जिले के कई स्कूलों में प्राचार्य की खाली पड़ी कुर्सियां कर रही इंतजार ,
एक दशक से बिलासपुर में जमे है जिले के प्राचार्य अश्वनी ,

जिले के कई स्कूलों में प्राचार्य की खाली पड़ी कुर्सियां कर रही इंतजार , अब तो लौट आइये अश्वनी साहब ,

एक दशक से जमे है बिलासपुर में कलेक्टर के आदेश का भी कोई असर नही होता इस रसूखदार अधिकारी पर

गौरेला – पेण्ड्रा – मरवाही : – जिले गठन को ढाई साल से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी जिले में शासकीय विभागों पर कोई लगाम नही लगा पाया है .

ज्ञात हो कि तत्कालीन कलेक्टर शिखा राजपूत तिवारी द्वारा जिले के गठन के उपरांत एक आदेश पारित किया था जिसमे संलग्नीकरण से जुड़े मुद्दे को प्रमुखता से संज्ञान लिया गया था मानो उस समय ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वास्तव में जिले को एक ससक्त एवं कर्मठ अधिकारी कलेक्टर के रूप में मिला है और उन्होंने ऐसा किया भी था .

वही कलेक्टर द्वारा जारी आदेश में इस बात को प्रमुखता से रखते हुए की जो अधिकारी कर्मचारी की मूल पदस्थापना जिला गौरेला-पेंड्रा-मरवाही में है और वे बिलासपुर या अन्यत्र जिले में कार्यरत हैं ऐसे कर्मचारियों को निर्धारित समयाविधि में अपने मूल संस्था को जॉइन करें अन्यथा आगामी माह का उनका वेतन आहरण नही किया जाएगा जिसके फलस्वरूप कुछ कर्मचारी ,अधिकारी आदेश के परिपालन में मूल संस्था को जॉइन कर लिए मगर इसके परे कुछ विशेष रसूखदार कर्मचारी , जी ए अश्वनी जो की गुरुकुल विद्यालय जिला गौरेला-पेंड्रा-मरवाही में प्राचार्य के पद पर पदस्थ है और एक दशक से जादे समय से बिलासपुर सहायक आयुक्त कार्यालय और फिर जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय बिलासपुर में एक दशक से ज्यादा समय से पदस्थ हैं और तो और ये आदिम जाति कल्याण विभाग के प्रयास छात्रावास में संलग्न हैं पता नही इनके अंदर ऐसा कौन सी विशेष योग्यता है जो ये कभी अपने मूल संस्था में कार्यरत नही रहे . अब जबकि चौथी कलेक्टर के रूप में ऋचा प्रकाश चौधरी की पदस्थापना हो चुकी है उसके बाद भी इस प्राचार्य के हौसले इतने बुलंद है कि यह सारे नियम कायदों को ठेंगा दिखाते हुए अब तक बिलासपुर में ही पदस्थ होकर कार्य कर रहा है .

एक ओर शासन प्रशासन यह विश्वाश दिलाता है कि उसकी नजर में सभी एक समान है दूसरी ओर इसतरह के पक्षपात पूर्ण रवैया देखने को मिलता है ज्ञात हो कि इनकी पदस्थापना गुरुकुल विद्यालय में है जहां इनका कार्य आदिवासी अंचल के छात्र-छात्राओं को पढ़ाना लिखाना है लेकिन अपने मूल कर्तव्यों से इतर यह अपने गृह नगर बिलासपुर में आराम फरमाते है और तो और नवीन जिले में कई ऐसे विद्यालय हैं जो प्राचार्य विहीन है जैसे शासकीय उच्चतर मध्यमिक विद्यालय बस्ती , शासकीय हाई स्कूल कोटमिखुर्द, शासकीय हाई स्कूल टीकरखुर्द शासन प्रशासन द्वारा जी आर अश्वनी जैसे प्राचार्यों को इस सुदूर अंचल के विद्यालयों में पदस्थ कर इनके योग्यता का इस्तेमाल क्यो नही किया जाता ? जिस विद्यालय में जी आर अश्वनी पदस्थ हैं वो उसी कैंपस में स्थित है जहां वर्तमान कलेक्टर कार्यालय है . जब बगल के कर्मचारी पर कलेक्टर के आदेश परिपालन नही हो रहा तो सोचिए कि अन्य लोगो पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा इसके साथ ही यह भी खबर लगी है कि कुछ कर्मचारी संभागायुक्त कार्यालय से पत्र प्रेषित कर यथा स्थिति पदस्थ रहेंगे और इनका वेतन भुगतान पूर्व की भांति होगा ऐसा आदेश भी जारी करवाया जा रहा है एक संभागायुक्त कार्यालय के लिपिक जिनकी मूल पदस्थापना मरवाही के विद्यालय में है वह भी दशकों से कार्यालय संभागायुक्त में संलग्न है कलेक्टर जिला गौरेला पेंड्रा मरवाही के संलग्नीकरण के विरुद्ध आदेश का परिपालन इनके द्वारा नही किया जा रहा है .

बात करे नवीन जिले कि तो वैसे भी जिला गौरेला – पेण्ड्रा मरवाही कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा है इसके परे संभागायुक्त जैसे इतने बड़े अधिकारी द्वारा संलग्नीकरण के पक्ष में आदेश जारी करते हैं तो अन्यत्र कर्मचारियों में हीन भावना उत्पन्न होती है क्योंकि बहुत से कर्मचारी ऐसे है जिनका गृह निवास बिलासपुर है लेकिन फिर भी वे अपने कर्तव्यों का निर्वहन ईमानदारी से इसी क्षेत्र में रहकर कर रहे है एक ओर वे कर्मचारी जिनकी मूल पदस्थापना इस जिले में है और यही से तनख्वाह ले रहे हैं बिलासपुर में संलग्न होकर मौज काट रहे शासन ,प्रशासन का यह भेदभाव पूर्ण रवैया समझ से परे नजर आता है .

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *