जोगी कांग्रेस से कांग्रेस में आये लोगो के माथे कोटा सीट फतह करने की जद्दोजहद ,
बीजेपी की मुश्किलें भी कम नही ,
छ.ज.का से अमित की दावेदारी पड़ेगी भारी ,

जोगी कांग्रेस से कांग्रेस में आये लोगो के माथे कोटा सीट फतह करने की जद्दोजहद ,
बीजेपी की मुश्किलें भी कम नही
छ.ज.का से अमित की दावेदारी पड़ेगी भारी ,

गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही : – कोटा विधानसभा जो परंपरागत रूप से कांग्रेस का गढ़ कहलाता आया था मगर 2018 के विधानसभा में जेसीसीजे से उम्मीदवार रही रेणु जोगी ने भ्रम को तोड़ते हुए जीत हासिल की थी वही 2023 में पुनः चुनाव का समय है जिसमे सत्तासीन दल अपने इस गढ़ को पुनः वापिस लाने की जद्दोजहद में लगी हुई है कोटा विधानसभा इसलिए भी महत्वपूर्ण सीट है क्योंकि यह वही सीट है जहाँ से मध्यप्रदेश शासन हो या अविभाजित होकर अलग राज्य बनने के बाद का समय हो यहाँ से कई कद्दावर नेता रहे है जिसमे स्व. मथुरा प्रसाद दुबे , स्व. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल ऐसे अनेकों नाम है जिन्होंने देश की राजनीति में एक अलग ही कीर्तिमान रचा है यह मिट्टी ही है जो इन नेताओं को देश की राजनीति में अलग पहचान दिलाई है

जोगी कांग्रेस से कांग्रेस में आये लोगो के माथे कोटा सीट फतह करने की जद्दोजहद : –

मौसम भले ही इन दिनों ठंडा है मगर चुनावी सरगर्मियां अपने सबाब पर है कोटा सीट से सत्तादल ने अपने उम्मीदवार के रूप में बिलासपुर निवासी अटल श्रीवास्तव पर दांव खेला है अटल श्रीवास्तव को अलग से पहचान की जरूरत नही है प्रदेश की राजनीति में यह नाम काफी चर्चित है वर्तमान में अटल पर्यटन मंडल बोर्ड के अध्यक्ष के साथ साथ सीएम के करीबी कहलाते है इसके साथ ही अटल पहले बिलासपुर से पार्षद का चुनाव लड़ चुके है जिसमे उन्हें हार का सामना करना पड़ा था वही 2019 के लोकसभा चुनाव में भी अटल को करारी शिकस्त देते हुए अरुण सांव लगभग डेढ़ लाख वोट से हरा चुके है
बताते चले जिला जीपीएम में कोटा विधानसभा के  64 बूथ , 17 पंचायत , एवं 2 नगर पंचायत जिसमे पेण्ड्रा और गौरेला आते है जिसमें 2019 के लोकसभा चुनाव में अटल इन सभी जगहों से अपनी हार दर्ज करा चुके है . तत्कालीन लोकसभा की हार का एक प्रमुख कारण यह भी बताया जाता है कि उस समय भी अटल जोगी कांग्रेसी से सत्ता परिवर्तन के बाद कांग्रेस में शामिल लोगो पर भरोषा जताते हुए बूथ और सेक्टर प्रभारी बनाया था खामियाजा जीपीएम जिले के सभी बूथों में अटल काफी बहुमत से पीछे चले गए
वर्तमान में भी हालात जस के तस बने हुए है अटल आज भी जोगी कांग्रेसियो के इर्द गिर्द ही अपना विधायक बनने का भविष्य तलाश रहे है  संभवतः परिणाम 2019 जैसे ही हो सकते है चूंकि जोगी कांग्रेस से कांग्रेस में आये लोगो का इतिहास और वर्तमान कोई खास नही बदला है जिसका खामियाजा अटल को उठाना पड़ सकता है वही भाजपा कार्यकाल में कांग्रेस का झण्डा थामने वाले ईमानदार , कर्मठ , कार्यकर्ताओ को जोगी कांग्रेसियो के इशारों पर अकारण कभी निलंबित किया जाता है तो कभी बिना वजह जोड़ दिया जाता है इस बात को लेकर ईमानदार कार्यकर्ताओ में खासा रोष है जो इस चुनाव में कही न कही देखने को मिल सकता है अब देखना दिलचस्प होगा कि जोगी कांग्रेस से कांग्रेस में शामिल लोगों के माथे कैसे कांग्रेस के अटल अपनी नैया पार लगाते है

बीजेपी की मुश्किलें कम नही भाजपा के लिए अभेद को कैसे भेद पाएगी भाजपा

कोटा विधानसभा के इतिहास को अगर टटोला जाए तो यह तो स्पष्ट है कि इस विधानसभा से भाजपा कभी जीत नही पाई आंकड़े बताते है कि भाजपा कम ही आकड़ो से लेकिन कोटा विधानसभा कभी फतह नही कर पाई इस बार भाजपा ने नई रणिनीति के तहत हिंदूवादी नेता के नाम से विख्यात प्रत्यासी जशपुर के राजा स्व. दिलीप सिंह जूदेव के पुत्र प्रबल प्रताप सिंह जूदेव पर दांव खेला है भाजपा कार्यकर्ताओं में भी अंदरूनी इस बात को लेकर नाराजगी है मगर भाजपा अपने संवैधानिक नियमो के कारण विरोधाभाष सुर को नकारते हुए पार्टी के इस चयन को अपना लिया है अब यह प्रबल पर निर्भर करता है कैसे वह अपने रूठे कार्यकर्ताओ को मनाते है चूंकि जिला जीपीएम में भाजपा संगठन की भूमिका काफी निष्क्रिय रही है फिर चाहे जिलाध्यक्ष की बात हो या युवा मोर्चा की टीम यह संघटन अपने किसी भी कार्यक्रम में गिनती के ही कार्यकर्ताओ को जोड़ पाती थी . अब जब चुनाव सर पर है तो संघटन की भूमिका ज्यादा बढ़ जाती है मगर संघटन के पांच सालों के कार्यकाल को देखे तो कही से उम्मीद नजर नही आती की यह संघठन आम जनता को समझा पाए लिहाजा प्रबल के लिए मुश्किलें कम नही है अगर प्रबल को इस अभेद गढ़ को भेदना है तो अभिमन्यु की तरह इस गढ़ को अंदर तक जाकर चक्रव्युह को समझना होगा आखिर संघठन पांच सालों तक क्यो निष्क्रिय रही है अब जब चुनाव सर पर है तब संघठन कैसे अपनी जवाबदारियों को पूरा करती है .

छ.ज.का से अमित की दावेदारी पड़ेगी भारी ,

दोनों पार्टीयो ने अपने अपने प्रत्याशियों को घोषणा कर दी है वही जेसीसीजे ने अपने प्रत्यासी का एलान अब तक नही किया है हालांकि जेसीसीजे भी अपने पत्ते दोनों राष्ट्रीय दलों के बाद ही खोलना चाहती होगी ताकि चुनावी रणनीति बना सके
जेसीसीजे का जिक्र इसलिए भी जरूरी है क्योंकि कांग्रेस के इस अभेद किले को तोड़ने का सामर्थ्य अगर किसी मे रहा है तो वह जेसीसीजे ही है जिसने 2018 के चुनाव में कांग्रेस के विभोर सिंह को करारी शिकस्त दी थी वर्तमान में जेसीसीजे से श्रीमती रेणु जोगी विधायक है
मगर इन पांच सालों के रेणु जोगी स्वास्थगत कारणों से क्षेत्र से नदारत रही है जो आमजन में चर्चा का विषय है वही रेणु जोगी अपने कार्यकाल में कुछ ऐसा नही कर पाई जिसकी वजह से कोटा की जनता उन्हें फिर से स्वीकार कर पाए
वही चौक चौराहों की चर्चाओं की अगर बात की जाए तो यह चर्चाएं है कि कोटा विधानसभा से इस बार अमित जोगी अपना भाग्य आजमा सकते है रेणु जोगी की सहानुभूति और अमित की सक्रियता से कोटा अमित के लिए सेफ सीट भी है चूंकि यह विधानसभा चुनाव जेसीसीजे के साथ साथ अमित जोगी के आगामी राजनीतिक कैरियर को भी तय करेगा इसलिए महत्वपूर्ण यह हो जाता है कि अमित को अपनी सेफ सीट से चुनाव लड़ना चाहिए .
उल्लेखनीय है कि अमित जोगी अगर कोटा विधानसभा से मैदान में उतरते है तो जो जोगी कांग्रेस को छोड़कर कांग्रेस में शामिल है वह भी प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से जोगी के लिए कार्य करते हुए नजर आएंगे जो अमित के लिए काफी मददगार होंगे अमित को अगर अपना राजनीतिक कैरियर बचाना है तो उन्हें अपनी सेफ सीट ही खोजनी होगी अब तो यह भविष्य की गर्त में है अमित जोगी कौन सी सेफ सीट खोजकर चुनाव लड़ते है

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