आदिवासी समाज का अस्तित्व है खतरे में, जो भी इस पर मदद करेगा उनसे वे सहायता जरुर लेंगे – नेताम

00 कांग्रेस के दौरान लाए गए उदारीकरण ने आदिवासी समाज के लिए खतरे की घंटी बजा दी थी
रायपुर। नागपुर में आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यक्रम शामिल होने के बाद राजधानी रायपुर लौटे पूर्व केंद्रीय मंत्री और प्रमुख आदिवासी नेता अरविंद नेताम ने एक निजी होटल में आयोजित पत्रकारवार्ता में कहा कि कांग्रेस शासन काल के दौरान लाए गए उदारीकरण ने आदिवासी समाज के लिए खतरे की घंटी बजा दी थी लेकिन आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के साथ संघ और आदिवासी समाज के बीच वैचारिक दूरियों को कम करने के उपायों पर खुली और सार्थक बातचीत हुई है और जो भी आदिवासी समाज की मदद करेगा वे उनसे सहायता जरुर लेंगे।
पत्रकारों से चर्चा करते हुए नेताम ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को कार्यक्रम में आमंत्रित करने के लिए धन्यवाद देते हुए संघ की कार्यशैली की सराहना की करते हुए कहा कि इस कार्यक्रम के माध्यम से उन्होंने संघ को करीब से समझा। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के साथ उनकी खुली और सार्थक बातचीत हुई संघ और आदिवासी समाज के बीच वैचारिक दूरियों को कम करने के उपायों पर विचार-विमर्श हुआ। इस दौरान उन्होंने मोहन भागवत से आग्रह किया कि आदिवासी समाज में एकजुटता की कमी को दूर करने के लिए कोई रास्ता निकाला जाए क्योंकि कांग्रेस शासन काल के दौरान लाए गए उदारीकरण ने आदिवासी समाज के लिए खतरे की घंटी बजा दी थी। जब देश में सारी आशाएं खत्म हो गई थी तब संघ ही एकमात्र स्थान बचा है जो आदिवासी समाज की मदद कर सकता है। उन्होंने कहा कि संघ पहले आदिवासियों को वनवासी कहता रहा है, जिसका वे लगातार विरोध कर रहे थे लेकिन उनके दबाव के बाद अब संघ ने आदिवासी शब्द का उपयोग करना शुरू कर दिया है जो स्वागत योग्य है।
नेताम ने बताया कि पहले वे डीलिस्टिंग (अनुसूचित जनजाति की सूची से हटाने) के खिलाफ थे, लेकिन अब धर्मांतरण को रोकने के लिए उन्होंने इस मुद्दे पर सहमति जताई है। आदिवासी समाज के जल, जंगल और जमीन के संरक्षण के मुद्दे को भी नेताम ने संघ के सामने रखते हुए कहा आदिवासी समाज का अस्तित्व खतरे में है, तो जो भी इस पर मदद करेगा, हम उससे सहायता जरुर लेंगे और उन्हें उम्मीद है कि आरएसएस प्रमुख इस जरुर निर्णय लेंगे।

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