पार्ट : 1
मदनवाड़ा का सच न्यायिक जांच में कई खुलासे , आईजी बुलेट प्रूफ गाडी में बैठे रहे नक्सली हमले के शिकार हुए SP विनोद चौबे सहित 29 लोगो की निर्मम हत्या , वर्दी के पीछे का काला सच ,

पार्ट : 1
मदनवाड़ा का सच न्यायिक जांच में कई खुलासे , आईजी बुलेट प्रूफ गाडी में बैठे रहे नक्सली हमले के शिकार हुए SP विनोद चौबे सहित 29 लोगो की निर्मम हत्या , वर्दी के पीछे का काला सच

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रायपुर : – आज से 15 साल पहले छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले की वो घटना जिसने राज्य ही नही पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था मदनवाड़ा नक्सली हमला सूबे के इतिहास यह पहली ऐसी घटना थी जिसमे नक्सलियों से लोहा लेते हुए तत्कालिक राजनांदगांव एसपी विनोद चौबे समेत 29 पुलिस जवान शहीद हुए थे . इस घटना से पूरा देश सिहर उठा था एसपी विनोद चौबे बेहद ही ईमानदार , कर्तव्यनिष्ठ , और निडर अफसर के रूप में जाने जाते थे इनकी निडरता और फर्ज के लिए समर्पण ही था कि नक्सली इनके नाम से ही खौफ खाते थे यही कारण था कि नक्सलियो की हिटलिस्ट में श्री चौबे का नाम रखा गया था

2009 की इस दिल दहला देने वाली घटना के 11 साल बाद वर्ष 2020 में मामले की जांच के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एस. एन. श्रीवास्तव के नेतृत्व में न्यायिक जांच आयोग का गठन किया था . न्यायिक जाँच आयोग मदनवाड़ा हमले को लेकर जो खुलासे किए वह खुलासे चौकाने के साथ साथ कई सारे सवाल खड़े करते है चूंकि मामले की न्यायिक जांच रिपोर्ट में स्पष्ट आलेखित करते हुए कहा गया कि तत्कालीन क्षेत्र पुलिस महानिरीक्षक (आईजी ) मुकेश गुप्ता पर आरोप लगाते हुए उनकी भूमिका पर कई गंभीर सवाल सवाल खड़े किये और कहा कि यह घटना घमंड का परिणाम थी जिसमें अभियान का जो नेतृत्व किया जा रहा था वह बेहद ही गैरजिम्मेदाराना तरीके से किया गया . इस गैरजिम्मेदारी का परिणाम ईमानदार अफसर श्री चौबे सहित 29 जवानों को जान गंवानी पड़ गई  .

क्या खुलासे है जांच रिपोर्ट में : –

121 पन्नो की इस जांच रिपोर्ट में कई चौकाने वाले खुलासे है जिसकी पड़ताल हम बिंदुवार करेगे ताकि इस जांच रिपोर्ट की असलियत आमजन भी जान सके कि कैसे और किसकी सह में सूबे में नक्सलवाद पनप रहा है इन नक्सलियों को आखिर किसका संरक्षण होता है जो यह किसी की जान लेने में भी नही कतराते आखिर इनकी नेटवर्किंग इतनी मजबूत कैसे होती है
इस जांच में ऐसे ऐसे खुलासे है जो आपके पैरों तले जमीन खसका देगा

121 पन्नो की जांच रिपोर्ट में 1 से 23 पन्नों के बेसिक तथ्य : –

बेसिक तथ्य के दूसरे बिंदु में आलेखित है कि
श्री व्ही. के. चौबे, जो तत्कालीन पुलिस अधीक्षक थे जिनकी छवि एक निष्ठावान, ईमानदार पुलिस आफिसर के रूप में थी . वे राजनांदगांव घटना के कुछ माह पूर्व ट्रांसफर होकर आए थे तथा पुलिस अधीक्षक राजनांदगांव का प्रभार लेने के बाद उन्होने अनेकों कदम नक्सलियों विरुद्ध उठाये, जिसके कारण अनेक नक्सली जिनमें शहरी नक्सली भी शामिल थे. गिरफ्तार किये गए तथा साथ में शस्त्र , वायरलेस एवं नक्सली साहित्य भी पकड़ा गया . शहरी नक्सलाइट शान्तिप्रिय एवं मालती भी दोषी पाए गए एवं उन्हें दस वर्ष की कठोर सजा भी दी गई . यह सभी जो कदम श्री व्ही. के. चौबे द्वारा उठाये गए, तत्कालीन एस.पी. राजनांदगांव द्वारा नक्सली उस पर अतिक्रोधित हो गए एवम् उन्होंने श्री चौबे का नाम हिट लिस्ट में उपर रख दिया। यह तथ्य सभी पुलिस अधिकारियों की जानकारी एवं ज्ञान में था जिसमें आई.जी. एवं डी.आई.जी. पुलिस रेन्ज का शामिल थे .

बिना शासन की स्वीकृति के खोला गया मदनवाड़ा पुलिस कैम्प , मूलभूत सुविधाओं तक का ठिकाना नही : –

दरअसल बेसिक तथ्य के तीसरे बिंदु में मदनवाड़ा पुलिस कैम्प खोलने पर गंभीर सवाल खड़े करते हुए पूछा गया कि मदनवाड़ा पुलिस कैम्प बिना शासन की स्वीकृति के आखिर क्यो खोला गया
पढ़िए जांच रिपोर्ट के बेसिक तथ्य का तीसरा बिंदु

मदनवाड़ा पुलिस कैम्प क्यों , कैसे एवं किन परिस्थितियों में इसे खोला गया इस पर विचार करने की आवश्यकता है . शासन की नीति अनुसार , कोई भी पुलिस स्टेशन खोलने के पहले शासन द्वारा निश्चित मापदण्ड तय किये गये है , यहाँ यह नोट किया जाए कि सरकार हि है जो अन्तिम स्वीकृति प्रदान करने का स्त्रोत पुलिस स्टेशन या आउट पोस्ट खोलने का है तथा राष्ट्रीय पुलिस कमीशन तथा अन्य सम्बन्धित अथॉरिटी जो पुलिस स्टेशन या पुलिस आउट पोस्ट यदि सभी मापदण्डों से सन्तुष्टि होती है, इस सम्बन्ध में तत्सम्बन्धी दस्तावेज सम्बन्धित सरकार के पास प्रस्तुत करने की नीति निर्धारित है ताकि नया पुलिस कैम्प खोला जा सके , शुरू में छत्तीसगढ़ राज्य, मध्यप्रदेश राज्य का एक हिस्सा था .

4 : – यह तथ्य, सी.डी.टण्डन, एस.डी.ओ.पी. एवं अन्य साक्ष्य ओमकार देशमुख के साक्ष्य में आया कि मदनवाड़ा पुलिस कैम्प के खोलने के बाबत छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से कोई भी स्वीकृति नहीं थी  तथा कमीशन के रिकार्ड में ऐसा कोई भी दस्तावेज दिखाया नहीं गया जिससे यह पता चले कि महाराष्ट्र की सीमा पर मदनवाड़ा नया पुलिस स्टेशन या पुलिस कैम्प खोलने हेतु कोई स्वीकृति शासन की ओर से
प्रदान की गई थी ।

5 : – यह तथ्य ओमकार देशमुख के साक्ष्य के आलोक में आया कि श्री व्ही. के. चौबे के विरोध के बावजूद जो तत्कालीन एस.पी. राजनांदगांव थे, कि बरसात के मौसम म बिना किसी रहने की व्यवस्था के / अधोसंरचनाओं एवं अन्य सुविधाओं के अभाव में , छत्तीसगढ़ आर्म्स फोर्स श्री मुकेश गुप्ता तत्कालीन आई.जी. दुर्ग ने मदनवाड़ा पुलिस आउट पोस्ट की शुरूवात कर दी तथा 26.06.2009 को नारियल तोड़ते हुए मदनवाड़ा पुलिस कैम्प का उद्घाटन कर दिया . यह तथ्य साक्ष्य में भी आया तथा रिकार्ड पर भी आया कि वहां रहने की व्यवस्था नहीं थी , न ही टायलेट , बाथरूम या अन्य अधोसंरचना पुलिस आर्म फोर्स के लिए उपलब्ध नहीं थी . मुकेश गुप्ता तत्कालीन आई.जी. दुर्ग रेन्ज के आदेश पर भिलाई से लोहे के बैरक रहने के लिए बुलाए गए जो एक तरह से मेकशिफ्ट थे (हटाये जा सकते थे)। बल के कुछ जवानों को वृक्षो के नीचे शरण दी गई थी जैसा कि श्री सी.डी. टण्डन जो कि सीएएफ / मदनवाडा कैम्प के अधिकारी थे, के अनुसार ।

आईजी मुकेश गुप्ता का निर्देश ही श्री चौबे को मौत के मुंह मे ले गया  : –

सबसे अहम बिंदु इस बात पर है कि आखिर जिस रूट पर नक्सली घात लगाए बैठे थे श्री चौबे किसके निर्देश पर उसी रास्ते से वापस हुए जबकिं श्री चौबे ने मोटर साइकिल युक्त पुलिस जवानों को उस रास्ते से आने के लिए मना कर दिया था बेसिक तथ्य के पृष्ठ क्रमांक 18 के बिंदु 15 में इस बात को आलेख किया गया कि

यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि एक बार नक्सली हमले से बचने के बाद श्री व्ही.के. चौबे तत्कालीन पुलिस अधीक्षक ने सभी सम्बन्धित लोगों को निर्देश दिया कि वे उस क्षेत्र में न आएं . उसी तरह उन्होने मोटर साइकिल युक्त पुलिस वालों को भी आगे न बढ़ने का निर्देश दिया , भले जी कमजोर सिग्नल होने की वजह से उन्हें सूचित नहीं किया जा सका . परन्तु वे स्वयं उसी रास्ते से वापस आए जिस पर घात लगाए आक्रमण किया जा चुका था . यह बात रिकार्ड पर नहीं आई कि उन्हें उसी रास्ते से मानपुर आने का किसने निर्देश दिया जिस रोड-क्षेत्र में हमला हो चुका था . यदि मुकेश गुप्ता तत्कालीन आई.जी.पी. दुर्ग, विटनेस बाक्स में आते तो इस पहलू से इस पर प्रकाश डाला सकता था जबकि उन्होने विटनेस बाक्स में आने में अनिच्छा जाहिर किया . इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि वे कमीशन से कोई तथ्य छुपाना चाहते थे तथा इस पहलू पर प्रकाश नहीं डालना चाहते थे इससे यह इन्फरन्स निकाला जा सकता है कि उनके पास कुछ महत्वपूर्ण जानकारी थी जिसे वह कमीशन को नहीं बताना चाहते थे . यह प्रश्न अचानक उठता है तब तत्कालीन पुलिस अधीक्षक क्यों मानपुर पुलिस स्टेशन उसी रास्ते से गए कोई भी समझदार व्यक्ति उस क्षेत्र से नहीं जाएगा जहाँ नक्सलियों ने एम्बुश बिछा रखी है, यहां यह आवश्यक इन्फरन्स (Inference) लिया जा सकता है कि उसे वापस मानपुर आने कहा गया होगा तथा वह कौन सा व्यक्ति था ? वह कोई अन्य व्यक्ति नहीं होगा सिवाय आई.जी.पी. दुर्ग के, जो कि पूरी लड़ाई के क्षेत्र का कमाण्डर था नहीं तो ऐसा कोई कारण नहीं था कि शहीदहुए पुलिस अधीक्षक को फिर से उसी क्षेत्र से जाना पड़ा जो अनेक खतरों और जोखिमों से भरा हुआ था . जहाँ से वह खुद वापस लौटा था तथा उसने अन्य पुलिस के व्यक्तियों को उस क्षेत्र के करीब भी जाने से भी रोका था ।

आईजी मुकेश गुप्ता बुलेट प्रुफ गाड़ी में बैठे रह गए नक्सलियों ने SP समेत 29 लोगो की कर दी निर्मम हत्या : –

राज्य में जब भी नक्सली हमले का जिक्र आता है तो सबसे पहले मदनवाड़ा हमले की दुखद तस्वीर दिखलाई पड़ती है कि कैसे एक पुलिस महानिरीक्षक अपने ही कनिष्ठ अधिकारी समेत जवानों को मौत के मुंह मे ढकेल देता है और खुद बुलेट प्रुफ कार में बैठकर इस खौफनाक मंजर को निहारता है जबकिं न्यायिक जांच रिपोर्ट बताती है कि अगर आईजी गुप्ता चाहते तो योजनाबद्ध तरीके नक्सलों के इस जाल को तोड़ा जा सकता था और जहाँ इतने लोग असमय कालकलवित हुए उन्हें सकुशल बचाया जा सकता था मगर आईजी गुप्ता के मंसूबे अलग ही थे रिपोर्ट बताती है कि पुलिस बल को सुविधाओ के अभाव में मैदान में उतार दिया गया जिसमे पुलिस बल सिर्फ एकतरफा मार झेलने के लिए खड़ी रही नक्सलियों पर एक भी हमला नही किया गया न ही हमले को रोकने का प्रयास किया गया जिसमे नक्सलियों को एक भी चोट नही पहुँची न ही कोई हताहत हुआ जिससे आईजी गुप्ता की घनघोर लापरवाही काहीलपन सिद्ध होती है . जिसका खामियाजा पुलिस अधीक्षक समेत 29 लोगो को अपनी जान हाथ से धोकर चुकाना पड़ा .

वर्दी के पीछे का काला सच : –

पुलिस की वर्दी भले ही देश मे कानून की रक्षा और लॉयन ऑर्डर की स्थिति को संभालने के लिए दी जाती है मगर इस वर्दी के पीछे की अनेकों ऐसी कहानियां है जिसको सुनकर आपके होश उड़ जाएंगे कि कैसे वर्दी की आड़ में अपने ही कनिष्ठ अफसरो को षणयंत्र पूर्वक फंसाया जाता है या उन्हें मौत के मुंह मे ढकेलने  का घृणित प्रयास किया जाता है जिसकी बानगी आपको मदनवाड़ा के नक्सली हमले में देखने को मिलती है कि कैसे एक आईजी रेंक के अफसर ने अपनी कनिष्ठ पुलिस अधीक्षक के लिए सुनियोजित तरीके तरीके से षणयंत्र पूर्वक मौत के मुंह मे भेज दिया . इस तरीके की घटनाएं कही न कही समाज और देश के साथ साथ पूरी पुलिस बिरादरी के लिए एक बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा करती है कि कैसे पुलिस के अधिकारी वर्दी के पीछे काले कारनामे को संरक्षण देते है यह घटनाएं बताती है कि पुलिस जिसके हाथ मे पॉवर है वह कानून को किस तरह से रौंदते है और किसी भी हद तक चले जाते है आज इन्ही वारदातों की वजह से ही भा.पु.से. जैसा पद दागदार होता हुआ प्रतीत होता है समाज मे भी पुलिस को लेकर आमजनता में कोई खासा इज्जत नही है जबकिं केंद्रीय नेतृत्व लगातार बेहतर पुलिसिंग और पुलिस नवाचार की दुहाई देता हो मगर धरातल की तस्वीर कुछ और ही बया करती है .

तत्कालीन भूपेश सरकार में भी ऐसे कई मामले है जिसमे पुलिस की कार्रवाही पर कई सवालिया निशान खड़े होते है कि कैसे चंद आईपीएस अफसर सिंडिकेट बनाकर पूरे प्रदेश में भय और आतंक का माहौल बनाया और इस आदिवासी अंचल राज्य को भ्रष्टाचार और घोटालों का गढ़ बना दिया इस अफसरो की मेहरबानी से ही आज छत्तीसगढ़ जैसा सीधा साधा राज्य शराब घोटाले और जुए सट्टे जैसे घृणित कार्यो में सुमार हो गया राज्य की पहचान और राज्य की अस्मिता से जिस तरह से इन अफसरो ने खिलवाड़ किया इसी का नतीजा है कि केंद्र सरकार की जांच एजेंसियां इनपर अंकुश लगाने के लिए तैयार की गई और तमाम उन घोटालों भ्रष्टाचार समेत इन अफसरो की कारगुजारियों को उजागर किया और भाजपा अपने आरोप पत्र के पहले पन्ने में इन भ्रष्ट अफसरो की काली तस्वीर आमजनता के सामने पेश किया जिसका नतीजा जनता ने अपने जनाधार से दे दिया .

उल्लेखनीय है कि मदनवाड़ा नक्सली हमले की न्यायिक जांच रिपोर्ट के आधार से यह रिपोर्ट तैयार की है जिसे हमने कई पार्ट में बांटा है धीरे धीरे रिपोर्ट के पन्ने दर दर पन्ने हम मदनवाड़ा नक्सली हमले की एक एक बात हम सूक्ष्मता से आप तक पहुँचायेंगे और बताएंगे कि कैसे और किसकी संरक्षण में नक्सलवाद जैसा संघटन पनप रहा है .





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