पेण्ड्रा निकाय चुनाव : – रैलियों में शक्ति प्रदर्शन और जीत का समीकरण , दिलचस्प होगा मुकाबला

पेण्ड्रा निकाय चुनाव : – रैलियों में शक्ति प्रदर्शन और जीत का समीकरण , दिलचस्प होगा मुकाबला
पेण्ड्रा : – पेण्ड्रा नगर पालिका चुनाव में इस बार मुकाबला दिलचस्प होता दिख रहा है कारण है मैदान में तीन प्रमुख प्रत्याशी एक निवर्तमान अध्यक्ष छोटा भाई वही भाजपा से सेठ जी और कांग्रेस के भईया जी की किस्मत का फैसला होना है . नामाकंन के साथ तीनो कद्दावर प्रत्यासियो ने विशाल रैलियों के जरिए अपनी ताकत का प्रदर्शन किया . हालांकि इस भीड़ को जुटाने के लिए हर तीनों ने तमाम हतकंडे अपनाए है . लोकतंत्र में यह माना जाता है कि जिसके पास जनसमर्थन होगा उसकी जीत तय होगी और इसी सोच के साथ प्रत्याशियों ने चुनाव से पहले ही शक्ति प्रदर्शन शुरू कर दिया .
शक्ति प्रदर्शन में आई भीड़ का एक खुला सच यह है कि इन रैलियों में बड़ी संख्या में वही लोग शामिल होते हैं जो बेरोजगारी और आर्थिक संकट से जूझ रहे होते हैं . इन्हें कुछ घंटों की रैली के लिए भोजन और नकद की व्यवस्था कर शामिल किया जाता है ताकि भीड़ का असर बड़े जनसमर्थन के रूप में दिखे मगर यह भीड़ को वोट में देखना नासमझी होगी .
अब आइए इन रैलियों के आधार पर पेण्ड्रा नगरपालिका परिषद चुनाव के समीकरणों का विश्लेषण करते हैं : –
सेठ जी की रैली संगठन की ताकत पर जनभावना का अभाव : –
सेठ जी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के झंडाबरदार हैं इसलिए उनकी नामांकन रैली में भीड़ जुटाना उनके लिए न सिर्फ ज़रूरी था बल्कि उनकी राजनीतिक साख से भी जुड़ा था। संगठन के कार्यकर्ता पूरी मुस्तैदी के साथ उनके पीछे खड़े दिखे। दूर-दराज के वार्डों से लेकर शहरी इलाकों तक के लोग उनकी रैली में नजर आए। इससे यह तो स्पष्ट हो गया कि पार्टी संगठन में कोई मतभेद नहीं है लेकिन क्या यह भीड़ वोट में तब्दील होगी? यह बड़ा सवाल है। इस शक्ति प्रदर्शन को देखकर आमजनता की राय सुमारी भी आने लगी है लोग कह रहे है भीड़ तो ठीक है लेकिन सेठजी झुकने मे थोड़ा असहज महसूस कर रहे है .
छोटा भाई की रैली आत्मविश्वास और पार्टी से बगावत का मिश्रण : –
छोटे भाई ने आत्मविश्वास से भरी रैली निकाली जिसमें दूर-दराज के इलाकों के लोगों की भरपूर मौजूदगी दिखी। जानकारों का कहना है कि यह भीड़ काफी हद तक “आयातित” थी, लेकिन छोटा भाई इसे अपना परिवार बताकर तमाम दावों को खारिज कर रहे हैं .
चुनाव विश्लेषकों के अनुसार, दूरदराज के क्षेत्रों में उनके खिलाफ कोई बड़ी एंटी-इनकंबेंसी (सत्ता विरोधी लहर) नहीं दिखती लेकिन शहरी इलाकों में स्थिति थोड़ी डगमगाई हुई है । दिलचस्प बात यह रही कि उनकी रैली में पार्टी के कुछ बागी नेता भी शामिल हुए जो पार्टी से ज्यादा व्यक्ति-विशेष के प्रति निष्ठा दिखा रहे थे।
यह अपने आप में लोकतंत्र का दिलचस्प रंग है जहां विचारधारा से ज्यादा व्यक्तिगत समीकरण हावी होते दिख रहे हैं।
भईया जी की रैली कम भीड़ लेकिन प्रभावशाली समर्थन : –
भईया जी की नामांकन रैली में उतना जनसैलाब नहीं दिखा जितनी उम्मीद की जा रही थी। इसका एक बड़ा कारण यह भी रहा कि उनका टिकट आखिरी समय में तय हुआ जबकि छोटा भाई पहले से ही तैयारी में थे चाहे पार्टी उन्हें टिकट दे या न दे .
लेकिन भीड़ की संख्या से ज्यादा अहम था भीड़ का स्वरूप। भईया जी की रैली में वे लोग नजर आए जिनका राजनीति में एक मजबूत रसूख माना जाता है। जानकारों का मानना है कि भईया जी की रणनीति भीड़ से ज्यादा मैनेजमेंट पर टिकी है . अब इस मैनेजमेंट में भईया कितना सफल होते है यह तो वक़्त ही बताएगा .
कौन किस पर भारी : –
तीनों रैलियों का आकलन करें तो झुकने की कला में सेठ जी पिछड़ते दिखे . उनकी रैली में संगठनात्मक मजबूती तो दिखी लेकिन जनभावना का अभाव नजर आया . छोटे भाई ने दूरदराज के क्षेत्रों में अपनी पकड़ दिखाई, लेकिन शहरी इलाकों में स्थिति उतनी सहज नहीं है। वहीं, भईया जी भले ही भीड़ के मामले में पीछे दिखे, लेकिन मजबूत स्थानीय समर्थन और रणनीतिक प्रबंधन की ताकत से भईया खुद को मजबूत आंक रहे है .
हालांकि अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि चुनावी ऊँट किस करवट बैठेगा लेकिन इतना तय है कि मतदाता इस मुकाबले का भरपूर आनंद लेने वाले हैं। शहर में चर्चा गर्म है, और नेता भी अब खुलकर बोल रहे हैं