बुलेट प्रूफ जैकेट खरीदी में घोटाला नक्सल मोर्चे पर एक काला धब्बा ,

बुलेट प्रूफ जैकेट खरीदी में घोटाला नक्सल मोर्चे पर एक काला धब्बा ,
रायपुर : – तत्कालीन सरकार के समय भ्रष्टाचार और घोटालों का ऐसा खेल खेला गया इसमे कोई विभाग अछूता नही था यहाँ तक नक्सल मोर्चे में डटे जवानों की जीवन तक से खिलवाड़ करने की साजिश रची गई जो नक्सल मोर्चे में काला अध्याय की तरह दर्ज हो गया . पूर्ववर्ती सरकार के समय इन्ही जवानों के जीवन को संकट में डालने के लिए करोड़ो की गुणवत्ता हीन बुलेट प्रूफ जैकेट का खरीदी का मामला इन दिनों फिर सुर्खियों में है .
उक्त मामले की इसकी शिकायत भाजपा नेता ने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) तक की थी . यह मामला आज भी नक्सल मोर्चे पर छत्तीसगढ़ सरकार के माननीयों और पुलिस मुख्यालय (पीएचक्यू) के कुछ आला अफसरों के काली करतूत के बदनुमा दाग के रूप में मौजूद है . बताते है कि इसी काली कमाई के खेल में तत्कालिन मुख्यमंत्री के सबसे करीबी आईएएस अफसर और पीएचक्यू के आला अफसरों के नाम सामने आए थे .
समय बिता सरकार बदली और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के मार्गदर्शन और सतत निगरानी में जवानों ने भारी संख्या में नक्सलियों को मार गिराया इसकी चर्चा पूरे देश में हो रही है मगर जवानों के जीवन से खिलवाड़ करने वाले जिनकी वर्दी से ही दागदार है वह इसका क्रेडिट लेने में जुटे हुए है .
मसला यह है कि पुलिस मुख्यालय ने वर्ष 2021-2022 में करीब 13 करोड़ रूपए की बुलेट प्रूफ जैकेट की खरीदी की थी . रक्षा उपकरणों की खरीदी की प्रक्रिया और गुणवत्ता के मामले में आपूर्तिकर्ता कंपनी खरी नही उतरी थी . इसके बाद भी तत्कालिन मुख्यमंत्री के सबसे पावरफुल आईएएस अफसर ने अपने पद और प्रभाव का दुरुपयोग करते हुए आपूर्तिकर्ता कंपनी को टैंडर सौंप दिया . जबकि टैंडर की शर्तों का समुचित पालन करने वाली कंपनियों को प्रतियोगिता से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था .
जिस कंपनी को बुलेट प्रूफ जैकेट की आपूर्ति का ठेका दिया उक्त निविदा रिकॉर्ड में कंपनी का पता – ठिकाना और बुलेट प्रूफ जैकेट निर्माण का हवाला दिया था मौके का जायजा लेने पर पता चला कि बिलासपुर के सिरगिट्टी सटे परसदा इलाके में दूर – दूर तक बुलेट प्रूफ जैकेट का कारखाना है ही नही इस कंपनी का ऑफिसियल एड्रेस के साथ कॉर्पोरेट ऑफिस भी कोई आता – पता नहीं है, यहाँ का एक कमरा अरसे से बंद है फर्जीवाड़ा सामने आने के बावजूद पीएचक्यू ने टेंडर की सभी शर्तो का पालन करने वाली प्रतिस्पर्धा में शामिल बुलेट प्रूफ जैकेट निर्माता दो नामी कंपनियों कों बाहर का रास्ता दिखा दिया था। इनमे से एक कंपनी दिल्ली तो दूसरी बुलेट प्रूफ जैकेट निर्माता कंपनी कानपुर की थी।
जिसे टेंडर दिया गया वह प्रगति डिफेंस सिस्टम बिलासपुर के टेंडर स्वीकृति में मुख्य भूमिका तत्कालीन सुपर सीएम आईएएस अधिकारी ने निभाई थी . इस दौरान वे उद्योग विभाग के सचिव के पद पर अपनी सेवाएं दे रहे थे । बताते है कि टेंडर कमेटी में शामिल तत्कालीन समय और वर्तमान में DGP अशोक जुनेजा, ADGP प्रदीप गुप्ता और DIG मनीष शर्मा की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है। इतना ही नही बुलेट प्रूफ जैकेट का बैलेस्टिक टेस्ट पहले दौर में फेल हो गया बावजूद इसके इन्ही अफसरों ने अपने पद और प्रभाव का दुरुपयोग करते हुए दोबारा इसका टेस्ट करवाया था, ताकि जवानों के जिंदगी से समझौता करते हुए तत्कालीन समय के नौकरशाह लाभान्वित किया जा सके . जबकि दूसरे दौर में बैलेस्टिक रिपोर्ट में सैंपल ओके होने से पूर्व ही बुलेट प्रूफ जैकेट की सप्लाई कर दी गई थी। इस दौरान कमेटी में शामिल अफसर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे .

इसकी शिकायत भाजपा नेता नरेश गुप्ता पीएमओ को की थी और जवानों के जिंदगी का हवाला देते हुए सीबीआई जांच की मांग की थी। दिल्ली से जब जवाब तलब किया गया तब आनन-फानन में मुख्य सचिव कार्यालय ने शिकायत को संज्ञान में लेकर गृह विभाग और पुलिस मुख्यालय को खरीदी की प्रक्रिया और शिकायत का हवाला देते हुए निष्पक्ष जांच के निर्देश दिए थे।
सवाल यह उठता है कि अब तक जांच की प्रक्रिया कहा तक पहुँची मामले में दोषी कौन था, किसके कहने पर यह फर्जी टेंडर कंपनी को दिया गया इस पर कोई भी जवाब देने को स्थिति में नजर नही आता इतने बड़े घोटाले और नक्सल मोर्चे में डटे जवानों की सुरक्षा में इतनी बड़ी चूक की जांच अब तक सवालों के घेरे में है .