अफ़सर-ए-आ’ला (हर रविवार को सुशांत की कलम से)

अफ़सर-ए-आ’ला
(हर रविवार को सुशांत की कलम से)
डीजीपी की कुर्सी का फिल्मी किस्सा
छत्तीसगढ़ में डीजीपी की नियुक्ति और अशोक जुनेजा के एक्टेंशन का किस्सा किसी बॉलीवुड मिस्ट्री फिल्म से कम नही है . यह अनसुलझी पहेली सुशासन की सरकार पर कई सवालिया निशान खड़ा कर रही है . सवाल हो भी क्यो न डीजीपी जैसे संवेदनशील पद पर एक रिटायर अधिकारी को एक्सटेंशन पर एक्सटेंशन दिया जा रहा है तीसरी बार भी यह एक्सटेंशन सफल भी होता मगर पुलिस महकमे में एक जाबाज अफसर की एंट्री ने सारा समीकरण ही बिगाड़ कर रख दिया . उस जाबाज अफसर की गलती होती है कि वह सरकार के मंशानुरूप कार्य नही करता जिसका परिणाम यह निकलता है कि पहले उन्हें जेल भेजा जाता है फिर निलंबित और उसके बाद बर्खास्त कर दिया जाता है . लेकिन अंततः जीत सत्य की होती है और उनकी वापसी होती है . इसी बीच नया डीजीपी बनाने की चर्चाएं शुरू हो जाता है मगर इसमे तड़का यह है तत्कालीन सरकार के नौकरशाह यह नही चाहते कि उस अफसर की एंट्री को मगर वो कहावत है न ” सोची सोची न होवे जै सोची लखबार ” वह जाबाज अफसर डीजी की दौड़ में बुलेट ट्रेन की स्पीड से शामिल हो गए है .
घोटाले की इंतहा
सीजीएमएससी का चर्चित घोटाला चकित कर देने वाला है। एक्सपायरी दवाइयों की सप्लाई से लेकर रीएजेंट की खरीदी और जाने क्या क्या ? ये तो पहली खुदाई का नतीजा है जहाँ इतने सांप मिले हैं अगर ढंग से खुदाई हो जाये तो जाने कितने साँप और भी अंदर दबे होंगे जो आस्तीन की तरह सीजीएमएससी को खोखला कर दिए है . आपको बताते चलें कि नई सरकार के गठन के साथ ही कई अफसरों ने और कई राजनैतिक हस्तियों ने इस कॉरपोरेशन के एम . डी बनने बनाने के लिए मोलभाव किए थे . यह मोलभाव बताता है कि सरकारी तंत्र कितना बदनाम हो चुका है वो भी स्वास्थ जैसा महकमा इन बदनाम संस्थाओं को रास्ते पर लाना बड़ा मुश्किल काम है मगर शुरुआत हो गई तो आगे बढ़ा जा सकता है ऐसे कई मोक्षित है जो सीजीएमएससी में डुबकी लगाकर मोक्ष प्राप्त कर चुके है . वर्तमान के पदस्थ एमडी ने जिस तरह इस चक्रव्यूह को तोड़ने का फैसला लिया वह काबिलेतारीफ है . मगर इस रैकेट को तोड़ना है तो नियमो में कठोरता लानी होगी . कठोरता इसलिए भी चूंकि मसला स्वास्थ का है .
जुड़वा अफसर
छत्तीसगढ़ में एक ही उपनाम के दो अफसर से बड़ा कन्फ्यूजन पैदा कर दिया है यह जुड़वा नाम का किस्सा पहली बार नही हुआ है .पहले भी प्रसन्ना सरनेम के चक्कर में सामान्य प्रशासन विभाग त्रुटि सुधार जारी करना पड़ा चुका है . इस बार यह महामहिम का कार्यालय दो प्रसन्नाओं की गफलत का शिकार हुआ है आपको बता दें कि महामहिम को कौन से प्रसन्ना बताए गए थे और कौन से आए हैं ये अभी भी पता नहीं चल पाया है . अब यह मात्राओं की त्रुटी है या जानबूझ कर की गई गलती इसकी जांच होनी चाहिए आखिर एक ही गलती बार बार कैसे हो जाती है .
एज फैक्टर
प्रदेश के भाजपा संगठन में नगरीय निकायों और अन्य प्रतिनिधियों के चयन में एक शब्द बड़ा प्रचलित हुआ जो था एज फैक्टर कुछ दमदार प्रत्याशियों की टिकट सिर्फ एज फैक्टर के नाम पर काट दी गई . अगली कड़ी में निगम , मंडल , आयोगों की नियुक्तियों में अच्छी जगह तलाशने वाले दावेदारों ने भी अपनी उम्र पर नजर डालना चालू कर दिया है . सबसे मजेदार किस्सा ये है कि जिन दमदार कार्यकर्ताओं को एज फैक्टर के कारण टिकट नहीं मिली है वो घर से नहीं निकल रहे हैं . भाईसाहब लोगों का फोन आने पर धीरे से कहते हैं कि भाईसाहब अब थोड़ा “एज फैक्टर” होने के कारण दिन भर घूमना मुश्किल हो जाता है .अच्छा है इसी बहाने युवा नेतृत्व को आगे आने का मौका मिल रहा है .
जंगल मे मोर नाचा किसने देखा
पुरानी कहावत है जंगल में मोर नाचा किसने देखा तत्कालीन सरकार के समय से वर्तमान जंगल के सबसे बड़े अधिकारी ने जंगल को चारागाह बनाकर रख दिया है . तत्कालीन सरकार के समय इस अधिकारी से जंगल से पूरी चांदी काटी है कैम्पा योजना के नाम पर करोड़ो की अफरातफरी कर सरकारी खजाने को लूटा गया . इतना ही नही लेंटाना बजट की जांच हो जाएं तो पैरों तले जमीन खिसक जाएगी ज्ञातव्य हो कि तत्कालीन सरकार में जब लेंटाना का मामला विधानसभा में गूंजा था तब के विधानसभा अध्यक्ष ने भरी विधानसभा में पूछ दिया था यह लेंटाना होता क्या है अब सोचिए जब एक विधानसभा अध्यक्ष और कई बार के सांसद और अनुभवी राजनीतिकार व्यक्ति लेंटाना के बारे में नही जानते तो आप जनता को इसके बारे में क्या ही पता होगा .
लाख टके का सवाल अंत में
सी जी एम एस सी घोटाले में तत्कालीन सरकार के कौन से अफसर थे जिन्होंने ऐसे संवेदनशील विभाग को लूट का अड्डा बना दिया था ?
4 तारिक को अशोक जुनेजा का एक्सटेंशन खत्म होने पर क्या अरुण देव गौतम को मिल सकता है डीजीपी का प्रभार ?