युक्तियुक्तकरण से बदली खपराखोल की तस्वीर, शिक्षकविहीन स्कूल में लौटी रौनक

00 शिक्षकों की नियुक्ति से ग्रामीणों में उत्साह
बिलासपुर। शिक्षकविहीन स्कूलों की चिंता अब बीते दिनों की बात हो चली है। राज्य शासन द्वारा लागू की गई युक्तियुक्तकरण नीति ने गांव-गांव में शिक्षा की नई उम्मीद जगाई है। बिलासपुर जिला के कोटा विकासखंड का सुदूरवर्ती गांव खपराखोल भी अब इस बदलाव का साक्षी बन गया है। वर्षों से शिक्षकविहीन इस गांव के शासकीय प्राथमिक शाला को अब नियमित शिक्षक मिल चुके हैं, जिससे ग्रामीणों और पालकों में खुशी की लहर है।
मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में राज्य सरकार द्वारा लागू युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया के तहत खपराखोल शाला में श्री अशोक क्षत्री और श्री सुनील सिंह पैकरा की पदस्थापना की गई है। इससे पहले इस विद्यालय में नियमित शिक्षक नहीं थे और आसपास के स्कूलों से वैकल्पिक व्यवस्थाओं से पढ़ाई का काम चलाया जा रहा था। नई पदस्थापना के साथ ही विद्यालय में शिक्षा की लौ फिर से प्रज्ज्वलित हो उठी है।

 युक्तियुक्तकरण से बदली खपराखोल की तस्वीर, शिक्षकविहीन स्कूल में लौटी रौनक
नवनियुक्त शिक्षकों ने पदभार ग्रहण करते ही विद्यालय में जान फूंक दी। उन्होंने न केवल कक्षाओं का संचालन शुरू किया, बल्कि गांव में घर-घर जाकर पालकों को बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित भी किया। परिणामस्वरूप, वर्तमान में विद्यालय में 46 विद्यार्थी नियमित रूप से अध्ययनरत हैं और इस वर्ष 7 नए बच्चों ने स्कूल में प्रवेश लिया है। विद्यालय में अब बच्चों की हँसी, पाठों की गूंज और सीखने की ललक स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।
शिक्षकों की नियुक्ति से केवल बच्चों का ही नहीं, बल्कि पूरे गांव का उत्साह बढ़ा है। पालक श्री मेलूराम जगत ने बताया कि उनकी बेटी तीसरी कक्षा में पढ़ रही है और अब शिक्षक नियमित रूप से पढ़ा रहे हैं जिससे उन्हें बच्चों के भविष्य की चिंता नहीं है। इसी तरह श्री सुखसागर मरावी, श्री मनहरण दास मानिकपुरी और श्री मंगलिन नेताम ने भी मुख्यमंत्री के प्रति आभार जताया और कहा कि खपराखोल जैसे छोटे और दूरस्थ गांव की चिंता कर शासन ने एक सराहनीय कार्य किया है।
छात्राएं आंचल, कुमकुम और भूमिका ने भी बताया कि उन्हें पढ़ाई में अब बहुत मजा आ रहा है और शिक्षक उन्हें बहुत अच्छे से पढ़ाते हैं। विद्यालय का परिवेश अब शिक्षण के अनुकूल हो चुका है और बच्चे पूरे मन से पढ़ाई में जुटे हुए हैं। खपराखोल की यह कहानी केवल एक गांव की नहीं, बल्कि राज्य में शिक्षा के क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव की प्रतीक बन गई है। यह साबित करती है कि जब शासन की मंशा साफ हो और नीति मजबूत हो, तो शिक्षा के अंधेरे कोनों में भी रौशनी पहुंचाई जा सकती है। युक्तियुक्तकरण की यह पहल अब सिर्फ स्कूल में शिक्षक लाने तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह गांवों में उम्मीद, आत्मविश्वास और उज्ज्वल भविष्य का आधार बन चुकी है।

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