धरमजयगढ़ की रात कलेक्टर दफ्तर के बाहर सैकड़ों ग्रामीण, पर पुलिस सोती रही सवाल उठे इतनी बड़ी भीड़ पहुंची कैसे? धरमजयगढ़ में पुलिसिंग की पोल खुली, ग्रामीण बोले हमारे हक की रखवाली कौन करेगा?

धरमजयगढ़ की रात कलेक्टर दफ्तर के बाहर सैकड़ों ग्रामीण, पर पुलिस सोती रही सवाल उठे इतनी बड़ी भीड़ पहुंची कैसे? धरमजयगढ़ में पुलिसिंग की पोल खुली, ग्रामीण बोले हमारे हक की रखवाली कौन करेगा?

धरमजयगढ़ : – अडानी समूह की अंबुजा सीमेंट्स की प्रस्तावित कोल माइंस परियोजना के विरोध में गुरुवार की रात सैकड़ों ग्रामीण अचानक रायगढ़ कलेक्टर कार्यालय पहुंच गए। पुरूंगा, साम्हरसिंगा और तेंदुमुड़ी पंचायतों से आए ग्रामीणों ने जनसुनवाई रद्द करने की मांग करते हुए धरना शुरू कर दिया। पर सबसे बड़ा सवाल यह उठा इतनी बड़ी भीड़ प्रशासन की नाक के नीचे तक पहुंची कैसे?

रात भर सड़क पर फैली चादरें, खुले आसमान के नीचे सोती महिलाएँ-बच्चे, और कलेक्टर दफ्तर के चारों ओर गूंजते नारे… पर पुलिस बस खड़ी देखती रही। न रोकथाम, न समन्वय, न व्यवस्था धरमजयगढ़ की यह रात प्रशासनिक तंत्र की गहरी नींद का सबूत बन गई।

पुलिस की चुप्पी सुरक्षा या संवेदनहीनता?
कलेक्टरेट परिसर में भारी पुलिस बल मौजूद था, लेकिन भूमिका सिर्फ दर्शक जैसी रही। न किसी अधिकारी ने संवाद की कोशिश की, न कोई ठोस पहल दिखी। स्थानीय लोगों का कहना है जब हम गाँव से निकले, तो न किसी ने रोका, न पूछा। हम धरना स्थल पर पहुँचे तो पुलिस पहले से थी, पर बस देखती रही। जैसे सब कुछ पहले से तय हो।

यह वही पुलिस है जो कभी सामान्य सभा पर भी धारा 144 की दुहाई देती है, और आज सैकड़ों ग्रामीण बिना अनुमति के सरकारी परिसर तक पहुंच गए बिना किसी रोक-टोक के। सवाल उठता है क्या धरमजयगढ़ में अब कानून केवल कागज़ों में रह गया है?

प्रशासन की सुस्ती और पुलिस की नाकामी ने बढ़ाई बेचैनी – 
धरने के दौरान न कोई वरिष्ठ अधिकारी मौके पर आया, न किसी ने यह बताया कि प्रशासन ग्रामीणों से बात कब करेगा। लोग चना-मुर्रा खाकर रात गुजारते रहे, महिलाएँ बच्चों को गोद में लिए सड़क किनारे बैठी रहीं, और पुलिस वहीं डंडा टिकाए देखती रही। यह दृश्य संवेदना नहीं, व्यवस्था की नाकामी बयान कर गया जहाँ पुलिस के पास न रोकने की इच्छाशक्ति रही, न संवाद की जिम्मेदारी।

पुलिसिंग की विफलता या प्रशासनिक निर्देशों की कमी? – 
धरमजयगढ़ जैसे संवेदनशील क्षेत्र में, जहाँ कोल प्रोजेक्ट को लेकर पहले से असंतोष था, वहाँ खुफिया रिपोर्टिंग, भीड़ नियंत्रण और जनसंवाद की अग्रिम तैयारी प्रशासन की प्राथमिक जिम्मेदारी थी। पर ऐसा कुछ दिखा नहीं। भीड़ बिना अनुमति के सरकारी दफ्तर तक पहुंची, रात भर ठहरी और अगले दिन भी डटी रही यह सिर्फ़ पुलिस की निष्क्रियता नहीं, बल्कि प्रशासन की विफलता का चार्ट है।

ग्रामीणों का सवाल अगर पुलिस सोएगी, तो हमारी सुरक्षा कौन करेगा? धरने में शामिल ग्रामीणों ने कहा, हम तो शांतिपूर्वक बैठे हैं, पर अगर कोई उपद्रव या दुर्घटना होती, तो कौन जिम्मेदार होता? पुलिस बस खड़ी रही, पर हमें सुनने वाला कोई नहीं था। ग्रामीणों की इस बात में सिर्फ शिकायत नहीं, बल्कि डर भी झलकता है। डर इस बात का कि जब कलेक्टर कार्यालय के सामने जनता की आवाज़ पुलिस तक नहीं पहुंच रही, तो जंगल और खदानों के बीच उनके गांवों की सुरक्षा कौन करेगा?

धरमजयगढ़ की रात ने दिखाया कानून नहीं, इंसान सोया है
धरमजयगढ़ का यह धरना सिर्फ एक विरोध नहीं, बल्कि पुलिसिंग और प्रशासन की थकान का आईना है। जहाँ जनता भूख और ठंड में अपनी ज़मीन की रक्षा के लिए बैठी थी, वहीं सरकार की मशीनरी कुर्सी और मोबाइल पर टिकी रही।

प्रशासन को अब जवाब देना होगा –
भीड़ को कलेक्टर कार्यालय तक पहुंचने से रोकने के लिए क्या तैयारी थी? पुलिस की मौजूदगी के बावजूद संवाद क्यों नहीं हुआ? और जब संवेदनशील क्षेत्र में आंदोलन भड़कने की आशंका थी, तब जिला पुलिस और एसडीएम ने क्या रिपोर्ट भेजी? धरमजयगढ़ की यह रात सिर्फ़ ग्रामीणों के धैर्य की नहीं, बल्कि पुलिस की नींद और नाकामी की भी गवाही बन गई।

जब जनता सड़क पर जाग रही हो और पुलिस दफ्तर में सो रही हो तो आंदोलन सिर्फ़ विरोध नहीं रह जाता, वह सिस्टम के प्रति अविश्वास की दस्तक बन जाता है।

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