भूपेश शासन का विशेष अधिकारी फिर सुर्खियों में! बालोद में होने वाला है महा अभिषेक? सत्ता गलियारों में गूंजा नया राग छप्पन… मुंगड़ा-मुंगड़ा!”

भूपेश शासन का विशेष अधिकारी फिर सुर्खियों में! बालोद में होने वाला है महा अभिषेक? सत्ता गलियारों में गूंजा नया राग छप्पन… मुंगड़ा-मुंगड़ा!”
रायपुर : – छत्तीसगढ़ की नौकरशाही और पुलिसिया राजनीति इस समय एक ही चर्चा पर अटकी हुई है कांग्रेस शासनकाल का वही कुख्यात, महा-दागी, दलाल अफसर, जिसकी तूती कभी पूरे रायपुर में बोलती थी, और जिसकी रंगदारी से लेकर आईफोन-डिप्लोमेसी तक की कहानियाँ आज भी सत्ता गलियारों में फुसफुसाई जाती हैं। सूत्र कहते हैं इस अफसर का बालोद अभिषेक लगभग तय है। सवाल यह नहीं कि पोस्टिंग मिलेगी या नहीं…सवाल यह है कि इतिहास कितनी बेपरवाही से खुद को दोहरा रहा है?
भूपेश काल की यादें –
उस समय आईएएस-आईपीएस की कतार में एक अदना अफसर का भारी आतंक था , भूपेश बघेल के शासन में जब बड़े-बड़े आईएएस अधिकारी समीर विश्नोई, रानू साहू, अनिल टुटेजा, टामन सिंह सोनवानी, निरंजन दास जांच एजेंसियों के सामने जमीन में गड़े पड़े थे…और आधा दर्जन आईपीएस अधिकारी भी केंद्रीय एजेंसी की चौखट पर काँपते दिखाई देते थे… तभी एक राज्य सेवा की महिला अधिकारी और उसका अधिकृत दलाल पुलिस अफसर पूरे शासन का अनौपचारिक रेवेन्यू इंजन बनकर उभरे थे। यह वही दलाल अधिकारी था जो सौम्या चौरसिया का अधिकृत कामकाज प्रबंधक माना जाता था, जो कबाड़ियों के संरक्षण का सेटअप संभालता था, जो उगाही के नेटवर्क में आधिकारिक मुद्रा की तरह चलता था, और जो सिविल लाइन थाना को अपनी निजी शाखा की तरह चलाता था।
भाजपा के व्यापारी हों, पत्रकार हों, या विपक्ष के लोग सब इसकी फर्जी कार्रवाईयों के डर से शरणागत हो जाते थे।
फाइलें अपने-आप सलाम करती थीं –
यह अफसर न आईएएस था, न आईपीएस। पर रुतबा ऐसा कि पर्दे के पीछे का मुख्यमंत्री कहलाता था। उसके पास एक ही डिग्री चर्चित थी मैनेजमेंट। और मैनेजमेंट ऐसा कि कौन पैसे से खुश होगा, कौन आईफोन से मान जाएगा, किसे धमकी चाहिए और किसे संरक्षण सबकी नब्ज इस आदमी को याद रहती थी।
राजधानी में एक मशहूर लाइन थी भाई… इससे मिल लो। काम भी होगा, और फोन भी मिलेगा।”
कबाड़ी से करोड़ों तक का साम्राज्य –
कांग्रेस शासनकाल में यह अधिकारी सिविल लाइन थाने में ऐसे बैठता था जैसे पूरा थाना उसकी निजी कंपनी का ऑपरेशन कैम्प हो।
कबाड़ियों का संरक्षण , अवैध कारोबार की वसूली , भाजपा नेताओं और पत्रकारों पर फर्जी प्रकरण , अधिकारियों की लाइन लगाना और खुद की पीठ थपथपाने का सिस्टम यह सब इसका अनौपचारिक पोर्टफोलियो था।
बस्तर वनवास –
सत्ता बदलते ही भाजपा ने इसे राजधानी से उठाकर सीधा बस्तर वनवास भेज दिया। पोस्टिंग थी नक्सल क्षेत्र की पर साहब की प्राथमिकता वही पुरानी राजधानी ही थी। बस्तर गया, पर राजधानी इसके दिल और सफर दोनों में बनी रही। भ्रष्टाचार का पैसा, दो साल की मेहनत, और पैरवी का नेटवर्क कहते हैं, बस्तर में रहते हुए भी इस अफसर ने 2 साल से अपने राजतिलक अभियान को बारीकी से साधा। भ्रष्टाचार से आए पैसों का उचित निवेश राजधानी के संगठनों की धड़कन पढ़ना, फाइलों की दिशा मोड़ना, और राजनीतिक जोड़-तोड़ सब इसने उसी मैनेजमेंट डिग्री से साध लिया। उसी बीच भाजपा संगठन के एक बिल्डर पर इसका विशेष प्रभाव बताया जा रहा है “मुंगड़ा” सुर वाले नेता की छत्रछाया भी इसे खूब मिल रही है। पोस्टिंग की पैरवी भी लगातार जारी है।
शेख बाबा का शिष्य –
पूरे रायपुर में यह भी मशहूर है कि यह अधिकारी राजधानी के सबसे प्रभावशाली पूर्व आईपीएस के सिद्ध शिष्य हैं। संकेत मिलते ही आदेश मानने की क्षमता यही इसकी सबसे बड़ी पूँजी है। सूत्रों की मानें तो यह अधिकारी अब बालोद जिले की कमान संभालने के बेहद करीब है। फाइलें अचानक हल्की, सिस्टम अचानक मेहरबान, और पुराने दाग अचानक फीके सबकुछ अपने-आप हो रहा है।
सत्ता गलियारों में एक ही गीत गूंज रहा है—
“छप्पन… मुंगड़ा-मुंगड़ा…
राजतिलक की करो तैयारी
आ रहे हैं भूपेश के ‘अभिषेक’!
एक ऐसा प्रदेश जहाँ आईएएस जेल में, आईपीएस जांच में, और दलाली की मिसाल बना अधिकारी लगभग जिले का राजा बनने को तैयार है वहाँ सवाल पोस्टिंग का नहीं,
पूरे प्रशासन की आत्मा का है। बालोद का यह संभावित अभिषेक सिर्फ एक ट्रांसफर नहींभूपेश शासन की गूंज, भाजपा शासन का एडजस्टमेंट, और छत्तीसगढ़ की पुलिस व्यवस्था की मजबूरी का नया अध्याय है।










