अफ़सर-ए-आ’ला (हर रविवार को सुशांत की कलम से)

अफ़सर-ए-आ’ला
(हर रविवार को सुशांत की कलम से)
रिकॉर्ड सरकार
साय सरकार अब भूपेश के नक्शे-कदम पर चल पड़ी है फर्क बस इतना है, वहाँ फाइलें दबती थीं, यहाँ कॉल डिटेल निकलती हैं। कल तक यही लोग कहते थे “पत्रकारों पर कार्रवाई लोकतंत्र की हत्या है।” और आज वही सत्ता पीएचक्यू से फोन लगाकर पत्रकारों के रिकॉर्ड खंगाल रही है कौन बोलता है, किससे बोलता है, और किस खबर में सच ज़्यादा दिखा दिया। विडंबना देखिए – अगर साय सरकार ने लोगों की फाइलें छोड़ काम की फाइलें खोली होतीं, तो शायद जनता आज इनके “अच्छे रिकॉर्ड” ढूँढती। लेकिन अब हाल ये है कि सत्ता अपने छिपे चेहरे रिकॉर्ड में ढूँढ रही है, और जनता सत्ता का चेहरा ज़मीन पर। साय सरकार का नया स्लोगन “काम बाद में, कॉल पहले।”
“जो बोलेगा, उसका रिकॉर्ड खुलेगा।”
संदेश साफ़ है – सरकार काम नहीं करती,
रिकॉर्ड प्ले करती है।
खामोश सत्ता : –
गढ़चिरौली में जब दुर्दांत नक्सली भूपति ने अपने साठ साथियों और 54 हथियारों के साथ आत्मसमर्पण किया, तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री खुद मौजूद थे। मंच पर मुस्कान थी, पीछे संदेश साफ़ राज्य की नीति काम कर रही है! इधर छत्तीसगढ़ में भी 208 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया। संख्या ज़्यादा, हथियार भी ज़्यादा पर मंच पर सत्ता गायब! कार्यक्रम में केवल डीजीपी, आईजी और प्रेस नोट।मुख्यमंत्री और गृहमंत्री कहीं दिखे नहीं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या नक्सलवाद सिर्फ पुलिस की फाइल में लड़ा जा रहा है, या अब राजनीति ने भी जंगल छोड़ दिए हैं? गढ़चिरौली में आत्मसमर्पण को नेतृत्व की जीत कहा गया,
बस्तर में वही घटना विभागीय कार्रवाई बनकर रह गई। साफ़ है जहाँ नेता मौजूद होते हैं, वहाँ बंदूकें भरोसे से झुकती हैं। जहाँ नेता गायब रहते हैं, वहाँ बस रिपोर्ट बनती है। और यही फर्क है –
वहाँ भूपति झुका, यहाँ नेतृत्व लुका।
भुल्लर क्लोन : –
पंजाब में सीबीआई ने एक भुल्लर साहब के घर छापा पड़ा और निकला कैश , सोना , बंगला , रोलेक्स , राडो यानि ईमानदारी अब सिर्फ दीवार पर लगी फोटो में बची है। लेकिन बस्तर से रायपुर तक लोग टीवी देखते हुए मुस्कुराए अरे, ऐसे भुल्लर तो हमारे यहाँ भी घूम रहे हैं, बस छापा बाकी है! पुलिस विभाग में “शेख बाबा” हैं जो ध्यान लगाते हैं पोस्टिंग योग पर, एक “बगुला भगत” हैं जो दिखते भक्ति में, रहते संपत्ति में, और “मुनीम साहब” जो हर फाइल में गणितीय लाभांश निकाल लेते हैं। आईएएस बिरादरी में “नीड परीक्षा” और “दयो-नन्द प्रकरण” के अवशेष आज भी सिस्टम में साँस ले रहे हैं। और वन विभाग के एक “दक्षिणी महात्मा” जिनके बंगले पर अगर दबिश पड़े,
तो पेड़ों से ज़्यादा नोट गिनने पड़ें। अब सवाल यह क्या पंजाब ही भ्रष्टाचार का ठिकाना है, या छत्तीसगढ़ में सब साइलेंट रिच हैं? कहने को तो यहाँ पारदर्शिता है, बस काँच के पीछे तिजोरी रखी है। पंजाब में भुल्लर पकड़ा गया,
छत्तीसगढ़ में भुल्लर फैले हुए हैं। बस फर्क इतना है वहाँ छापा पड़ा, यहाँ सन्नाटा पड़ा।
सूखा नशा का गीला असर : –
राजधानी के गलियारों में इन दिनों एक “संयुक्त चर्चा” खूब जोरों पर है। एक ऐसे अफसर की, जो खुद को “सत्ता का विभीषण” मानता है ना संगठन की परवाह, ना जनता की बस एक ही लगन ऊपर वालों को खुश रखो, नीचे वालों को खामोश। कहते हैं, ये वही साहब हैं जो कांग्रेस राज में ‘भूपेशकालीन सूर्य’ की रोशनी में खूब तपे थे, और अब सत्ता बदलने पर उसी तपिश को नया रूप देकर “सूरजमुखी मोड” में चले गए हैं जहाँ सूरज जिधर उगता है, चेहरा उधर घूम जाता है। इन दिनों उनका मुख्य मिशन है “चमचागीरी, चीयर्स और चेकबुक मैनेजमेंट।” बड़े पत्रकारों से लेकर बड़े नेताओं तक, सभी को “पॉलिश” में रखना ही इनका USP है। और जब ‘पॉलिश’ खत्म होती है, तो दारू – डायलॉग थैरेपी शुरू हो जाती है। तेलीबांधा के पीछे वाले एक कॉम्प्लेक्स की ऊपरी मंज़िल पर। जहाँ रोज़ कुछ खास ‘कॉकटेल कॉन्फ्रेंस’ होती है जिसमें सरकार की नीतियाँ नहीं, अफसरों और नेताओं की गालियाँ परोसी जाती हैं। सूत्र कहते हैं, इन ‘मौज-मस्ती मीटिंग्स’ की रिकॉर्डिंग अब बाजार में तैर रही है, पर साहब का आत्मविश्वास अब भी मदिरा की बोतल जितना मजबूत है “अभी तो मेरी सर्विस बीस साल बाकी है कांग्रेस आए या भाजपा जाए, मैं यहीं रहूंगा।” आगे सुनिए, राजधानी में एक और नई चर्चा चली है इन साहब की डॉक्टर बहन के नाम पर नई राजधानी में ली गई कई एकड़ ज़मीन पर एक “हास्पिटल” बन रहा है जो इलाज शायद जनता का नहीं, खुद की छवि का करेगा। और अब आती है असली बात राज्यभर में जिस “सूखे नशे” की चर्चा दिल्ली तक है, वो दरअसल शराब से ज़्यादा पद, सत्ता और प्रचार का नशा है। जिसका असर इतना गहरा है कि संगठन, जनता और सिस्टम सब धुंधले दिखने लगे हैं। साहब का सूखा नशा, अब पूरे विभाग की नमी सोख रहा है। और अगर यही हाल रहा, तो आने वाले चुनाव में जनता पूछेगी
सरकार चला कौन चला रहा है नशे में डूबा अफसर, या खामोश मुखिया?”
एक्सटेंशन एक्सप्रेस
छत्तीसगढ़ के जंगलों में इन दिनों कुछ न कुछ जरूर पक रहा है। क्योंकि जंगल विभाग के मुखिया साहब का कार्यकाल अब खत्म होने को है, पर साहब का आत्मविश्वास अभी भी हरा-भरा है जैसे मानसून से पहले भी पेड़ों में नई कोंपलें फूट आती हैं। सूत्र बताते हैं, करोड़ों के भ्रष्टाचार की फाइलें खुल चुकी हैं, पर साहब बेफिक्र हैं “एक्सटेंशन मेरा तय है, फाइलें बाद में देख लेंगे।” कहते हैं, पिछली सरकार में वे इतने ऊपर चढ़े कि सात सीनियर अफसरों की पीठ पर पैर रखकर कुर्सी तक पहुँचे। अब नीचे उतरने का नाम नहीं ले रहे। राजधानी के गलियारों में चर्चा है साहब का एक्सटेंशन अब विभागीय योग्यता से नहीं, “मनीराम पंकज (पैसा और संगठन)” के आशीर्वाद से तय होगा। मनीराम यानी नोटों की माला, और पंकज यानी संगठन का कमल दोनों का मेल हो जाए तो वन महल में भी सूर्योदय देर से होता है। साहब को पूरा भरोसा है “मनीराम पंकज में बहुत ताकत है।” और अगर यह ताकत लगी रही, तो शायद जंगल के पेड़ भी कहेंगे “हम नहीं कटे, बस साहब का कार्यकाल बढ़ा।” हाल ये है कि फाइलें फुसफुसा रही हैं, “अगर कुर्सी गई तो हम बोल पड़ेंगी।” पर साहब की नीति साफ़ है “पहले एक्सटेंशन, बाद में एक्सप्लनेशन।” उनकी मेहनत भी निराली है दिन में दिल्ली तक फोन, शाम को रायपुर तक जुगाड़। कहते हैं, विभाग से ज़्यादा अब एक्सटेंशन अभियान चल रहा है, जहाँ हर तर्क का उत्तर है “मनीराम पंकज संभाल लेंगे।”
नेचर कैंप, नेचर कैंसिल!
छत्तीसगढ़ में एक बहुचर्चित नेचर कैंप घोटाला हुआ था। नाम सुनने में भले ही प्रकृति प्रेम लगे, पर भीतर खेल प्रकृति शोषण का था। शिकायत हुई, जांच हुई और फिर जो सामने आया, वो सिर्फ नेचर का हाल नहीं, बल्कि सिस्टम की चाल भी बता गया। पता चला यह कोई मामूली गड़बड़ी नहीं, बल्कि करोड़ों का खेल है जहाँ पेड़ गिने कम, रकम ज़्यादा निकली! जांच में बड़े-बड़े अफसरों से लेकर नीचे तक के कर्मचारी सब दोषी पाए गए पर कार्रवाई?शून्य। फाइल दौड़ी विधानसभा तक, फिर पीसीसीएफ, फिर मुख्य सचिव, फिर एसीएस वन तक हर जगह बस देखा जाएगा की सील लगी रही। तीन साल तक विभाग ने जांच के नाम पर इतना गुमराह किया कि जंगल में पगडंडी बदल गई, पर फाइल वहीं की वहीं रही। अब ताज़ा जानकारी यह है कि मामले को भीतर ही भीतर नेचरली सैटल कर दिया गया है। एक एसडीओ साहब से प्रतिवाद-उत्तर लेकर फाइल नस्ती कर दी गई यानि अब घोटाला हुआ ही नहीं! फाइल में लिखा गया ना घोटाला हुआ ,ना पैसा हटा सब नेचरली क्लीन! वही एसडीओ साहब आज भी कटघोरा में पदस्थ हैं, इतनी स्थायी पोस्टिंग कि पेड़ भी शर्म से झुक जाएँ। कहते हैं, अब उनका जंगल ही नहीं, उनकी जिंदगी भी रिज़र्व फॉरेस्ट बन चुकी है जहाँ कोई छेड़ नहीं सकता। वैसे भी जब पत्नी आईएएस हो, तो जंगल क्या, विभाग भी अपना ही बगीचा लगता है। यही है छत्तीसगढ़ का नया मॉडल –
“जांच पूरी, जिम्मेदारी अधूरी,
दोष तय, कार्रवाई शून्य।”
क्या कहते है अफ़सर-ए-आ’ला
छत्तीसगढ़ की सत्ता आज एक अजीब दौर में है जहाँ भूपति झुकते हैं, भुल्लर पकड़े जाते हैं,
पर यहाँ नेतृत्व लुका रहता है, भ्रष्टाचार टिका रहता है। राजधानी के गलियारों में सूखा नशा बह रहा है, जंगल विभाग में एक्सटेंशन एक्सप्रेस दौड़ रही है, और नीचे, नेचर कैंप की फाइलें नेचरली नस्ती हो रही हैं।
यक्ष प्रश्न –
1 – क्या संगठन हाउस के कर्णधारों पर लगाम कस पाएगी?
2 – क्या होम्योपैथी डॉक्टर को सर्जरी वाला काम करना पड़ेगा तब छत्तीसगढ़ की स्थिति सुतरेगी?









