2018 की तर्ज पर कोटा और मरवाही से कांग्रेस मुलाबले से बाहर तो नही ? इतिहास फिर तो नही दोहराया जा रहा ? लड़ाई में क्या भाजपा और छ.ज.का. ही मैदान में ?
गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही : – मरवाही और कोटा दोनों ही जगह सत्तादल यानि कि कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है उम्मीदवारों के नाम आने बाद से ही सियासी चर्चाओं का बाजार गर्म है उम्मीदवारों का नाम देखकर यह बात कही जा रही है कि कांग्रेस ने 2018 का इतिहास फिर से दोहराते हुए इस मुकाबले से खुद को बाहर कर लिया है और यह मुकाबला त्रिकोणीय न होकर भाजपा और छ.ज.का के बीच ही होने जा रहा है आप सोच रहे होंगे हम ऐसा क्यो कह रहे है तो 2018 के विधानसभा चुनाव के आकड़ों पर जाना होगा जहां मरवाही में कांग्रेस अपनी जमानत तक नही बचा पाई थी वही कोटा की अगर बात करे तो कांग्रेस तीसरे स्थान पर थी 2018 की गलतियों को सुधारना छोड़ सत्तादल ने पुनः वही गलती दोहराई है देखना दिलचस्प होगा कि कैसे सत्तादल इस चुनावी मुकाबलें में खुद को शामिल करती है .
कांग्रेस का नही जोगी का गढ़ रहा है मरवाही :-
कांग्रेस भले ही मरवाही सीट पर अपने गढ़ होने का दावा करती हो मगर इस मिथक को जोगी परिवार ने एक सिरे से खारिज करते हुए बड़े आकड़ो से विजयी होकर यह बताया कि इस क्षेत्र में जोगी परिवार का कितना दबदबा है . बात करे 2018 के आम चुनाव की जब मरवाही के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ होगा की कांग्रेस अपनी जमानत तक नही बचा पाई थी . 2018 के चुनाव में अजित जोगी छ.ज.का. से चुनाव लड़कर कांग्रेस को लगभग 50 हजार के आंकड़ों से परास्त किया था जबकि भाजपा से अर्चना पोर्ते दूसरे स्थान पर थी थी .
बात करे अजित जोगी के निधन पश्यात रिक्त हुई मरवाही सीट की तो 2020 में हुए उपचुनाव में भी कांग्रेस कोई बहुत बड़े आंकड़ों से विजयी नही हुई थी जबकिं वह उपचुनाव का दौर था जिसमे कहा जाता है कि चुनाव सत्ता सरकार लड़ती है जिसका उदारहण भी देखने को मिला कि केके ध्रुव की चुनावी उम्मीदवारी पर पूरा शासन-प्रशासन के साथ साथ प्रदेश के तमाम विधायक और मंत्रिमंडलो ने ध्रुव के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी तब जाकर कांग्रेस जीत हासिल कर पाई थी जबकि
जोगी पार्टी से कोई भी चुनावी रण में शामिल नही था एन मौके पर अमित जोगी का जाति मामले को लेकर नामांकन तत्कालीन कलेक्टर डोमन सिंह द्वारा निरस्त कर दिया गया था इसलिए अमित जोगी चुनावी रण में हिस्सेदारी नही ले सके जबकिं वर्ष 2013 में अमित जोगी बतौर आदिवासी मरवाही सीट से विधायक रह चुके है ख़ैर जाति मसले पर न जाते हुए 2023 के आम चुनाव में आते है
जहाँ कांग्रेस ने केके ध्रुव पर फिर से भरोषा जताते हुए मैदान में उतारा है नाम की घोषणा होते ही पार्टी में बगावती तेवर खुलकर सामने आने लगे है खुलेआम केके ध्रुव हटाओ मरवाही बचाओ के नारे लग रहे है इसके साथ ही पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा स्पष्ट कहा जा रहा है कि अगर प्रत्यासी नही बदला तो सभी स्तीफा देकर निर्दलीय प्रत्यासी उतारने की बात सामने आ रही है ऐसे में कांग्रेस के लिए यह डगर आसान नही है केके ध्रुव इन ढाई सालों के कार्यकाल में पार्टी के कार्यकर्ताओ को अपने खेमे में नही ले पाए है तो आमजन में क्या स्थिति होगी यह समझना कोई बहुत बड़ा गणितीय खेल नही है जबकि विरोध के सुर उपचुनाव से चले आ रहे है उपचुनाव का समय था पूरे प्रदेश का महकमें के साथ खुद प्रदेश के मुखिया केके ध्रुव के लिए लगे थे लिहाजा रूठे कार्यकर्ताओ को मना लिया गया था अब आम चुनाव में फिर से केके ध्रुव के लिए खुलकर बगावती सुर दिखलाई पड़ने लगे है जिससे यह समझा जा सकता है कि मरवाही में कांग्रेस की स्थिति अच्छी नही है ऐसे में 2018 के चुनाव को पुनः दोहराने जैसा माहौल बन चुका है जब कांग्रेस ने मरवाही से अपनी जमानत तक नही बचा पाई थी .
अब देखना मजेदार होगा कि कांग्रेस खुद को कैसे चुनावी रण में शामिल करती है जबकि भाजपा से पूर्व सैनिक प्रणव मर्पच्ची मैदान में है वही छ.ज.का. ने अभी तक किसी प्रत्यासी की घोषणा नही हुई है . जेसीसीजे से उम्मीदवार की घोषणा के बाद यह तो तय हो जाएगा कि आखिर लड़ाई किसके किसके बीच है .
कोटा के अभेद गढ़ को भेदने का सामर्थ्य दिखाया जेसीसीजे ने 2018 के चुनाव में तीसरे स्थान पर रही कांग्रेस
कोटा के हालात भी मरवाही जैसे ही बने हुए है जबकि कांग्रेस कोटा को खुद का अभेद गढ़ बताती है मगर इस मिथक को 2018 में जेसीसीजे से दावेदार रही रेणु जोगी ने तोड़ते हुए बड़े आंकड़ों से विजयी हुई आपको बताते चले कि 2018 के आम चुनाव में भाजपा से काशी साहू और कांग्रेस ने विभोर सिंह को प्रत्यासी के रूप में उतारा था जिसमे भाजपा दूसरे स्थान पर और कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही हालांकि कांग्रेस ने कोटा में अपनी जमानत बचा ली थी . राजनीति के जानकार बताते है कि कांग्रेस अपने अभेद गढ़ में अतिआत्मविश्वास मानकर कमजोर और नए नवेले चेहरे पर दांव खेला था खामियाजा कांग्रेस को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था .
हालात कुछ ज्यादा नही बदले है 2023 में भी कांग्रेस ने आयातित उम्मीदवार अटल श्रीवास्तव पर भरोषा जताया है अटल अपने राजनीतिक कैरियर में कभी भी प्रत्यक्ष चुनाव जीतकर नही आये है अटल का जो भी राजनीतिक वजूद है वह मनोनीत है . चुनाव लड़ना और जीतना दो अलग चीजे है इस बार भी स्थिति 2018 जैसी ही नजर आ रही है ऐसा इसलिए कि अटल की टीम में लगभग वही लोग है जो जोगी कांग्रेस से सत्ता लोभ को देखते हुए कांग्रेस में शामिल हुए है वही अभी जेसीसीजे ने कोटा से अपने प्रत्यासी की घोषणा नही की है अगर जोगी परिवार से कोई भी इस चुनावी मैदान में उतरता है तो यही जोगी कांग्रेस से कांग्रेस में शामिल लोग प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से जोगी कांग्रेस के लिए ही कार्य करेंगे जिसका खामियाजा अटल को उठाना पड़ सकता है . ऐसे में यह कहना अतिश्योक्ति नही होगी कि इस चुनावी रण में भाजपा और जेसीसीजे ही प्रमुख रूप से होंगे कांग्रेस के अटल को जोगी पार्टी के अंदरूनी कार्यकर्ताओ के माथे विधायकी का सपना देखना दूर के ढोल जैसा साबित होता नजर आता है . सियासी चर्चाओं का बाजार गर्म है अटल जीत के लिए कितने प्रबल साबित होते है यह तो भविष्य तय करेगा मगर शुरुआती समीक्षा तो यह बताती है कि खेल त्रिकोणीय न होकर राष्ट्रीय दल भाजपा और क्षेत्रीय दल जेसीसीजे के बीच है
देखना होगा कि अटल की क्या रणनीति है जोगी कांग्रेस से आये कांग्रेसी और पार्टी के ईमानदार कर्मठ कांग्रेसियों के बीच किसपर अटल भरोषा जताते है जो अटल के लिए निष्ठा से कार्य करेंगे