जिस दिन चित्रकोट सूख जायेगी, उस दिन बस्तर में इंद्रावती के सूख जाने का मिलेगा प्रमाण पत्र तब जागेगी सरकार

जगदलपुर। बस्तर के लिए इंद्रावती नदी सिर्फ एक नदी नहीं है, इसे हम प्रणदायीनी कहते हैं, इसी तरह चित्रकोट जलप्रपात जिसे हम गर्व से भारत का मिनी नियाग्रा कहते हैं। अब वही चित्रकोट पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रहा है। वर्ष 2019 में भी चित्रकोट पूरी तरह सूख चुका था और आज फिर वही भयावह मंजर हमारे सामने है। चित्रकोट जलप्रपात से इंद्रावती नदी की हालत का सहज अनुमान लगाया जा सकता है।प्रणदायीनी इंद्रावती एनीकटों के सहारे बस्तर के लोगों की बमुश्किल मात्र प्यास बुझाने का काम कर रही है। जिस दिन चित्रकोट जलप्रपात वर्ष 2019 की तरह सूख जायेगी उस दिन बस्तर की प्रणदायीनी इंद्रावती के पूरी तरह सूख जाने का एलान करना बाकी होगा। दो महीने से बस्तर के किसान धरना-प्रर्दशन कर रहे हैं। इंद्रावती में पानी लाने की गुहार लगा रहे हैं। जिला प्रशासन से लेकर प्रदेश अध्यक्ष तक, हर विधायक से लेकर मुख्यमंत्री तक किसानों ने ज्ञापन सौंपा, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। प्रशासन खामोश है, सरकार मौन है और बस्तर प्रणदायीनी इंद्रावती में पानी देखने के लिए तड़प रहा है। अगर अब भी सरकार नहीं जागी तो आने वाली पीढिय़ां हमें माफ नहीं करेंगी। इंद्रावती बचेगी तो बस्तर बचेगा, इंद्रावती बचेगी तो छत्तीसगढ़ बचेगा।
मध्यप्रदेश शासन काल में ओडिशा के साथ समझौता हुआ था कि इंद्रावती का 45 प्रतिशत पानी बस्तर को मिलेगा, मगर अफसोस वह समझौता आज भी फाइलों में धूल फांक रहा है। कांग्रेस-भाजपा की सरकार में इंद्रावती का 45 प्रतिशत पानी बस्तर को मिले इसके लिए बकायदा इंद्रावती प्राधिकरण का गठन कर दिया गया, बाजूद इसके नतीजा वही ढाक के तीन पात। न कोई योजना, न कोई काम, इंद्रावती आज भी प्यासी है, बस्तर आज भी पानी के लिए तरस रहा है। इंद्रावती प्राधिकरण अब चित्रकोट जलप्रपात के पूरी तरह सूख जाने के बाद बस्तर की इंद्रावती के सूख जाने का एलान करेगी। छत्तीसगढ़ की राजगीत में भी इंद्रावती का नाम बड़े गर्व से लिया जाता है, लेकिन सच तो यह है कि आज इंद्रावती में पानी नहीं बचा है। किसान भी मायूस हैं, पर्यटक निराश लौट रहे हैं, चित्रकोट में रोजगार करने वाले दर-दर भटक रहे हैं। चित्रकोट में पानी नहीं है तो बस्तर में पर्यटक भी नहीं आ रहे।

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