अफ़सर-ए-आ’ला (हर रविवार को सुशांत की कलम से)

अफ़सर-ए-आ’ला
(हर रविवार को सुशांत की कलम से)
सत्ता की आहट
सुनो – जो हलचल हमने सबसे पहले बताई थी, वही अब पूरे प्रदेश की मुख्य चर्चा बन चुकी है। मुख्यमंत्री से लेकर मंत्रिमंडल तक बदलाव की तैयारी तेज़ है और संकेत साफ़ हैं कि मार्च अप्रैल के बीच बड़ा फेरबदल हो सकता है। यह
मामला सिर्फ़ राजनीति का नहीं मंत्रियों के प्रदर्शन, विभागीय कामकाज और जनता में उनकी स्वीकार्यता, तीनों की समीक्षा का है। कुछ मंत्री जमीन से कटे हुए दिखे, कुछ विभाग उनके नियंत्रण से बाहर रहे, और कई जगह योजनाएँ अटकी ही रहीं। ऐसे चेहरों को लेकर संगठन में स्पष्ट असंतोष है। इसके उलट कुछ मंत्री अपनी सक्रियता और जनता से सीधा संवाद दिखाकर मजबूत स्थिति में हैं। यही वे नाम हैं जिनके कद बढ़ने की चर्चा है। इसी वजह से सरकार के भीतर भी असहजता बढ़ रही है। राजधानी में अब एक ही सवाल घूम रहा है कौन आगे आएगा और कौन हटेगा? क्योंकि बदलाव की आहट अब सिर्फ़ फुसफुसाहट नहीं… सत्ता के गलियारों में महसूस होने लगी है।
फाइलों की जंग –
राज्य में IPS पोस्टिंग की सूची अब तक जारी नहीं हुई है, और यह देरी तकनीकी नहीं पूरी तरह सत्ता और पुलिस महकमे के दो बराबर ताकतवर कैंपों की खींचतान का परिणाम है। एक समूह वे अफसर हैं जो पिछली सरकार में निर्णायक थे दूसरा वह जिन्हें नई सरकार के करीब माना जा रहा है। संवेदनशील जिलों और मुख्य रेंजों की पोस्टिंग पर दोनों पक्षों की सिफ़ारिशें टकरा रही हैं। कुछ जिलों की सूची तीन बार बनकर वापस लौटी है। इसी बीच पुराने निर्णयों की नोटशीटें फिर से खंगाली जा रही हैं, जिससे यह संकेत मिलता है कि पूर्व शासनकाल के कई निर्णय अब समीक्षा के दायरे में आ सकते हैं। दिल्ली भी इस खामोश टकराव पर नज़र रखे हुए है। नई कानून व्यवस्था को आकार देने से पहले नेतृत्व यह आकलन कर रहा है कि कौन अफसर किस राजनीतिक नेटवर्क में फिट बैठता है। संक्षेप में पोस्टिंग अटकी नहीं, रोकी गई है। और लिस्ट तब ही निकलेगी जब सत्ता यह तय कर लेगी कि आने वाले वर्षों में पुलिस की कमान किस खेमे के पास जाएगी!
मोगैंबो की आहट –
मंत्रालय में इन दिनों एक हल्की सी सनसनी है।
1988 बैच के वही मोगैंबो साहब जो 2018 में चमनप्रास और कुछ फोन कॉलों से पूरी नाव डुबो देते थे अब लौटे तो नहीं हैं, लेकिन ओएसडी बनने का आवेदन ज़रूर डाल दिए हैं। बस आवेदन भरने की खबर ने ही गलियारों में पुराने दिनों की ठंडक-कंपकंपी वापस ला दी है। नाम लेना मना है, लेकिन पहचान इतनी साफ़ कि चमनप्राश की खुशबू भी बता देती है वही हैं। साय सरकार के लोग कान में कान डालकर पूछ रहे हैं आवेदन मात्र है, या कोई नई बिसात? पुराने बाबू फाइलों पर धूल झाड़ते हुए मुसकुरा रहे मोगैंबो अगर सिर्फ़ एक आवेदन से इतना माहौल बना दे… सोचो, ओएसडी बन जाए तो? अब देखना बस इतना है यह आवेदन सिर्फ औपचारिकता है, या इतिहास एक बार फिर खुद को दोहराने की तैयारी में है!
फेयरवेल में छलका दर्द –
हालिया तबादलों में इंद्रावती भवन के एक विभागाध्यक्ष की कुर्सी बदली गई। फेयरवेल और वेलकम दोनों साथ में हुए और मंच पर जो कहा गया, उसने पूरे हॉल का माहौल बदल दिया। जाते-जाते श्रीमान ने नई पदस्थ साहिबा को देखकर मुस्कुराते हुए कहा इस विभाग में बतौर संचालक आपको ज़्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। यहां तो सहायक संचालक की बैठकें भी सीधे ऊपर…बहुत ऊपर से तय होती हैं। संचालक की असल में कोई जरूरत ही नहीं है। यह सुनते ही अफसरों के चेहरे देखने लायक थे। कोई कुर्सी में सरक गया, कोई रुमाल में हंसी छुपाने लगा,और कुछ तो ऐसे देखने लगे जैसे सच अचानक फाइल से निकलकर मंच पर आ गया हो। बाहर निकलते ही एक बाबू ने धीमे से तीर चलाया साहब ने गलत कहाँ कहा? इस विभाग में असली कमान तो हमेशा उसी प्रशासनिक शक्तिमती के हाथ में रही है…जिनसे हर संचालक परेशान होकर ही विदा लेता है। संकेत साफ़ था इंद्रावती भवन की उन मंज़िलों पर जहाँ माता–पिता जैसे नाम वाले विभाग चलते हैं, वहीं बैठती हैं वे जिनके आगे नीति से पहले उनकी मर्जी लागू होती है।
नाम लेने की जरूरत नहीं विभाग की फाइलें खुद बता देती हैं कि मामला किस घर का है।
विकास की चेतावनी
छत्तीसगढ़ इन दिनों दो जिलों में एक जैसी गूंज सुन रहा है अंबिकापुर के अमेरा में कोल माइंस विस्तार को लेकर गंभीर टकराव और खैरागढ़ में प्रस्तावित सीमेंट प्लांट के खिलाफ किसानों का सड़क जाम। जगह अलग, मुद्दा एक स्थानीय सहमति के बिना विकास टिकता नहीं।
अंबिकापुर में SECL के विस्तार के दौरान पुलिस और ग्रामीण आमने-सामने आ गए। 30 40 जवानों समेत कई ग्रामीण घायल हुए।लोगों का आरोप है कि 2016 के अधिग्रहण के वादे रोजगार और पारदर्शी मुआवजा पूरे नहीं हुए। भारी पुलिस बल तैनात है, पर संवाद की कमी सबसे बड़ा संकट बन गई है। उधर, खैरागढ़ में किसानों ने राजनांदगांव-कवर्धा मार्ग रोककर 11 दिसंबर की जनसुनवाई रद्द करने की मांग की। चिंताएँ वही मुआवजा, पर्यावरणीय खतरा और खेती की जमीन खोने का भय। उनका कहना स्पष्ट है पहले हमारी बात सुनी जाए, फिर उद्योग बढ़े। इन दोनों घटनाओं का संदेश एक है भूमि अधिग्रहण कानून से नहीं, भरोसे से चलता है। अंबिकापुर और खैरागढ़ दूर हैं, पर जनता की चेतावनी एक जैसी है विकास हो, लेकिन लोगों के ऊपर से नहीं… लोगों के साथ।
बैठकें बनाम बायोमेट्रिक –
मंत्रालय इन दिनों उठक-बैठक के मौसम में है। 10 बजे की बायोमेट्रिक ने कर्मचारियों को सुबह ही दौड़ मोड में डाल दिया है, और धान खरीदी ने बैठकों की ऐसी बाढ़ ला दी है कि एक वीसी खत्म नहीं होती, दूसरी लिंक खुल जाती है। सचिव अपनी दो बैठकें पहले निपटाते हैं, विभागाध्यक्ष जिले से जुड़ते हैं, और फिर मुख्य सचिव की बड़ी बैठक शुरू पूरा दिन बस मीटिंगों की मूसलाधार बरसात। उधर बायोमेट्रिक का असली बोझ बेचारे स्टेनो और निज स्टाफ झेल रहे हैं आना समय पर, जाना कब होगा कोई नहीं जानता। साहब चार बजे मंत्री की बैठक में चले जाएं और साढ़े सात बजे बैग-टिफिन बुलवा लें ये रुटीन हो चुका है।
इसीलिए राइट टू डिस्कनेक्ट बिल की चर्चा फिर से ताजा हो गई है ऑफिस टाइम के बाद फोन-ईमेल का जवाब न देना कानूनी हक हो जाए। क्या होगा पता नहीं, पर मंत्रालय में सब एक ही बात कह रहे आना टाइम पर ठीक… पर जाने का भी तो कोई टाइम होना चाहिए, साहब!
सत्ता गलियारों में एक ही सवाल कौन हटेगा, कौन चढ़ेगा? IPS पोस्टिंग दो खेमों की जंग में अटकी, मोगैंबो-साहब का ओएसडी वाला आवेदन ही मंत्रालय में कंपकंपी। इंद्रावती भवन में फेयरवेल पर चला तीर यह विभाग तो ऊपर से चलता है! अंबिकापुर से लेकर खैरागढ़ से जनता का संदेश साफ विकास ऊपर से नहीं, साथ में चाहिए। और मंत्रालय मीटिंग-मैराथन में पिस रहा आना टाइम पर ठीक…पर जाना भी तो किसी टाइम पर होना चाहिए, साहब!
अफ़सर-ए-आ’ला इस हफ्ते की हलचल
यक्ष प्रश्न
1 . किस महिला सचिव से विभाग के ऊपर से लेकर नीचे तक के तमाम अफसर त्रस्त हैं ?
2 . इस विधानसभा सत्र में पहली बार नवनियुक्त मुख्य सचिव मौजूद रहेंगे । क्या इससे उनके सामने अधिकारियों के कारनामों के कुछ नए खुलासे होंगे ?








