तीन साल दवाओं में गड़बड़ी, रिपोर्ट तैयार, दोषी तय… तो फिर कार्रवाई किसके इशारे का इंतज़ार कर रही है? GPM दवा घोटाले पर स्वास्थ्य सचिव की चुप्पी क्यों?

तीन साल दवाओं में गड़बड़ी , जांच रिपोर्ट तैयार, नाम तय… फिर भी चुप्पी!
GPM दवा घोटाले पर स्वास्थ्य सचिव अमित कटारिया क्यों मौन?
रायपुर/(GPM) : – छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य विभाग में जवाबदेही का हाल क्या है, इसकी बानगी गौरेला–पेंड्रा–मरवाही जिले से सामने आए इस मामले में साफ देखी जा सकती है। दवा, चिकित्सा सामग्री और उपकरणों की खरीदी–वितरण में वर्षों तक चली अनियमितताओं की पुष्टि जांच समिति और संचालनालय स्वास्थ्य सेवाएं कर चुकी है, इसके बावजूद आज तक न तो कार्रवाई हुई और न ही किसी अधिकारी की कुर्सी हिली।
पत्र, जांच और संस्तुति सब हो चुका, फिर कार्रवाई क्यों नहीं?
यह पूरा मामला 15 मार्च 2020 से 30 सितंबर 2023 की अवधि से जुड़ा है। जिला औषधि भंडार एवं मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय, GPM में दवाओं , चिकित्सा सामग्री एवं उपकरणों की खरीदी और वितरण में सरकारी मानकों और प्रक्रियाओं की खुली अनदेखी की गई।
इस पूरे मामले को लेकर मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, GPM द्वारा 27 मई 2025 को पत्र भेजा गया, जिसके आधार पर जांच कराई गई। कलेक्टर के आदेश से बनी जांच समिति कलेक्टर, GPM के आदेश क्रमांक 2697/कले./स्टोर्स/2024 दिनांक 20.08.2024 के तहत चार सदस्यीय जांच समिति गठित की गई।
जांच समिति की रिपोर्ट किसी अनुमान पर नहीं, बल्कि रिकॉर्ड, भंडार पंजियों और दस्तावेज़ों के आधार पर है।
जांच रिपोर्ट के चौंकाने वाले निष्कर्ष –
जांच समिति ने साफ शब्दों में माना कि दवाओं और सामग्रियों के क्रय–वितरण में निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ। भंडार पंजियों और वितरण रिकॉर्ड का समुचित संधारण नहीं किया गया। बिना भौतिक सत्यापन के सामग्री का वितरण किया गया। स्वास्थ्य संस्थाओं से मांग पत्र प्राप्त किए बिना ही सामग्री जारी कर दी गई। भुगतान और वितरण के बीच कोई पारदर्शी श्रृंखला नहीं पाई गई। नतीजा खरीद, भंडारण और वितरण तीनों स्तरों पर गंभीर अनियमितताएँ।
नाम साफ़-साफ़ दर्ज, फिर भी कार्रवाई शून्य –
जांच रिपोर्ट में जिन अधिकारियों की प्रथम दृष्टया जिम्मेदारी तय हुई, वे आज भी महत्वपूर्ण पदों पर जमे हुए हैं डॉ. देवेंद्र सिंह पैकरा वर्तमान में सिविल सर्जन, GPM
संबंधित अवधि में CMHO के रूप में दायित्व में थे। डॉ. आई. मिंज वर्तमान में BMO, GPM , डॉ. नागेश्वर राव वर्तमान में CMHO, महासमुंद में पदस्थ है। जांच समिति ने स्पष्ट लिखा कि कार्यालय प्रमुख होने के बावजूद अधीनस्थ कर्मचारियों के कार्यों का निरीक्षण नहीं हुआ , भंडार एवं वितरण प्रणाली में पारदर्शिता सुनिश्चित नहीं की गई बिना वैध प्रक्रिया के भुगतान रोका नहीं गया। यानि लापरवाही नहीं, जिम्मेदारी से भागने का पूरा पैटर्न।
कार्रवाई की संस्तुति फिर फाइल क्यों रुकी?
जांच रिपोर्ट में नियमों के तहत अनुशासनात्मक कार्रवाई की स्पष्ट अनुशंसा की गई। इतना ही नहीं, इस प्रस्ताव को संचालक, स्वास्थ्य सेवाएं छत्तीसगढ़ ने अनुमोदित करते हुए संयुक्त संचालक (वित्त), संचालनालय स्वास्थ्य सेवाएं के हस्ताक्षर से आगे की कार्रवाई के लिए भेज भी दिया।
अब सवाल सीधे स्वास्थ्य सचिव से –
सूत्रों के मुताबिक जब यह पूरा मामला स्वास्थ्य सचिव अमित कटारिया के संज्ञान में लाया गया, तो उन्होंने इस मामले की अनभिज्ञता जाहिर की। यह सवाल खड़ा करता है जब संचालनालय जांच रिपोर्ट भेज चुका है
जब नाम तय हो चुके हैं जब अनियमितता प्रमाणित है तो सचिव को जानकारी कैसे नहीं?
स्वास्थ्य मंत्री से भी सवाल –
स्वास्थ्य जैसा संवेदनशील विभाग, जहाँ दवाओं की एक खेप किसी की जान बचाती है, और एक अनियमितता किसी की जान ले सकती है वहाँ तीन साल की गड़बड़ी, नामजद अधिकारी, तैयार जांच रिपोर्ट, और फिर भी कोई कार्रवाई नहीं?
क्या साहब, यही है आपकी स्वास्थ्य व्यवस्था?
क्या दोषी सिर्फ काग़ज़ों में दोषी होते हैं? क्या कार्रवाई सिर्फ छोटे कर्मचारियों के लिए होती है? यह मामला अब सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही नहीं रहा। यह सिस्टम की चुप्पी, सचिवालय की अनदेखी, और राजनीतिक संरक्षण की आशंका का मामला बन चुका है।
अब देखना यह है कि जांच रिपोर्ट फाइलों में सड़ती है या फिर वाकई किसी बड़े फैसले की जमीन बनती है।










