पहले वीआरएस का आवेदन फिर एक्टेशन का प्रस्ताव आखरी पल में एक्सटेंशन को मंजूरी ,

पहले वीआरएस का आवेदन फिर एक्टेशन का प्रस्ताव आखरी पल में एक्सटेंशन को मंजूरी , बेबस और लाचार सरकार ने महामहिम के मान का ख्याल भी नहीं रखा ,
रायपुर – राज्य गठन के पच्चीस बरस में जनता ने सरकार को इतना बेबस और लाचार नही देखा जब सत्ता , सरकार फैसले लेने में पूरी तरह से असमर्थ दिखलाई पड़ी हो। सरकार फैसला न लें पाने को ही फैसला समझकर सुशासन की ढपली पीट रही है। इन पच्चीस वर्षों में स्व. अजित जोगी , रमन सिंह , भुपेश बघेल का कार्यकाल लोगो ने देखा। वर्तमान सरकार इतनी असमंजस की स्थिति में है कि हर छोटे बड़े फैसले के लिए दिल्ली का मुंह ताकते बैठी है। इस बेबसी और लचर व्यवस्था पर जीरो टॉलरेंस की बाते अब लोगो कपोल कल्पित लगने लगी है। सोमवार का दिन हुए घटनाक्रम ने प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था पर अनेको सवाल खड़े कर दिए है। जो बताने के लिए काफी है कि मुखिया की छवि रबर स्टैम्प से ज्यादा कुछ नही है।
महामहिम का मान –
दरअसल 30 जून याने कि सोमवार को मुख्य सचिव अमिताभ जैन को सेवानिवृत्त होना था। सोमवार की सुबह मुख्य सचिव गवर्नर हाउस पहुंचते हैं , जहां महामहिम उन्हें सेवानिवृत्त होने पर शुभकामनाएं देतें हैं। उसके चंद घंटे बाद ही उन्हें तीन माह का एक्सटेंशन मिल जाता है। अब सवाल यह उठता है कि क्या सरकार ने महामहिम को एक्सटेंशन के संबंध में कोई जानकारी नहीं दी गई ? जबकी रविवार को सूबे के मुखिया महामहिम से मिलने गवर्नर हाउस भी गए थे। इस दौरान माननीय ने महामहिम को सीएस को एक्सटेंशन देने केस संबंध में जानकारी नहीं दी थी ? अगर महामहिम को अवगत कराया गया होता तो अमिताभ जैन को सेवानिवृत्त के अवसर पर महामहिम राजकीय गमछा और स्मृति चिन्ह भेंट कर शुभकामनाएं नहीं दिए होते। चंद घंटों में ऐसी कौन सी परिस्थिति निर्मित हो गई की आनन-फानन में सीएस को तीन माह का एक्सटेंशन देने का प्रस्ताव दिल्ली भेजा गया और कुछ मिनटों में उसको अनुमोदन मिल गया। क्या राज्य के प्रथम व्यक्ति को गुमराह किया गया और उनके मान का भी ख्याल नही रखा गया।
क्या किया या क्या रह गया सवाल अनेक –
जनता ही नही ब्यूरोक्रेसी में बैठे लोग भी अब यह सवाल पूछ रहे है कि इन साहेब ने बीते पांच सालों में ऐसा क्या कर दिखाया और ऐसा कौन सा कार्य शेष रह गया कि तीन माह वो पूरा करेंगे जिसके लिए उन्हें एक्सटेंशन दिया गया है। सवाल अनेको है मगर जवाब महानदी के घुमावदार रास्ते मे कही खो गए है। कही यह कुछ चंद महीने खरीदने की कवायद तो नही है ताकि मनपसंद सीएस नियुक्त किया जाए। संभवतः यह भी हो सकता है कि पर्दे के पीछे कई बड़े काम अटके हो। जिन्हें पूरा होने में अभी समय है। जैसे साहेब ने लॉ विस्टा जैसी पॉश कॉलोनी से नाले को ही गायब करवा कर झूठा शपथ पत्र न्यायालय को पेश किया। इस झूठे शपथ पत्र के लिए बड़ी पेशगी भी मिली होगी ! शायद न्यायालय को गुमराह करने का इन्हें इनाम दिया गया है।
देख रहा है विनोद –
तत्कालीन सरकार के पांच साल जिस भाजपा विधि प्रकोष्ठ , प्रदेश भाजपा संगठन समेत 13 विधायको ने कांग्रेस काल मे बने मुख्य सचिव समेत तत्कालीन पुलिस महानिदेशक पर गंभीर आरोपो के साथ शिकायत दर्ज कर मोर्चा खोल दिया था। जिसका परिणाम यह निकला कि पहले पुलिस महानिदेशक जुनेजा को दो बार एक्सटेंशन देकर फर्ज की अदायक़ी की गई फिर जैन को एक्सटेंशन देकर कर्ज चुकाया जा रहा है। अब यह फर्ज और कर्ज क्यो किसका चुकाया जा रहा है यह अलग से बताने की आवश्यकता नही है। तत्कालीन सरकार के भ्रष्टाचार में डूबकर गोते लगाने वाले इस संस्कारी सरकार में खूब फल फूल रहे है। यह इस बात का सूचक है कि सरकार सत्ता की चाभी भले बदल गई मगर सत्ता के अंदरखाने में कोई और राज कर रहा है।
अस्थिरता का माहौल –
यह कोई सामान्य घटना नही है। इसका असर निचले स्तर की ब्यूरोक्रेसी पर भी पड़ने वाला है। इस पूरी घटना को देखकर सारे जानकर भौचक्के है। सवाल यह भी उठ रहा है कि राजधानी के कलेक्ट्री से लेकर मुख्य सचिव तक के सफर में क्या हुआ और अगले तीन महीने में क्या कमाल होने वाला है? यह बात लोगो के जेहन से नही उतर रही है। हालांकि यह तो समय ही बताएगा मगर उपलब्धियां गिनने वाले पहले की उपलब्धियों को टार्च लेकर खोज रहे है। जबकिं मंत्रालय की सीढ़ियों पर लिखा है स्थानातंरण , पद्दोनती , सेवानिवृत्त यह एक सामान्य प्रक्रिया है। इस संदेश के मार्फत शासकीय सेवको को इन प्रक्रियाओं को व्यक्तिगत रूप से अन्यथा न लेने की सलाह दी जाती है। लेकिन राज्य की राजनीति में एक आईएएस ब्यूरोक्रेट के मंत्री बनने के बाद से राज्य की प्रशासनिक परिदृश्य बुरी तरह से बीमार हो चुकी है। इस बीमार पंगु होते सिस्टम में महत्वाकांक्षी ब्यूरोक्रेट्स और पूर्व ब्यूरोक्रेट्स ने पूरे ढांचे को ही खोखला कर अपने मुताबित चलाने की कोशिश कर रहे है। हालात यह है कि प्रदेश भर में अस्थिरता का माहौल हो चुका है। जो अब साफ साफ दिखलाई भी देने लगा है।
प्रमुख पदों में वही नौकरशाह –
संस्कारी सुशासन कि सरकार को 18 महीने बीत चुके है। मगर सरकार नौकरशाही पर अपनी लगाम नही लगा पाई है। लगाएगी भी कैसे शीर्ष पदों पर वही नौकरशाह बैठे है जो तत्कालीन सरकार के आंखों के तारे थे। तब विपक्ष में बैठी भाजपा सरकार इन्हें कोसती थी। अब जब सत्ता बदली तो यह नौकरशाहो ने इस सरकार को भी अपने सांचे में ढाल लिया। 18 महीने की सरकार में यह सरकार न तो मंत्रिमंडल का विस्तार कर पा रही है न ही शीर्ष पदों में बैठे अधिकारियों को हटा पा रही है। पहले डीजीपी एक्सटेंशन , अब सीएस एक्सटेंशन इतना ही नही जंगल विभाग , लोक निर्माण विभाग , पुलिस विभाग कही भी देखिए उनकी ही तूती चल रही है जो तत्कालीन सरकार में स्लीपरसेल की तरह काम किए और इस शांति प्रिय राज्य को घोटालों भ्रष्टाचार का गढ़ बना दिया। 18 महीनों में ही हालात यह हो गए है कि देश ही नही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी राज्य को अच्छी नजर से नही देखा जा रहा है। तब तो यूएस गवर्नमेंट ने एडवाइजरी जारी कर अपने मुल्क के लोगो को छत्तीसगढ़ न आने की सलाह दे रहे है। यह क्यो और किसलिए हो रहा है यह सुशासन का ढिंढोरा पीटने से नही जमीनी हकीकत देखने मे समझ आएगा। की नौकरशाहों ने खुद को बचाने के लिए राज्य की अस्मिता से भी खिलवाड़ कर दिया।
अब भी यह खेल सरकार सत्ता संगठन को भले न समझ आए मगर प्रदेश की जनता समझदार है और सब देख सुन और समझ रही है। जैसे 15 सालों की सत्ता को महज 14 सीट में और भ्रष्टाचार के आकंठ में डूबी तत्कालीन सरकार का अहंकार को 34 सीटो में ला दिया। सरकार के कामकाज को तीन साल ही शेष है जनता फिर इन्हें वही लाकर छोड़ देगी जहाँ 14 से 54 का सफर कराया था।