस्त में दूसरी बार टूर वीज़ा लग चुका है। साथ में वे भी शामिल हैं जो दिल्ली से आते हैं, यहीं टिकते हैं और चढ़ावा उत्तर प्रदेश में चढ़ाते हैं। अब सवाल यह उठ रहा है क्या ये सचमुच निवेश यात्रा है या फिर महज़ एयर माइल्स कलेक्शन? दरअसल, राज्य गठन के बाद से जितने भी मुख्यमंत्री और मंत्री विदेश घूमकर लौटे उनकी रिपोर्टो में निवेश के वादों की लंबी फेहरिस्त तो जरूर रही। लेकिन ज़मीनी हकीकत में न कोई ठोस प्रोजेक्ट दिखा, न कोई बड़ा विदेशी निवेश। और वही खर्च का हिसाब देखें तो करोड़ों रुपए इन यात्राओं पर उड़ चुके हैं और नतीजा अब भी वही ढाक के तीन पात। ऊपर से जब दुनिया वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए अरबों के सौदे पक्के कर रही है। तब यह विदेशी दौरे से ज़्यादा फेयरवेल टूर लगते हैं। न कि विकास यात्रा। अफसरशाही की भाषा मे इसे सूटकेस डिप्लोमेसी कहा जाता है। फॉर्मूला वही पहले विदेश घूमो फोटो खिंचवाओ और लौटकर ऐलान करो निवेश आ रहा है। जनता अब आँखें गड़ाए इंतज़ार कर रही है कि आखिर वह विदेशी निवेश कब आएगा और कब जनता को सचमुच उसका फायदा मिलेगा।

दवा का घर, सवालों का अड्डा
कहते हैं दिल्ली में कार्यालय है पर असली दवा महासमुंद में बनती है। यही कहानी है 9M इंडिया लिमिटेड की जिसकी फैक्ट्री बिरकोनी इंडस्ट्रियल एरिया में खड़ी है। कागज़ों पर यह छत्तीसगढ़ की शान बताई जाती है।पर सच यही है कि यहाँ से निकलने वाली दवाओं ने भरोसे की नसें काट दी हैं। सरकारी रिकॉर्ड गवाही देता है 72 सैंपल फेल। यानी हर बार जांच हुई, दवाइयाँ मरीजों के काम आने की बजाय फेल साबित हुई। सवाल उठता है कि फिर भी क्यों यह कंपनी ठेका दर ठेका समेट रही है? क्या यह स्वास्थ्य सेवा है या रसूख़ का कारोबार?दिल्ली दफ्तर में बैठकर कॉन्ट्रैक्ट साइन होते हैं।और महासमुंद की यूनिट से दवाएं सीधे अस्पतालों तक पहुँचती हैं। पर जब मरीज पूछते हैं दवा असर क्यों नहीं कर रही? तो जवाब देने वाला कोई नहीं। विभाग खामोश, मंत्री जी खामोश और ठेकेदार तो जैसे और ज़्यादा सक्रिय। जहाँ दवा बनती है वहीं सवालों की खेती हो रही है। यह सिर्फ़ तकनीकी चूक नहीं बल्कि व्यवस्था की लापरवाही है। अगर दवा फेल है तो मरीज के लिए यह मौत का खेल है। विडंबना देखिए दुनिया हेल्थकेयर की नई टेक्नोलॉजी में आगे बढ़ रही है और छत्तीसगढ़ में अब भी वही कंपनी सप्लाई कर रही है जिसका रिकॉर्ड दागदार है। नियमों की किताबों में ब्लैकलिस्टिंग का प्रावधान है, लेकिन यहाँ तो जैसे ब्लैकलिस्ट शब्द डिक्शनरी से गायब कर दिया गया है। आख़िर क्यों एक ही कंपनी पर इतना भरोसा जताया जा रहा है, जब भरोसे की बुनियाद ही हिल चुकी है? यह मामला सिर्फ़ महासमुंद के कारखाने का नहीं, पूरे सिस्टम की गिरती सेहत का आईना है।

नोटों की दौड़ –
वन रक्षक भर्ती का घोटाला तो जैसे पैकेज टूर हो गया है। पहले 10 करोड़ में सौदा हुआ। अब ऊपर से 6 करोड़ की नई मांग! सवाल यह कि जिम्मेदार कौन है मुख्यमंत्री, विभाग की प्रमुख ऋचा शर्मा, या फिर जंगलराज के महारथी श्रीनिवासन राव? आरटीआई में जो खुलासा हुआ, उससे साफ है कि भर्ती की दौड़ युवाओं ने भले ही लगाई हो। लेकिन फिनिश लाइन पर नोटों की गड्डियाँ दौड़ रही थीं। विभाग के अफसर एकदम एजेंसी-फ्रेंडली निकले। जिन्हें मशीनों से ज्यादा कमीशन पर भरोसा है। मज़े की बात यह कि पिछली सरकार इस खेल की वजह से गिरी और अब वही खेल नए रंग-रूप में जारी है। सियासी गलियारों में कानाफूसी है। यह भर्ती नहीं, बल्कि नकद वसूली का फिटनेस टेस्ट था। अब देखने वाली बात यह है कि दोषियों पर कार्रवाई होगी या फिर सरकार वही पुराना राग अलापेगी जांच जारी है..।

पुलिस कमिश्नर या कानून की कमिश्नरी?-
राज्य में कानून व्यवस्था का हाल पूछिए तो लोग हँसकर कहते हैं जनाब कानून तो है पर व्यवस्था कहीं खो गई है। कवर्धा जल रहा है, बस्तर बारूद पर बैठा है और मैदानी इलाकों में लूट-हत्या रोज़ की खबर है। ऐसे में सरकार ने घोषणा कर दी कि पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू होगी। मानो नई कुर्सी पर बैठते ही अपराधी डरकर भाग जाएंगे। जनता पूछ रही है।जब थानेदार ही लाचार है तो ऊपर बैठा कमिश्नर कौन-सा जादू करेगा? इसी बीच जन्माष्टमी की छुट्टी वाले दिन अचानक सभी आईजी को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में तलब कर लिया गया। छुट्टी की मिठास पुलिस मुख्यालय के मैसेज ने कड़वी कर दी और तीन घंटे चली इस बैठक चली जिसकाएजेंडा था बढ़ती चाकूबाजी। तस्वीरे डरावनी है सिर्फ न्यायधानी में सात महीने में 120 वारदातें, सात मौतें और 122 घायल। कवर्धा, रायपुर, धमतरी, कोरबा हर जगह चाकुओं की धार इंसानी जान से ज्यादा पैनी साबित हो रही है। हालत यह कि पान ठेलों से लेकर ई-कॉमर्स तक चाकू खुलेआम बिक रहे हैं और पुलिस तमाशबीन है। मंजर इतना भयावह कि हाईकोर्ट को दखल देना पड़ा और डीजीपी से लेकर मुख्य सचिव तक शपथ पत्र तलब हो गया। अब सवाल यही है क्या कमिश्नर प्रणाली अपराध रोकने का इलाज बनेगी या कानून का नया मेकअप? क्योंकि असलियत यही है कि अपराधियों की मीटिंग व्हाट्सएप पर सबसे सुरक्षित है, और नागरिकों की शिकायत थाने में सबसे असुरक्षित। अब इस नई व्यवस्था से अपराधी डरेंगे या नहीं ये अनिश्चित है पर जनता का डर अब स्थायी हो चला है।

“इस सप्ताह अफसरशाही और राजनीति ने छत्तीसगढ़ में ड्रामा कायम किया सीएस का विदेशी दौरा, दवाओं की गुणवत्ता पर सवाल, भर्ती में नोटों की दौड़ और कमिश्नर प्रणाली की चर्चा। दो साल बाद आज मंत्रिमंडल विस्तार होने जा रहा है, देखिए सत्ता की कड़ी में किसका भाग्य चमकता है और किनारे कौन रह जाता है।”

यक्ष प्रश्न

1- क्या मंत्रिमंडल में अमर की एंट्री फाइनल हो गई है?

2- क्या गृहमंत्री के हाथों से कानून व्यवस्था फिसलती जा रही है ? 

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