पंचायती राज अधिनियम लागू हुए 3 दशक बाद भी महिला प्रतिनिधि महज मुखौटा ही , रबर स्टांप बनकर रह गई महिला प्रतिनिधि ,

गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही : – वर्ष 1992 में पंचायती राज अधिनियम लागू हुआ जिसके तहत जिला , जनपद और ग्राम पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई । इसके बाद से ही ग्राम पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है , लेकिन अधिनियम लागू होने के 30 सालों बाद भी अधिकांश जगहों पर महिला प्रतिनिधि महज मुखौटा बनकर रह गई है .

महिलाएं समाज और देश की कई बड़ी  जिम्मेदारी पर है मग़र उनकी जिम्मेदारी के पर्दे के पीछे पुरुष वर्ग के द्वारा निर्वहन किये जाने की बाते अक्सर समाज मे आती है । मसलन समाज मे सरपंच पति , पार्षद पति यहां तक की जनप्रतिनिधियों के पति के अलावा दूसरे रिश्तेदार अपनी भूमिका निभाते नजर आते है . जिसमे नाम और सिग्नेचर तो इन महिला जनप्रतिनिधियों के होता है मगर वास्तविकता में काम और परफॉमेंस उन पुरुष रिश्तेदारों का हाथ होता है ।

वही बात करे नए जिले गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही की जिले में कुल 166 पंचायते है जिसमे 82 महिला सरपंच है जहाँ लगभग पंचायतों में सरपंच पति की दखलंदाजी है . असल पंचायतों का दायित्व उनके पति , भाई आदि निभाते है । सरपंच पति ” गांव के लिए पंचायत नया पद बन गया है । महिला आरक्षित सीट होने पर परिवार के पुरुष सदस्यों द्वारा अपनी पत्नी , बेटी व बहू को चुनाव में खड़ा कर दिया जाता है और उनके जीतने के बाद पंचायत का काम घर के पुरुष सदस्य ही करते हैं ।

समाज मे अक्सर यह देखा जाता है कि सरकार महिलाओं को आगे लाने के लिए योजनाएं चलाती है और महिलाओं को आगे लाने के लिए बकायदा आरक्षण लाती है जहाँ महिलाओं के लिए सीट रिजर्व किया जाता है . मगर चुनाव के बाद महिलाएं वही की वही खड़ी रह जाती है और महिला जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी उनके पति और रिश्तेदारों द्वारा उठा ली जाती है . चुनाव उपरांत महिला भले ही अपने पद पर असीन हो जाती है मगर इनके पद को चलाने का कार्य पति रिश्तेदारो का होता है चुनाव के पहले या चुनाव के बाद बदलता कुछ नही बस बस बदल जाती है सिग्नेचर और सिग्नेचर की वैल्यू जो महज सिग्नेचर तक ही सीमित रह जाता है .  मगर जिम्मेदारी का निर्वहन का दारोमदार रिश्तेदारों और पति तक ही सीमित रह जाता है .

वही होना यह चाहिए कि जिस तरह जनता ने महिलाओं के चुनाव चिन्ह पर मुहर लगाकर महिलाओं को जिताया है तो महिलाओं को भी जिम्मेदारी का अहसास होना चाहिए कि महिलाएं अपने पद की जिम्मेदारी का निर्वहन स्वविवेक से करे . वही अक्सर यह देखा जाता है जब जब महिलाएं शसक्त हुई है तब महिलाओं ने एक अलग ही अलख जलाया है . और पुरुषों को पीछे छोड़ा है .

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