शिक्षा विभाग के माथे पूरा जिला प्रशासन , सरकारी स्कूलों की हालत जर्जर डीएमएफ से बन रहा आत्मानंद ,
शिक्षा विभाग के माथे पूरा जिला प्रशासन
गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही : – जिले में शिक्षा का स्तर काफी लचर है जहाँ आदिवासी अंचल जिले में अधिकतर स्कूल 2 कमरों एवं 2 शिक्षकों के माथे चल रही है जबकि प्रदेश के मुखिया शिक्षा व्यवस्था सुधारने का दावा आत्मानंद विद्यालय का प्रचार अपने हर भेंट मुलाकात में करते है . आकड़ो की अगर बात की जाए तो जिले के मरवाही ब्लॉक में 244 प्राथमिक स्कूलों में 449 , पेण्ड्रा के 125 स्कूलों में 310 और गौरेला के 174 स्कूलों में 405 सहायक शिक्षक सहित जिले के कुल 543 स्कूलों में 1164 सहायक शिक्षक पदस्थ हैं . जिनका औसत एक स्कूल में लगभग 2 शिक्षक के बराबर है . जिसमे भी आधे से अधिक शिक्षकों से शिक्षा का कार्य छोड़ जिले मुख्यालय में पदस्थ किया गया है . जबकि शिक्षा की गुणवत्ता के लिए सभी स्कूलों की कक्षाओं में एक शिक्षक एवं अलग से कमरा होना चाहिए बता दें कि नेशनल एचीवमेंट सर्वे में छत्तीसगढ़ की स्थिति देश के सबसे फिसड्डी राज्य के रूप में 30 वें नंबर पर आई है ऐसी स्थिति तब है जब पूरा शासन और प्रशासन शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है यही आंकड़े अब शासन प्रशासन में बैठे नुमाइंदो को मुहबाये चिढ़ाने लगे है .
शिक्षा विभाग के कर्मचारी चला रहे जिला :-
शिक्षा के इस लचर व्यवस्था का एक बड़ा कारण यह है कि लगभग शिक्षा विभाग के कर्मचारियो से शिक्षा छोड़कर अन्य कार्य लिया जा रहा है वही शिक्षा विभाग के लगभग कर्मचारी राजस्व एवं जिला कार्यालयों में अटैच है . इससे न तो शिक्षा व्यवस्था में सुधार हो पा रहा है न ही सही से जिला कार्यालय का कार्य सुचारू रूप से चल रहा है स्कूलों में एक शिक्षक को मध्यान्ह भोजन एवं उच्चाधिकारियों के कार्यालय द्वारा मांगी गई जानकारी एवं आंकड़े जुटाने सहित बहुत से कार्य दिए जाते है . इसके अलावा मतदाता पुनरीक्षण कार्य , वैक्सीनेशन, आए दिन विभिन्न प्रशिक्षण, लोकसभा चुनाव, विधानसभा चुनाव, पंचायत चुनाव, ड्यूटी लगा दी जाती है तब सवाल यह खड़ा होता है कि ऐसे में कैसे शिक्षा व्यवस्था में सुधार होगा .
सरकारी स्कूलों की स्थिति जर्जर :-
देश की रीढ़ शिक्षा है उस रीढ़ को मजबूत बनाने वाले शिक्षा के मंदिर आज जर्जर हालात में है जिले में लगभग सरकारी स्कूलों की हालत बत से बत्तर है मगर जिले में पुराने प्राथमिक स्कूल , भवन खंडहर हो चुके हैं कुछ में तो छप्पर भी नहीं बचे हैं . जिले में अतिरिक्त कक्ष में स्कूलों में कक्षाएं चलाई जा रही है . इन खंडहरनुमा स्कूलों के हालात देखकर यह लगता है कि कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है क्या शासन और प्रशासन बड़ी घटना के इंतजार में है ? जबकि जिले में तमाम फंड जिससे सरकारी स्कूलों का जीर्णोद्धार किया जा सकता है मगर शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करना छोड़ प्रशासन भी गहरी नींद में सोया हुआ है और उधार के कर्मचारियो के माथे जिला संचालन कर रहा है .
डीएमएफ फंड से बन रहा आत्मानंद : –
डीएमएफ यानि खनिज न्यास निधि जिस मद उपयोग प्रशासन शिक्षा , स्वास्थ , जिले के विकास में उपयोग किया जाता है जबकि जिले में अन्य जिलों की तुलना में कम बजट आता है मगर जिस बजट से पुराने सरकारी भवनों का जीर्णोद्धार किया जाना चाहिए उस बजट का एक बड़ा हिस्सा आत्मानन्द स्कूल के निर्माण के लिए जारी किया गया है . तीन विकासखंडों में बनने वाले आत्मानन्द स्कूल लगभग साढ़े चार करोड़ की लागत से बनना है . बात करे अन्य जिलों की तो अन्य जिलों को सरकार के द्वारा आत्मानन्द स्कूल के लिए अलग से बजट दिया गया है मगर जिले में डीएमएफ फंड से आत्मानन्द स्कूल निर्मित हो रहा है इसके साथ ही 60 लाख की लागत से शासकीय बहुद्देश्यीय उच्चतर माध्यमिक शाला को अपग्रेट किया जाना है तब यह राशि बढ़कर करीब पांच करोड़ के आसपास हो जाती है जबकि होना यह चाहिए कि इन पांच करोड़ की लागत से जिले में 543 स्कूलों जीर्णोद्धार , किया जाना चाहिए जो आज खंडहर हालात मे है जिसकी मरम्मत की दरकार है . इसके साथ ही आत्मानन्द स्कूलों के लिये अलग से बजट स्वीकृत किया जाना चाहिए ताकि आदिवासी अंचल इस जिले में शिक्षा व्यवस्था सुदृण हो सके .