बोधघाट परियोजना का जिन्न बोतल से बाहर आने से दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा जिले के 269 गांवों को होगा बड़ा लाभ

00 मोरारजी भाई देसाई ने 475 करोड़ की इस परियोजना का किया था शिलान्यांस, अधूरे परियोजना के मौजूद है अवशेष
जगदलपुर। बस्तर वासियों के लिए खुशी की बात है कि बोधघाट परियोजना का जिन्न एक बार पुन: बोतल से बाहर आ रहा है । आपको याद होगा तत्कालीन भूपेश सरकार में 2020 के दरम्यान इसे लेकर कवायद की गई थी, लेकिन इसे लेकर विरोध के स्वर उठने पर सरकार ने अपने कदम पीछे कर लिए। बहुउद्देशीय बोधघाट बांध परियोजना दंतेवाड़ा जिले के विकासखंड एवं तहसील गीदम के ग्राम बारसूर से लगभग 8 किमी. एवं जगदलपुर शहर से लगभग 100 किमी. दूरी पर इन्द्रावती नदी पर प्रस्तावित है। मुख्यमंत्री विष्णदेव साय ने चर्चा में यह कहा है कि इस परियोजना से बस्तर में सिंचाई की समस्या को दूर करने और चहुमुखी विकास को बढ़ावा देने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार बहुउद्देशीय बोधघाट बांध परियोजना और इंद्रावती-महानदी लिंक परियोजना पर काम कर रही है। सबसे अहम बात यह है कि इस परियोजना से दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा जिले के 269 गांवों को बड़ा लाभ होगा। जबकि इंद्रावती-महानदी इंटरलिंकिंग परियोजना से कांकेर जिले के अनेकों गांवों में सिंचाई सुविधा का विस्तार हो सकेगा। बस्तर संभाग को विकसित, आत्मनिर्भर और सक्षम बनाने की दिशा में दोनों परियोजना एक महत्वपूर्ण कदम होगा। उम्मीद है 2047 तक सब कुछ हो जाए।
छत्तीसगढ़ सरकार के अनुसार यह परियोजना अगर शुरू होती है तो बस्तर में सिंचाई साधनों का दायरा बढऩे के साथ ही बस्तर के विकास को डबल रफ्तार मिलेगी। इस परियोजना से 125 मेगावाट का विद्युत् उत्पादन, 4824 टन वार्षिक मत्स्य उत्पादन जैसे अतिरिक्त रोजगार, खरीफ एवं रबी मिलाकर 3,78,475 हेक्टेयर में सिंचाई विस्तार एवं 49 मि.घ.मी पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगा। वही इंद्रावती- महानदी इंटरलिंकिंग परियोजना से कांकेर जिले की भी 50 हजार हेक्टेयर भूमि में सिंचाई सहित कुल 3 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि में सिंचाई सुविधा उपलब्ध हो सकेगी। बस्तर को विकसित और आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में दोनों परियोजना एक महत्वपूर्ण कदम होगा।
बोधघाट बांध परियोजना और इंद्रावती-महानदी लिंक परियोजनाओं की अनुमानित लागत 49 हजार करोड़ रूपए है। जिसमें इंद्रावती-महानदी लिंक परियोजना की लागत लगभग 20 हजार करोड़ रूपए एवं बहुउद्देशीय बोधघाट बांध परियोजना में लगभग 29 हजार करोड़ रुपए की लागत संभावित है। जिसमें हाइड्रोपावर इलेक्ट्रोमैकेनिकल कार्य, सिविल कार्य (सिंचाई) भी शामिल हैं। इस परियोजना में उपयोगी जल भराव क्षमता 2009 मि.घ.मी, कुल जल भराव क्षमता 2727 मि.घ.मी, पूर्ण जल भराव स्तर पर सतह का क्षेत्रफल 10440 हेक्टेयर सम्भावित है।
तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने कार्यकाल के दौरान कहा था कि बोधघाट बांध परियोजना का विरोध करने वाले आदिवासियों के हितैषी नहीं हैं, उन्होंने कहा था कि इस योजना का विरोध करने वाले लोग नहीं चाहते कि आदिवासी अपने पैरों पर खड़े हों। उन्होने नक्सली नेताओं से सवाल भी किया था कि क्या आदिवासियों की स्थिति सुधरनी नहीं चाहिए ? उनके खेतों में पानी नहीं पहुंचना चाहिए? इस बहुद्देश्यीय परियोजना को लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल लगातार कह रहे थे कि यह योजना आदिवासियों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए बेहद कारगर साबित होगी। अब यदि बोधघाट बांध परियोजना शुरू होता है तो भूपेश बघेल का क्या रूख होता है, यह देखा जाना है।
उल्लेखनिय है कि मोरारजी भाई देसाई ने इस परियोजना का शिलान्यांस किया था, वे हमारे देश के चौथे प्रधानमंत्री थे। अच्छी बात तो यह है कि वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस परियोजना के प्रति दिलचस्पी दिखाई है। बोधघाट परियोजना के अवशेष आज भी वहां देखने को मिल जाते हैं जो तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई कार्यकाल में शुरू हुई थी। और अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में यह बात उनके जहन में डाली जा रही है ताकि इस परियोजना पर विचार हो सके। मोरारजी भाई देसाई सरकार में यह परियोजना 475 करोड़ रूपये की लागत की थी और इस परियोजना में 124 मेगावाट की चार बिजली यूनिट बनाने का सरकार का इरादा था। यहां 90 मीटर का ऊंचा बांध भी बनने जा रहा था, जो आज सात धार के नाम से मशहूर है। इसकी तैयारियां हो चुकी थी, ढांचे तैयार किए जा रहे थे । परियोजना हेतु लंबी सुरंगों के अलावा सैकड़ों आवास और पक्की-चौाड़ी सड़कों का निर्माण किया गया था, जिसके अवशेष आज भी देखने को मिलेगें।

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