भईया का मैनेजमेंट सेठ जी की किस्मत और छोटे भाई का कार्यकाल , कौन होगा पेण्ड्रा का सरताज

भईया का मैनेजमेंट सेठ जी की किस्मत और छोटे भाई का कार्यकाल , कौन होगा पेण्ड्रा का सरताज
पेण्ड्रा : – चुनावी बिगुल बज चुका है और चुनावी उम्मीदवारों का एलान भी हो चुका है जैसा चुनाव पेण्ड्रा की जनता चाहती थी ठीक वैसा ही समीकरण तैयार हो चुका है. चुनावी इतिहास खंगाले तो यह रहा है कि यहाँ की जनता ने हर बार सरल , सहज , और आसानी से उपलब्धतता वाले व्यक्तित्व का ही चयन किया है देखना यह कि इस खांचे में कौन सटीक बैठता है एक तरफ भईया का ताबड़तोड़ मैनेजमेंट और पुराना राजनीतिक अनुभव है तो वही सेठ जी किस्मत है किस्मत इसलिए क्योंकि यह शहर में इतिहास में पहली बार हुआ है जब किसी राष्ट्रीय दल ने किसी प्रत्यासी पर दूसरी बार भरोषा जताया है जबकि पहली बार मे सेठजी को शिकस्त का समाना करना पड़ा था वही छोटे भाई ने नाम से प्रख्यात और निवर्तमान अध्यक्ष ने भी निर्दलीय ताल ठोककर इस चुनाव को और भी रोचक बना दिया है ।
भईया का मैनेजमेंट : –
जीत अटल है का दम्भ भरते हुए भईया चुनावी रण में कूद चुके है कई दिनों की मशक्कत के बाद भईया ने राजधानी से टिकट लाकर यह तो बता दिया कि भईया का मैनेजमेंट तगड़ा है . चुनाव में मैनेजमेंट सबसे महत्वपूर्ण होता है जिसमे भईया को सिद्धस्त है भईया का सबसे बड़ा प्लस पॉइंट है कि भईया के पास व्यक्तिगत एक बड़ी और रिलायबल टीम है इसके साथ पार्टी का सिम्बोल भी है . जैसे ही भईया के नाम की घोषणा हुई तो एक तरफ फटाके फुट रहे है तो वही चुनावी फुफाओ में इस्तीफे का दौर शुरू हो गया है . महत्वपूर्ण बात यह है कि नगरीय चुनाव जीतने का अर्थ है गंदगी , नाली साफ सफाई और नगर की मूलभूत सुविधाएं प्राप्त कराना है अब भईया का औरा अलग लेबल का है लोग असमंजश में है क्या नाली साफ सफाई या कचरा उठाने के लिए भईया को कॉल लगा पाएंगे ? वही एक बात और है भईया का जलवा शहरी इलाके में तो बरकरार है मगर आखिरी छोर वाला इलाका भईया की पहुँच से दूर नजर आता है . अब देखना है कि भईया क्या जनता को यह विस्वास दिला पाते है कि वह सरलता सहजता से उपलब्ध होंगे और देखना यह भी है कि आखिर छोर तक अपनी भईया अपनी पहुँच कैसे बनाते है . हालांकि भईया के लिए यह आसान डगर नही है यह चुनाव भईया के राजनीतिक भविष्य को भी तय करेगा .
सेठ जी की किस्मत : –
सेठ जी किस्मत के बहुत ही धनी व्यक्ति है अब इस किस्मत में राजयोग लिखा है या नही यह तो भविष्य में तय हो होगा मगर सेठ जी पूरे जोश उमंग से मैदान में कूद गए है . एक निर्विवाद छवि और सफल कारोबार में अलग पहचान रखने वाले सेठ का यही प्लस पॉइंट है . वही सेठ जी के मैदान में कूदने से भाजपा में भी बगावती सुर नजर आने लगे है कुछ पार्षद निर्दलीय उम्मीदारो के पास भटकने की खबर चर्चाओं में है . सेठजी के लिए सबसे मुश्किल टास्क है सबको साधना और एक पार्टी को एक झंडे के नीचे लाना टास्क शब्द इसलिए कह रहे है चूंकि सेठजी पिछली हार के बाद कभी सक्रिय नजर नही आए अब अचानक से सेठजी के मैदान में आने से अंदरूनी भीतरघात की चर्चाएं जोरो में है . सवाल यह भी लोग पूछ रहे है कि इतने बड़े कारोबार के बाद सेठजी जनता की समस्याओं के लिए समय निकाल पाएंगे या नही . सेठजी को लेकर एक चर्चाएं और भी है कि सेठजी सुबह 10 के पहले और रात के 10 के बाद फोन नही उठाते हालांकि सेठजी सुबह 10 के बाद फोन में ही सक्रिय रहते है अब यह फोन लोगो की समस्याएं सुनने या व्यापारिक कारणों से बिजी रहता है यह सेठजी ही जानते होंगे . सेठजी को इस चुनाव में काफी ज्यादा मेहनत और लोगो को संगठित करना पड़ेगा तब ही नैया पार लग सकती है अन्यथा इतिहास खुद को दोहराता है .
छोटे भाई का कार्यकाल : –
इन सबके बीच छोटे भाई का स्वैग है छोटा भाई पांच साल को लेकर इतना कॉन्फिडेंट है कि कह रहे है सरकार भी हम बनाएंगे और केबिनेट भी हमारी बैठेगी इसी तर्ज पर छोटे ने 15 वार्डो में निर्दलीय उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है अब एक दिन में फॉर्म लेना और जमा करना कैसे होगा यह तो वही जाने मगर यह नया एक्सपेरिमेंट भारी न पड़ जाए . भले छोटे भाई को टिकट नही मिली लेकिन जितना आश्वस्त छोटा भाई नजर आ रहा है उतना कांफिडेंस किसी के चेहरे में दिखलाई नही पड़ता अब यह कांफिडेंस या ओवरकांफिडेंस यह तो जनता तय करेगी लेकिन एक बात तो सत्य है कि इस पुरे पांच सालों के कार्यकाल को जनता नकार नही पा रही है . काम तो हुआ है और जो बोला वो किया का दम्भ भी छोटा भाई भर रहा है . इसमे एक माइनस यह है कि पार्टी की अदला बदली इतिहास में पन्नो में जाइए तो ऐसा ही एक शख्स का किरदार नजर आता है जिसने पार्टी अदला बदली में अपना राजनीतिक कैरियर तबाह कर लिया जबकि आज भी उस शख्स का कोई तोड़ नही है बताते है कि उस शख्स के पास पेशी नही होती थी फैसले लिए जाते थे मगर हालात आज क्या है वह छुपा हुआ नही है . बात करे उपलब्धता की जो विकास या काम बीते पांच सालों में हुआ वह पहले कभी नजर नही आया . बताते है कि शहर के आखरी छोर तक छोटे भाई का दबदबा है लोगो के यहां शादी से लेकर तमाम जरूरतों को पूरा करने में कार्यकाल सफल रहा . इस सफलता की बड़ी वजह यह भी है कि छोटे भाई ने फोन इग्नोर नही किया व्हाट्सअप ग्रुपो में आई समस्याओं का निदान और अलोचनाओं को सुनने की ताकत ही इनको औरों से अलग बनाती है .
अब इस शह और मात के खेल में कौन कितनी और कहा गोटी सेट करता है यह भविष्य में तय होगा इसी कड़ी में कुछ निर्दलीय नाम और भी है जो राजनीतिक दलों का समीकरण बिगाड़ सकते है . जाति समीकरण इस चुनाव में कितना प्रभाव डालता है यह तो वक़्त बताएगा चूंकि मारवाड़ी वोटरो को एकजुट कैसे किया जाएगा जबकि मैदान में तीन माड़वाडी चहेरे नजर आ रहे है हालांकि एक नाम है जिसके वापस होने की संभावना है इस त्रिकोणीय मुकाबले में पेंच तो फंसेगा और चुनावी माहौल भी दिलचस्प होगा .