थम गया प्रचार – मन में मौन मतदाता मुखर होकर कल करेगा मतदान ,
कोटा : – प्रदेश की एक ऐसी विधानसभा सीट जो काफी चर्चित है और रोचक भी है यह वही सीट है जिसे कांग्रेस अपना अभेद गढ़ मानती है चूंकि 1952 से लेकर 2018 तक यानि 66 साल यह सीट कांग्रेस के कब्जे में रही वर्ष 2018 में 66 साल बाद इस मिथक को प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री स्व. अजित जोगी की पत्नी श्रीमती रेणु जोगी ने जेसीसीजे से दावेदारी करके तोड़ा था .
हम बात कर रहे है कोटा विधानसभा सीट की जहाँ कांग्रेस , भाजपा समेत जेसीसीजे मुख्य रूप से चुनावी मैदान में है
पहले आकड़ो पर नजर डालते है –
अब तक इस विधानसभा सीट में 14 बार चुनाव हो चुका है जिसमे 2018 तक इस सीट को कांग्रेस जीतती रही है 1952 में पहली बार यहाँ से कांग्रेस के काशीराम तिवारी यहाँ से विधायक निर्वाचित हुए थे 1967 से लेकर 1980 तक मथुरा प्रसाद दुबे कांग्रेस की सीट से विधायक थे वही मथुरा प्रसाद दुबे के निधन पश्यात 1985 में राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल कांग्रेस से विधायक चुने गए जिनका इस सीट में काफी दबदबा रहा है 1985 से लेकर 2003 तक राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल लगातार इस सीट से फतह हासिल की 2006 में राजेंद्र प्रसाद शुक्ल के निधन के पश्यात रिक्त हुई सीट पर उपचुनाव हुआ जिसमे कांग्रेस से रेनू जोगी ने इस सीट को जीतकर कांग्रेस के इस अभेद किले को बचाकर रखा 2006 से लगातार 2013 में हुए आम चुनाव में रेणु जोगी बतौर कांग्रेसी इस सीट से जीतती आई मगर 2018 में रेणु जोगी ने जेसीसीजे से अपनी दावेदारी की और विजयी होकर 66 साल के रिकॉर्ड को तोड़ दिया और बताया यह कांग्रेस का गढ़ नही यह व्यक्तिवादी सीट है जहाँ पार्टी नही चेहरा महत्वपूर्ण है .
भाजपा भले ही इन 66 सालो में कोटा नही जीती लेकिन आकड़ो की अगर बात करे तो भाजपा लगातार इस सीट में अपनी बढ़त बनाये रखी 2018 के परिणाम भी यह बताते है कि जब भाजपा कांग्रेस को तीसरे पायदान में ढकेलते हुए दूसरे पायदान में आई थी .
न्यूनतम आकड़ो की बात करे तो 1977 में भाजपा के डीआर अग्रवाल को मथुरा प्रसाद दुबे ने सबसे कम आंकड़े 74 वोट से हराया था . सर्वाधिक आकड़ो की अगर बात करे तो 2006 के उपचुनाव में रेणु जोगी ने भाजपा के भूपेन्द्र सिंह को 23470 वोट के अंतर से हराया था .
मन की बातों में मौन मतदाता , इशारों में समझना होगा रुझान , क्या है कोटा को लेकर माउथ केन्वासिंग ,
मतदाता पूरी तरह से मौन साधे हुए है जो 17 तारिक को मुखर होकर मतदान करेगा मगर इशारों में मतदाता कही न कही अपना रुझान बता ही देता है जैसे माउथ केन्वासिंग जो माउथ टू माउथ लोगो तक पहुँचती है कोटा विधानसभा अरपा के इस पार और उस पार दो भागों में बंटा हुआ है कुछ हिस्सा जीपीएम जिले में है तो कुछ बिलासपुर जिले में जहाँ जीत हार न बताकर लोग पहले दूसरे तीसरे स्थान स्थान पर मुहर लगा रहे कुछ बता रहे फाइटिंग जेसीसीजे और भाजपा में है तो कोई कांग्रेस को 2018 की तरह तीसरे पायदान में बता रहा है कही कांग्रेस अपनी बढ़त बना रही है तो बीजेपी भी कही से कमजोर नही दिखाई देती है
हालांकि इस चुनाव में मेडम जोगी का वोट चुनाव परिणाम तय करेगा अगर जेसीसीजे अपनी बढ़त बनाती है तो कांग्रेस का वोट घटेगा जो भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है वही जेसीसीजे का वोट अगर घटता है तो इससे भाजपा की मुश्किलें बढ़ेगी कुलमिला भाजपा और कांग्रेस दोनों की निगाहें मेडम जोगी पर टिकी हुई है .
जीत अटल होगी या भाग्य प्रबल संवेदनशीलता का कार्ड कितना कारगर होगा मेडम जोगी के लिए
बात करे सत्तादल के प्रत्यासी अटल श्रीवास्तव की तो अटल नाम कोई अनजान नही है प्रदेश के मुखिया के करीबी कहे जाने वाले अटल पर्यटन मंडल बोर्ड के अध्यक्ष भी है पहले भी अटल 2019 में बिलासपुर लोकसभा सीट से अपनी किस्मत आजमा चुके है तब अटल लगभग डेढ़ लाख वोटों से हारे थे लोकसभा के पहले भी अटल पार्षदी का चुनाव हार चुके है मुख्यमंत्री के करीबी होने का परिणाम अटल को मनचाही सीट कोटा विधानसभा से दावेदारी करने का मौका मिला है मगर जीत कितनी अटल है यह तो चुनाव के परिणाम से तय होगा मगर इस चुनाव में अटल ने पूरी ताकत झोंक दी है कुछ ग्रामीणों ने बताया कि उन्हें जरूरत की हो या बिना जरूरत की हर चीज मुँह खोलते ही मिल जा रहा है चुनाव में प्रलोभन देने के लिए प्रत्यासी तमाम तरीके से मतदाताओं को रिझाने का कार्य करते है मगर इस बार इतना बांट दिया गया है कि अब मतदाता भी असमंजस में पड़ गया है कि अगर इसका रिटर्न चुकाना पड़ा तो मतदाता कैसे इसको चुकायेगा अति से अधिक बांटना भी अब कांग्रेस के लिए गले का फांस बन गया है । वही जिसको ज्यादा मिला वह असमंजस में है जिसको कम मिला उसे संतोष नही है देखना होगा कि कि पैसे के दम पर कांग्रेस इस चुनाव में क्या परिणाम लाती है
भाजपा ने आयातित प्रत्यासी प्रबल पर अपना दांव आजमाया है हालांकि इसको लेकर प्रबल यह बताते है कि उन्होंने कोटा में ही अपना निवास बना लिया है अब जनता इन्हें कैसे स्विकारोत्ति देती है यह तो भविष्य में तय होगा मगर आकड़ो को देखे तो भाजपा के अपने कैडर वोट है जो 2003 से लेकर अब तक बढ़त में ही है बात करे 2013 के चुनाव की जिसमे भाजपा और कांग्रेस ही मैदान में थी तब कांग्रेस से रेणु जोगी 58390 वोट पाकर जीत दर्ज की थी वही भाजपा से काशी साहू 53301 वोट पाकर 5089 से हार स्वीकार की थी वही 2018 में तीन दल भाजपा कांग्रेस समेत जेसीसीजे से रेणु जोगी लड़कर चौकाने वाली जीत दर्ज कराई थी जिसमे जेसीसीजे पहले स्थान पर 48800 वोट पाकर विजयी हुई वही भाजपा दूसरे स्थान पर 45774 वोट प्राप्त की कोटा को अपना अभेद किला बताने वाली कांग्रेस तीसरे पायदान पर 30803 वोट प्राप्त की ।
परिणामतः देखे तो भाजपा के अपने कैडर वोट कम नही हुए
अब प्रबल का भाग्य कितना प्रभाव डालेगा यह तो 3 दिसम्बर को परिणाम से तय होगा अगर भाजपा यहाँ से जीतकर आती है तो 66 सालों के इतिहास बदल जाएगा .
जेसीसीजे से प्रत्यासी श्रीमती रेणु जोगी स्व. अजित प्रमोद जोगी की पत्नी है जो कोटा विधानसभा में 2006 से विधायक है जिनकी गांव – गांव में अपनी पैठ है हालांकि स्वास्थगत कारणों से मेडम जोगी कोटा में कई सालों से सक्रिय नही है चूंकि 2016 में अजित जोगी के निधन का सदमा कही न कही मेडम को हतोत्साहित किया है जिसके बाद से मेडम जोगी विधानसभा में नजर नही आई इस चुनाव में मेडम जोगी ने संवेदना का कार्ड खेला है वह यह कह रही है कि जोगी जी के जाने के बाद उनकी मान सम्मान प्रतिष्ठा कोटा की जनता के हाथ मे है वह अपील कर रही है कि कोटा विधानसभा से उन्हें विजयी बनाएं यही जोगी जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी
बताते चले कि कोटा विधानसभा में महिलाओं का वोट प्रतिशत ज्यादा है महिलाएं संवेदनशील होती है अगर यह तरीका महिलाओं में कारगर सिद्ध हुआ तो मेडम जोगी पुनः एक इतिहास रचते हुए कोटा में फतह हासिल कर जाएंगी
चूंकि कोटा एक ऐसा विधानसभा भी है जो खोह खोह में बसा हुआ है जहाँ कांग्रेस भाजपा के दोनों ही प्रत्याशियों की पहुँच से दूर है 17 साल से विधायक रही रेणु जोगी इन सभी ग्रामीण अंचलों से काफी अच्छी तरह से वाकिफ और पहचान बनाई हुई है देखना होगा कि क्या जोगी परिवार को पुनः क्षेत्र की जनता स्वीकारती है या नकारती है .