काग़ज़ में सुधार, ज़मीन पर अंधेरा , छत्तीसगढ़ की शिक्षा को किसने बर्बाद किया?

काग़ज़ में सुधार, ज़मीन पर अंधेरा , छत्तीसगढ़ की शिक्षा को किसने बर्बाद किया?

(विशेष पड़ताल)

राजधानी : – छत्तीसगढ़ में स्कूल शिक्षा को सुधारने के नाम पर लगभग एक दशक पहले एक चमकदार प्रयोग शुरू किया गया था NGO आधारित शिक्षा सुधार मॉडल। काग़ज़ पर यह प्रयोग बेहद आकर्षक था। कहानी बेहतरीन नई तकनीक, आधुनिक शिक्षण पद्धतियाँ, विशेषज्ञ ट्रेनिंग…लेकिन जैसे-जैसे यह मॉडल बढ़ा, वैसे-वैसे जमीन पर पढ़ाई घटती गई। आज हालत यह है कि कक्षा के शिक्षक तक कहते मिल जाते हैं बच्चों को कम, सिस्टम को ज़्यादा पढ़ाया जा रहा है… और वह भी NGO नहीं, ऊँचे गलियारों के इशारों पर। यह कहानी किसी एक NGO की नहीं पूरे तंत्र पर NGO के बढ़ते कब्ज़े की है।

यह मॉडल शुरू कब हुआ? –
2014-15 में शिक्षा विभाग ने इस मॉडल की 4-5 NGO के साथ शुरुआत की। जिसका उद्देश्य था सीखने का स्तर सुधारना , शिक्षक ट्रेनिंग , रेमेडियल शिक्षण , नवाचार कार्यक्रम मूल्यांकन सुधार लेकिन 2020 के बाद NGO की संख्या 20 से अधिक पहुँच गई। और यहीं से कहानी दिशा बदल गई। कई NGO ऐसे थे जिनके तार विभाग के सलाहकारों, प्रभावशाली अफसरों, और उनके करीबियों से जुड़ते बताए जाते हैं।

उद्देश्य क्या था और क्या बन गया? –
काग़ज़ पर लक्ष्य था लर्निंग आउटकम सुधारना। लेकिन धीरे-धीरे यह मॉडल बदल गया इस उदाहरण देखिये फाइलें NGO बनाने लगे, फील्ड NGO चलाने लगे, और नीतियाँ भी NGO तय करने लगे। यानि विभाग फैसले कर रहा था, पर ड्राफ्ट और दिशा कहीं और से तय हो रही थी।

अब जमीन पर क्या स्थिति है? –
आधिकारिक डेटा खुद कहानी सुना देता है।

सीखने का स्तर राष्ट्रीय औसत से नीचे –
(NAS-2021 – आधिकारिक रिपोर्ट) राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (NAS-2021) कहता है कि छत्तीसगढ़ के विद्यार्थी भाषा, गणित और EVS में राष्ट्रीय औसत से नीचे रहे। कई कक्षाओं में सीखने का स्तर लगातार गिरावट में है। यानी सुधार के नाम पर जो मॉडल लगाया गया, उसी अवधि में बच्चों की वास्तविक सीखने की क्षमता कमजोर पड़ गई।

शिक्षक की भारी कमी और multi-grade कक्षाएँ –(UDISE+-2022/23 – आधिकारिक) UDISE+ की रिपोर्ट बताती है कि राज्य के 40% से अधिक स्कूलों में विषय-वार शिक्षक की कमी है। बड़ी संख्या में multi-grade कक्षाएँ, जहाँ एक शिक्षक 2–3 कक्षाएँ साथ पढ़ा रहा है। विज्ञान लैब, लाइब्रेरी, कंप्यूटर, इंटरनेट जैसी बुनियादी सुविधाएँ अधूरी है।यानि NGOs की रिपोर्ट में चमक है, पर स्कूलों में बच्चों के पास शिक्षक तक नहीं।

बच्चों की बुनियादी पढ़ाई लिखाई कमजोर –
(ASER-2023 – राष्ट्रीय फील्ड सर्वे डेटा) ASER के अनुसार तीसरी–पाँचवीं कक्षा के बच्चे कक्षा-स्तर का पाठ नहीं पढ़ पा रहे।गणित (जोड़–घटाव) में बड़ी गिरावट। ग्रामीण क्षेत्रों में learning crisis गहरा।यानी नींव ही कमजोर है ऊपर से लगाया गया मॉडल सिर्फ मेकअप जैसा है।

करोड़ों की परियोजनाएँ असर नहीं –
(RTI और विभागीय आँकड़ों से सत्यापित पैटर्न) 2018–24 के बीच NGO आधारित कार्यक्रमों पर सैकड़ों करोड़ खर्च हुए। पर समस्या यह कि कई MoU बिना खुली प्रतियोगिता (टेंडर) के हुए, Evaluation रिपोर्टें सेल्फ-डिक्लेरेशन पर आधारित थीं, Monitoring वास्तविक नहीं काग़ज़ी थी। यानि पैसा गया पर असर नहीं आया।

NGO का नेटवर्क विभाग से बड़ा हो गया –
जाँचों और शिक्षकों के बयान बताते हैं कि कई NGO सीधे जिला शिक्षा अधिकारियों (DEO, BEO) को निर्देश देते पाए गए। शिक्षकों की मासिक मीटिंगें NGO के हिसाब से चलने लगीं है। रिपोर्टिंग और डाक्यूमेंटेशन का बोझ बढ़ा। और धीरे-धीरे माहौल ऐसा बन गया कि शिक्षा विभाग चले या न चले… NGO जरूर चल रहा है।

स्कूल काग़ज़ में उत्कृष्ट, जमीन पर संघर्षरत
जमीनी हालात बताते है कि तीसरी का बच्चा दूसरी कक्षा स्तर पढ़ रहा है। पाँचवीं के बच्चे गणित में संघर्ष कर रहे , हाईस्कूल में अंग्रेज़ी कमजोर , स्कूल अवसंरचना में सुधार धीमा लेकिन NGO रिपोर्टों में उत्कृष्ट प्रगति दिखाई गई। काग़ज़ और हकीकत… दोनों की दुनिया अलग।

और इन सबके बीच सबसे ज़्यादा पिसा कौन? वही शिक्षक जो हर महीने 3–5 दिन के वर्कशॉप, डमी ट्रेनिंग, रिपोर्टिंग का पहाड़, NGO फोटो सेशन, मीटिंग–मीटिंग–मीटिंग शिक्षकों का सीधा सवाल है कि हम बच्चों को पढ़ाएँ या NGO की PPT पूरी करें? कक्षा का समय घटा, काग़ज़ बढ़े, और पढ़ाई पीछे खिसक गई। मगर सवाल वही छत्तीसगढ़ की स्कूल शिक्षा चला कौन रहा है? आज स्थिति यह है कि नीतियाँ NGO बनाते हैं , फाइलें NGO तैयार करते हैं , ट्रेनिंग NGO कराता है मूल्यांकन NGO लिखता है , रिपोर्ट NGO बनाता है और विभाग? सिर्फ अप्रूवल देता है।

यह मॉडल आखिर फेल क्यों हुआ? शिक्षा का निजीकरण परदे के पीछे से बढ़ना , NGO अधिकारी गठजोड़ मजबूत होना , बिना मापदंड के चयन , Evaluation कमजोर सीखने का स्तर नीचे गिरना , जमीनी सुधार गायब , इन सबसे बड़ा नुकसान उन विद्यार्थियों का हुआ, जो न सत्ता के करीब हैं, न सिस्टम के जो सिर्फ अपनी किताबों पर भरोसा करते हैं। लेकिन जब किताबें ही कमजोर की जा रही हों तो भविष्य कितना मजबूत बनेगा? कुलमिला के छत्तीसगढ़ में शिक्षा नहीं बदली शिक्षा का मॉडल बदल गया। जिसका लक्ष्य था बच्चे सीखें। पर नतीजा आया NGO बढ़े, बजट बढ़ा, रिपोर्ट चमकी… बच्चे पिछड़ गए। यही है उस बदलाव मॉडल की वास्तविक कहानी, जिसे काग़ज़ पर सुधार कहा गया, और जमीन पर अंधेरा फैलता गया।

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