कोरबा लोकसभा का सियासी समीकरण , जेसीसीजे का भाजपा विलय क्या लाएगा रंग , भाजपा में ओवरलोडेड भीड़ भाजपा समर्पित कार्यकर्ताओ के लिए बना मुसीबत ,
गोंगपा के वोट से बदल सकता है समीकरण ,
रायपुर : – कोरबा लोकसभा सीट पर अब तक तीन लोकसभा चुनाव हो चुके हैं . जांजगीर सीट से परिसीमन में अलग होने के बाद पहला चुनाव वर्ष 2009 में हुआ था 2009 के लोकसभा चुनाव में कोरबा लोकसभा सीट से डॉक्टर चरण दास महंत और भाजपा से स्व. अटल बिहारी बाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला चुनावी मैदान में थे जिसमे करुणा शुक्ला को लगभग 20 हजार के अंतर से शिकस्त का सामना करना पड़ा था वही गोंगपा से स्व . हीरा सिंह मरकाम तीसरी ताकत बनकर उभरे थे गोंगपा को 32 हजार 962 वोट मिले थे . वोटों का आंकड़ा कुल मतदान का 2.58 फीसदी था . गोंगपा को मिले कम वोटों का फायदा इस चुनाव में कांग्रेस को हुआ था .
2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव : –
2014 में हुए लोकसभा चुनाव में गोंगपा के वोट से कांग्रेस को शिकस्त का सामना करना पड़ा था चूंकि 2014 के चुनाव में गोंगपा के वोट की बढ़त से कांग्रेस को खासा नुकसान हुआ और भाजपा प्रत्यासी रहे स्व. बंसीलाल महतो ने महज 4 हजार के आंकड़े कांग्रेस प्रत्यासी रहे डॉ. चरण दास महंत को हरा दिया था गोंगपा के वोट की बात करे तो गोंगपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में 52 हजार 753 वोट हासिल किए थे जिसका वोटिंग आंकड़ा 2009 के लोकसभा के बाद बढ़कर 3.71 फीसदी हो गया था .
वही 2019 के लोकसभा में गोंगपा का फिर वोट घट गया जिसका सीधा फायदा कांग्रेस को हुआ और कांग्रेस की प्रत्यासी रही ज्योत्सना चरण दास महंत ने लगभग 26 हजार वोट से भाजपा प्रत्यासी ज्योतिनंद दुबे को हरा दिया . 2019 में गोंगपा को 37 हजार 417 वोट मिले थे .
जेसीसीजे का भाजपा विलय क्या लाएगा रंग : –
राजनीतिक जानकार बताते है कि कोरबा लोकसभा सीट से अमित जोगी खुद को भाजपा का प्रबल दावेदार बता रहे थे चर्चाएं और कयासों का दौर यह था कि अमित जोगी और उनके समर्थक भाजपा से अमित जोगी की दावेदारी के लिए आश्वस्त थे . अमित जोगी की अमित शाह से मुलाकात की फ़ोटो सोशल मीडिया में वाइरल होने के बाद यह चर्चा और जोर पकड़ने लगी थी फिर अचानक कोरबा से भाजपा प्रत्यासी के रूप में सरोज पांडेय का नाम पर भाजपा ने मुहर लगा दी . सरोज पांडेय के नाम की मुहर लगने के बाद भाजपा में भी अंतर्कलह शुरू हो गया अंतर्कलह की वजह बनी बाहरी प्रत्यासी चूंकि सरोज पांडेय दुर्ग लोकसभा से आती है हालांकि कोरबा लोकसभा सीट आदिवासी बाहुल्य है आदिवासी बाहुल्य इस लोकसभा में पहले भी दो बार ब्राम्हण चेहरे को नकारा गया जिसमे करुणा शुक्ला और ज्योतिनंद दुबे उदाहरण है भाजपा ने आदिवासी बाहुल्य लोकसभा में पुनः ब्राम्हण कार्ड खेलते हुए सरोज पांडेय पर भरोषा जताया है देखना होगा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में ब्राम्हण चेहरा कितना रंग लाता है वही अमित जोगी को टिकट न मिलने के बाद लोकसभा चुनाव के पहले जेसीसीजे ने भाजपा में विलय कर लिया है अब यह विलय भाजपा के लिए कितना कारगर सिद्ध होगा यह तो चुनावी परिणाम से तय होगा .
भाजपा में ओवरलोडेड भीड़ भाजपा समर्पित कार्यकर्ताओ के लिए बना मुसीबत : –
एक तरफ कांग्रेस और स्थानीय पार्टी धड़ाधड़ भाजपा में प्रवेश कर रही है इससे भाजपा ओवरलोडेड हो चुकी है इसका खामियाजा कही न कही भाजपा के पुराने कर्मठ और समर्पित कार्यकर्ताओ के लिए परेशानी का सबब बन गया है चूंकि 15 साल भाजपा की सत्ता होने के बाद भी कार्यकर्ताओ ने उपेक्षा का सामना किया है वही 2023 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने पुनः प्रचंड बहुमत से सरकार बना ली जिसके बाद भाजपा कार्यकर्ताओ की उम्मीद थी कि अब उनकी सुनी जाएगी मगर जिस तरह से भाजपा में कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दल शामिल हो रहे है उससे भाजपा ओवरलोडेड हो चुकी है भाजपा भी समझ नही पा रही है कि अन्य दलों से आये लोगो को तरजीह दी जाए कि जो पुराने कर्मठ कार्यकर्ता है उनको तवज्जो दी जाए कांग्रेस और अन्य दल के लोगो की पूछ परख को देखकर भाजपा कार्यकर्ता असमंजस की स्थिति में है कही इस तरह से आ रही भीड़ से उनके राजनीतिक करियर पर क्या असर डालेगा . हालांकि भाजपा के पुराने कार्यकर्ता लोग दबी दबान में अपनी पीड़ा तो बता रहे है यह पीड़ा अगर बढ़ी तो यह भाजपा के लिए मुसीबत का सबब जरूर बनेगी .
गोंगपा के वोट से बदल सकता है समीकरण : –
पुराने आकड़ो पर अगर गौर किया जाए तो गोंगपा का वोट ही कोरबा लोकसभा का समीकरण बदलता आया है गोंगपा के वोट बढ़त से कांग्रेस के लिए और घटत भाजपा भाजपा के लिए मुसीबत का सबब बनकर आया गोंगपा से वर्तमान में पाली-तानखार से स्व. हीरा सिंह मरकाम के बेटे विधायक है सूत्र बताते है कि गोंगपा को मनाने के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों अपनी जद्दोजहद में लगे है अब यह मानमनौल के खेल में कौन अपनी गोटी सेट करता है यह तो परिणाम से ही तय करेगा मगर गोंगपा का वोट ही निर्णय करेगा कि आखिर गेंद किसके पाले में गिरेगी .
बाहरी और अंतर्कलह से झुझ रही भाजपा और पांच साल अपने लोकसभा क्षेत्र से नदारत रही कांग्रेस प्रत्यासी के बीच कांटे का मुकाबला है देखना यह है कि भाजपा कैसे बाहरी प्रत्यासी के आरोप अंतर्कलह से निपटती है और कांग्रेस कैसे पांच सालों के नदारत रहने के बाद अपने पक्ष में वोट मांगती है हालांकि इस चुनाव में नेता प्रतिपक्ष की भी साख दांव पर लगी है और उनकी राजनिति भी हासिये पर टिकी है चूंकि इस लोकसभा में चरण दास महंत को कही से टिकट नही मिली है चरण दास महंत अपनी पत्नी के लिए पूरी तन्मयता और ताकत से लगे हुए है यह चुनाव उनके राजनीतिक केरियर के लिए भी बड़ा प्रश्न चिन्ह बना हुआ है . अब परिणाम ही बतायेगे की आखिर कौन होगा लोकसभा का सरताज और किसके सर पर होगी ताजपोशी .