कोटा विधानसभा के काबिल और क्षेत्रीय उम्मीदवारों के हाथ एक बार फिर झुनझुना पैराशूट से उतारे गए प्रत्यासी ,
गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही : – प्रदेश की चुनिंदा हाइप्रोफाइल सीटों में से एक कोटा विधानसभा जिसका एक अनोखा रिकॉर्ड है कि यहां से कभी भाजपा नही जीती और 2018 से पहले तक यह कांग्रेस का अभेद किले के रूप में दर्ज होता चला आ रहा था परंतु 2018 के चुनावी परिणाम के बाद इस मिथक को तोड़ते हुए श्रीमती रेणु जोगी जो पहले कांग्रेस के टिकट से कोटा में फतह हासिल करती आई थी उन्होंने 2018 में छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस से चुनाव लड़कर जीत का परचम लहराया राजनीतिक पंडित कांग्रेस की इस हार की मूल वजह कमजोर उम्मीदवार बताते है
बताते चले कि 2018 में कांग्रेस ने विभोर सिंह को प्रत्यासी के रूप में चयन किया था विभोर सिंह जो कि पुलिस अफसर की नौकरी छोड़कर अचानक से कांग्रेस में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में उदित हुए नतीजा वही कमजोर उम्मीदवार को जनता से सिरे से नकार दिया कांग्रेस के उतारे गए अप्रत्याशित उम्मीदवार को लेकर कोटा विधानसभा की जनता को हैरत में थी नतीजा कांग्रेस को अपने अमभेदगढ़ मे करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था .
वही दूसरी ओर 2018 में भाजपा ने समीकरण को भांपते हुए साहू समाज से काशी साहू पर भरोषा जताते हुए उम्मीदवार बनाया जो काफी कम मार्जिन से हारे थे
यह बात तो हुई 2018 के चुनाव की जिसका सीधा समीकरण यह है कि क्षेत्र की तासीर है उसके हिसाब से प्रत्यासी न उतारा जाए तो कोई भी अभेद किला ध्वस्त हो सकता है
2023 के चुनाव में कांग्रेस का एक्सपेरिमेंट पैराशूट विधायक को बनाया उम्मीदवार
सत्तासीन दल ने कोटा विधानसभा में फिर से नया एक्सपेरिमेंट करते हुए आयातित याने की पैराशूट उम्मीदार अटल श्रीवास्तव को उम्मीदवार बनाया है जिसे देखकर यह कयास लगाए जा रहे है कि पराक्रम से ज्यादा परिक्रमा महत्वपूर्ण है यह बात इसलिए महत्वपूर्ण है कि
कांग्रेस के पास कोटा विधानसभा में ही क्षेत्रीय , योग्य , कर्मठ उम्मीदवारों की भीड़ है उसके बाद भी सारे क्षेत्रीय उम्मीदवारों की काबिलियत को दरकिनार करते हुए पैराशूट उम्मीदवार पर दांव खेला गया है जो क्षेत्रीय उम्मीदवारों के गले से नही उतर रहा है
बात करे उम्मीदवार के रूप में चयनित
अटल श्रीवास्तव कि जो राजनीति के मंच पर जब भी प्रत्यक्ष प्रतिस्पर्धा में उतारे गए उन्हें करारी हार का सामना ही करना पड़ा है फिर चाहे अपने गृह क्षेत्र बिलासपुर से ही पार्षद चुनाव के नतीजे की बात की जाए या 2019 के लोकसभा चुनाव की जिसमे अटल को भारी बहुमत से हार का सामना करना पड़ा था
उल्लेखनीय है कि 2018 में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद से मुख्यमंत्री के खास माने जाने वाले अटल को सत्ता संघटन में खासा फायदा मिला पहले पार्टी संगठन में बड़े पद से आसीन हुए इसके बाद अटल को
पर्यटन बोर्ड का अध्यक्ष एवं केबिनेट मंत्री का दर्जा और फिर कोटा से टिकट लाने में भी कामयाब हुए
2019 लोकसभा चुनाव में लगभग डेढ़ लाख वोट से हारे थे अटल : –
बात करे 2019 के लोकसभा चुनाव की जिसमे अटल लगभग डेढ़ लाख वोट से करारी हार मिली थी जिला जीपीएम के लगभग बूथों में स्थितियां सही नही थी जानकर बताते है कि जिन्हें जीपीएम जिले के बूथों का प्रभार दिया गया था उनकी नकारात्मक छवि का खामियाजा अटल को उठाना पड़ा था यह नकारात्मक छवि के आज भी अटल श्रीवास्तव के करीबी के रुप में जाने जाते है इनके खास लोग जिन्होंने सरकार की रीपा जैसी महत्वाकांक्षी योजनाओं पर जमकर पलीता लगाया है ऐसे अनेकों कारनामे रहे है जिसका जिक्र आमजनमानस काफी चर्चा का विषय बना हुआ है
किस किस उम्मीदवार के हकों को मारकर कांग्रेस ने अटल श्रीवास्तव को बिलासपुर से आयातित किया गया
इस लिस्ट में पहला नाम अरुण चौहान का आता है जो कोटा विधानसभा के मूल निवासी है जिनकी क्षेत्र में अच्छी खासी पैठ भी है जिला पंचायत का चुनाव लड़कर सदस्य बनने के बाद जिला पंचायत अध्यक्ष के पद पर आसीन हुए जो कोटा विधानसभा से प्रबल उम्मीदवार थे
लिस्ट में दूसरा नाम संदीप शुक्ला जो मूलतः बेलगहना के निवासी है युवा हैं वर्तमान में कोटा मंडी के अध्यक्ष है एवं इसके पूर्व में कोटा जनपद पंचायत के अध्यक्ष भी रह चुके है क्षेत्र में अच्छी पकड़ स्वच्छ छवि जननेता की छवि है वही 1952 की विधानसभा के लेकर 2007 के पहले लगभग 50 सालों का इतिहास रहा है जहाँ से सिर्फ ब्राम्हण विधायको ने ही प्रतिनिधित्व किया है
ऐसे ही लिस्ट में उत्तम वासुदेव भी है जो दो बार के युवा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष निर्वाचित हुए साथ ही AICC के सदस्य थे अपने जनपद क्षेत्र से जनपद सदस्य रह चुके है प्रदेश कांग्रेस के महासचिव थे और मौजूदा सरकार में युवा आयोग के सदस्य भी थे लेकिन जो सम्मान और स्थान इनको मिलना चाहिए था वह नही मिला बल्कि इनको प्रमोशन न करते हुए डिमोशन कर दिया गया और जीपीएम का जिलाध्यक्ष बना दिया गया और सीमित कर दिया गया जबकि पहले प्रदेश महासचिव रहते हुए खुद कई जिलों के प्रभारी रहते थे।
आगे नामो की फेहरिस्त में मनोज गुप्ता का नाम भी आता है जिनको महंत के करीबी होने और मुख्यमंत्री के खास न होने का खामियाजा उठाना पड़ा जबकि मनोज गुप्ता वह नाम है जो क्षेत्र में कांग्रेस की कमान को जोगी के खौफ को दरकिनार करते हुए जब कोई झंडा उठाने वाला भी नही था तब सभी को एकजुट रखते हुए सदैव पार्टी हित मे कार्य किया इनका भी राजनीति इतिहास इनकी काबिलियत को सिद्ध करता है क्योंकि यह भी साधारण परिदृश्य से उठकर मरवाही जनपद जो कि आदिवासी आबादी वाला क्षेत्र है वहां से ये जनपद पंचायत के उपाध्यक्ष थे, मौजूदा सरकार में हर कोई क्षेत्रवासी यह कयास लगा रहा था कि इनको किसी विशेष पद से नवाजा जाएगा, ऐसा तो कुछ हुआ नही बल्कि जिलाध्यक्ष के पद से हटाते हुए प्रदेश संयुक्त महासचिव बना दिया गया जो कि इनकी काबिलियत के साथ घोर नाइंसाफी है।
नगर पालिका अध्यक्ष राकेश जालान पेण्ड्रा नगरपालिका के वर्तमान अध्यक्ष है युवाओं के बीच तगड़ी पकड़ रखते है और इनके 4 वर्ष के कार्यकाल में अभूतपूर्व कार्य नगरपालिका पेण्ड्रा में हुए है जिसकी क्षेत्रीय जनता काफी सराहना भी करते हुए नजर आते है क्षेत्रिय जनता भी इन्हें विधायक के रुप में चाहती थी
लेकिन इनको भी झुनझुने से ही संतुष्ट होना पड़ा
लिस्ट में एक नाम रमेश साहू का भी आता है क्षेत्र के सफल व्यवसायी कोटा विधानसभा के महत्वपूर्ण पेंड्रा एवं गौरेला नगर पालिका दोनों जगह इनका एवं परिवार का व्यवसाय होने के कारण अच्छी पकड़ है वर्तमान में पेंड्रा नगर पंचायत में पार्षद है कांग्रेस के पिछड़ा वर्ग के जिलाध्यक्ष है साहू समाज के भी जिलाध्यक्ष है इनको नजरअंदाज कर बाहर से प्रत्याशी चयन करने के कारण साहू समाज में भी काफी नाराजगी देखने को मिल रही है
कुलमिला कर यह बात तो स्पष्ट है कि कोटा विधानसभा की अपनी अलग पहचान अलग तासीर है इस क्षेत्र की जनता का मूड अलग ही मिजाज पर होता है जैसे ही कांग्रेस ने उम्मीदवार की घोषणा की है तब से आमजन से लेकर चौक चौराहों में भी चुनावी समीक्षाओं का दौर शुरू हो गया है देखना होगा कि लोकसभा चुनाव में लाखों वोट से हारने वाले कांग्रेस उम्मीदवार पर कोटा क्षेत्र की जनता कितना विश्वास जताती है