मरवाही नेचर कैंप घोटाला फिर सुर्खियों में करोड़ों की अनियमितता दबाने में बड़े अफसरों की मिलीभगत के आरोप सीसीएफ ने कथित रूप से 40 लाख लेकर आरोप नस्ती किए, पीसीसीएफ श्रीनिवासन राव तक पहुँचा लेनदेन का खेल केंद्रीय स्तर पर शिकायत दर्ज

मरवाही नेचर कैंप घोटाला फिर सुर्खियों में करोड़ों की अनियमितता दबाने में बड़े अफसरों की मिलीभगत के आरोप सीसीएफ ने कथित रूप से 40 लाख लेकर आरोप नस्ती किए, पीसीसीएफ श्रीनिवासन राव तक पहुँचा लेनदेन का खेल केंद्रीय स्तर पर शिकायत दर्ज
मरवाही / रायपुर : – वन विभाग के इतिहास में सबसे चर्चित मरवाही नेचर कैम्प घोटाला एक बार फिर सुर्खियों में है। वर्ष 2022 में सदन से लेकर सचिवालय तक गूंजा यह मामला अब नए मोड़ पर पहुँच गया है। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, इस घोटाले में करोड़ों रुपये की वित्तीय अनियमितता को लेकर की गई प्रारंभिक जांच में कई अधिकारियों को दोषी पाया गया था, जिन पर विभागीय कार्रवाई भी हुई। लेकिन इस पूरे घोटाले के मुख्य सरगना रहे तत्कालीन उपवनमंडल अधिकारी (एसडीओ) संजय त्रिपाठी पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
जांच रिपोर्ट में नाम, पर कार्रवाई गायब –
6 मार्च 2023 को तत्कालीन प्रधान मुख्य वन संरक्षक (PCCF) ने प्रमुख सचिव (वन) को एक आधिकारिक पत्र भेजकर संजय त्रिपाठी को मुख्य दोषी बताते हुए करोड़ों की वसूली और अनुशासनात्मक कार्रवाई का प्रस्ताव दिया था। परंतु यह फाइल एक बड़े लेनदेन की वजह से ठंडे बस्ते में डाल दी गई। अब, जब यह मामला फिर सुर्खियों में आया है, तो कई चौंकाने वाले दस्तावेज सामने आए हैं, जिनसे यह संकेत मिलता है कि पूरे प्रकरण को CCF स्तर पर मोटी रकम लेकर दबा दिया गया।
सूत्रों के अनुसार 40 लाख में हुआ समाधान!
विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, उस समय क्षेत्रीय मुख्य वन संरक्षक (CCF) रहे प्रभात मिश्रा (जो अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं) ने संजय त्रिपाठी से कथित रूप से 40 लाख रुपये लेकर विभागीय स्तर पर आरोप पत्र जारी कर प्रतिवाद उत्तर प्राप्त करने और बाद में मामला नस्ती करने की प्रक्रिया पूरी कर दी। यानी, जिस IFS स्तर की जांच में करोड़ों की अनियमितता साबित हुई थी, उसे महज़ एक प्रतिवाद उत्तर के आधार पर क्लीन चिट दे दी गई।
प्रतिवाद उत्तर खुद बन गया सबूत –
मामले के दस्तावेजों का अध्ययन बताता है कि संजय त्रिपाठी का प्रतिवाद उत्तर ही उनके अपराध का सबसे बड़ा सबूत है। उसमें उन्होंने खुद यह स्वीकार किया है कि आहरण अनुमति और भुगतान प्रक्रिया उन्हीं के हस्ताक्षर से हुई जबकि वह उस समय न केवल रेंजर के रूप में कार्यरत थे, बल्कि एसडीओ और डीएफओ की भूमिका भी वे स्वयं निभा रहे थे। आहरण अनुमति से लेकर भुगतान तक हर दस्तावेज में उनके हस्ताक्षर मौजूद हैं।
फर्जी समिति के नाम पर करोड़ों का खेल –
घोटाले के दौरान एक फर्जी समिति बनाकर शासन की अनुमति के बिना वित्तीय लेनदेन किया गया। संजय त्रिपाठी ने अपने बचाव में प्रतिवाद उत्तर में लिखा है कि ऐसी कई समितियाँ शासन में संचालित हैं जो रजिस्टर्ड नहीं हैं, लेकिन वित्तीय लेनदेन करती हैं। इस बयान ने न केवल उनकी फर्जी समिति की पोल खोली, बल्कि पूरे शासन की समितियों को कटघरे में खड़ा कर दिया। विशेषज्ञों का कहना है कि अब यह आवश्यक हो गया है कि ऐसी सभी समितियों की भी उच्च स्तरीय जांच कराई जाए जिनके माध्यम से सरकारी राशि का लेनदेन होता रहा है।
पीसीसीएफ तक पहुँचा खेल, अब केंद्रीय जांच की मांग
मामले से जुड़े दस्तावेजों में यह भी सामने आया है कि सीसीएफ से लेकर पीसीसीएफ श्रीनिवासन राव तक भारी लेनदेन की रकम पहुँची। इसी कारण न केवल अनुशासनात्मक कार्रवाई रुकी, बल्कि पूरे प्रकरण को नस्ती घोषित कर दिया गया। इस मामले में अब केंद्रीय स्तर पर शिकायत दर्ज की गई है। शिकायतकर्ताओं ने पीसीसीएफ और सीसीएफ दोनों के खिलाफ विस्तृत दस्तावेज और साक्ष्य केंद्रीय मंत्रालय को भेजे हैं।
डीएफओ का अभिमत लिए बिना हुआ निस्तारण
गौरतलब है कि नियम के अनुसार, किसी भी अधिकारी पर अनुशासनात्मक कार्रवाई या प्रतिवाद उत्तर के निस्तारण से पूर्व संबंधित वनमंडलाधिकारी (डीएफओ) का अभिमत लिया जाना आवश्यक है। लेकिन इस मामले में बिना डीएफओ के अभिमत के ही सीसीएफ ने मनमाने ढंग से आरोप पत्र नस्ती कर दिया।
सीबीआई या आर्थिक अपराध अन्वेषण से जांच जरूरी –
अब स्थानीय स्तर पर और विभाग के भीतर से भी आवाज उठ रही है कि इस पूरे बहुचर्चित नेचर कैम्प घोटाले की जांच सीबीआई या आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (EOW) से कराई जाए। क्योंकि जब आईएफएस स्तर की जांच में दोष साबित हुआ, फिर करोड़ों का घोटाला अचानक कैसे गायब हो गया? इस प्रश्न का उत्तर केवल एक स्वतंत्र जांच ही दे सकती है। अब निगाहें केंद्र पर है शिकायतकर्ताओं ने यह भी दावा किया है कि उनके पास पूरा दस्तावेजी सबूत है, जिसमें सीसीएफ और पीसीसीएफ तक हुई वित्तीय अदायगी के साक्ष्य मौजूद हैं। फाइल, नोटशीट और प्रतिवाद उत्तर सभी अब केंद्रीय मंत्रालय के पास जांच के लिए पहुँचाए जा चुके हैं।
अब देखना यह है कि क्या मरवाही नेचर कैम्प घोटाले का सच आखिरकार सामने आ पाएगा या यह भी राज्य के बाकी नस्ती मामलों की तरह किसी फाइल के नीचे दब जाएगा।










