रिलेशनशिप में रहने वाले कथित लोग आज सारी मर्यादाएं तोड़ रहे हैं – दीदी माँ मंदाकिनी

0- राम के चरित्र से जाने क्या है प्रेम, मर्यादा, धर्म और भावना
0- संपूर्ण सनातन धर्म का जीवन दर्शन है रामचरित मानस
रायपुर। रामचरित मानस में केवल राम सीता का ही वर्णन नहीं है बल्कि संपूर्ण सनातन धर्म का जीवन दर्शन है, इसी उद्देश्य से रामचरित मानस की रचना गोस्वामी तुलसीदास जी ने की है। उस काल मेंं उन्होंने आज की परिस्थति व समयकाल को देखते हुए लिखा है जहां हम आज देख रहे है कि बहुत से लोग कथित रिलेशनशिप में रहने लगे हैं और प्रेम के नाम पर सारी मर्यादाएं तोड़ी जा रही है, जो ठीक नहीं है। व्यक्ति को किस प्रकार मर्यादित रहना चाहिए, उन्हें प्रेम करने का हक है या नहीं। प्रेम बड़ा है या मर्यादा ,धर्म बड़ा है या भावना बड़ी है, कैसे व्यक्ति को जीवन पथ पर चलना चाहिए? क्योंकि व्यक्ति कोई जड़ तत्व तो है नहीं जिसे आप बांधकर जेल खाने में रख दें। हमें यह सिखना होगा कि भगवान राम के चरित्र से कि उन्होंने हमें क्या शिक्षा दी है। मानस मर्मज्ञ दीदी माँ मंदाकिनी रायपुर के सिंधु भवन में श्रीराम कथा ज्ञान यज्ञ के दौरान तीन दिनों में पुष्प वाटिका प्रसंग के माध्यम से समाज तक सही संदेश देने जा रही हैं।
मीडिया से चर्चा करते हुए दीदी माँ मंदाकिनी ने बताया कि अमृत मंथन न जाने पुराणों में कितने वर्षो से चले आ रहा है। अमृत मंथन देवी-देवताओं और दैत्यों के बीच में हुआ। हम, आप और संसार का प्रत्येक व्यक्ति आज मंथन ही तो कर रहा है। सतयुग में जो मंथन हुआ और उससे 14 रत्न बाहर निकले, इनमें से ही कोई न कोई वस्तु तो हमारा है और इसलिए तो यह मंथन निरंतर चल रहा है।
सनातन धर्म का जिक्र करते हुए दीदी माँ ने कहा कि एक होता है कि बिना अमृत पीकर मरें नहीं और इसलिए सुखदेव जी ने अमृत पीने से इंकार कर दिया, इसका मतलब यह हुआ कि इनके पास इससे भी बड़ी वस्तु है। जिन-जिन ने अमृत पिया क्या वह अमर हो गए कभी वे दुखी नहीं हुए, ऐसा नहीं है। अगर आपकी आयु पूरी हो गई है तो आप इस संसार को छोड़कर चले जाएंगे ना, इसलिए अध्यात्म कहता है कि अमृत हमारा समाधान नहीं है। मानस में तीन बातें है – सत्यम, शिवम, सुंदरम। मानस परम शिवातत्व की स्थापना करता है और जो सत्य है वह शिव भी है और सत्य और शिव दोनों है तो वह सुंदर है और सौंदर्य भी परमसत्य है और तीनों के प्राकट्य के लिए गोस्वामी तुलसीदास ने तीन बार मंथन किया। सत्य के प्राकट्य के लिए उत्तर कांड में मंथन किया, शिवातत्व के प्राकट्य के लिए अयोध्या कांड में और सौंदर्य की स्थापना के लिए बाल कांड में मंथन किया। किसी भी साहित्य की परिपूर्णता तब मानी जाती है जब उनके गुणों का निचोड़ निकल जाए।
सिंधुभवन शंकरनगर में आज से प्रारंभ हुए श्रीरामकथा के लिए इस बार बाल कांड के पुष्प वाटिका प्रसंग चुने जाने पर दीदी माँ मंदाकिनी ने बताया कि इसमें गोस्वामी तुलसीदास जी ने सौंदर्य की प्राकट्य के लिए मंथन किया है। साहित्य में 9 रस होते है इनमें से एक रस श्रृंगार रस है क्योंकि सारे रसों में से श्रृंगार को रसराज भी कहा जाता है और श्रृंगार के मूल में है काम। जहां काम आ जाता है उसके साथ वासना और आवेष आना स्वाभाविक है। अगर श्रृंगार व्यक्ति को देह की ओर ले जाता है तो गोस्वामी तुलसीदास जी विवेक करके इसका हल निकाल लेते है, विवेक नगर में श्रृंगार की कहानी लिखी गई और वह जनक की पुष्प वाटिका थी।