अफ़सर-ए-आ’ला (हर रविवार को सुशांत की कलम से)

अफ़सर-ए-आ’ला
(हर रविवार को सुशांत की कलम से)

अरुणोदय का रोड़ा बना राजिस्थान कनेक्शन-
लंबे समय से पुलिस महकमे में खींचतान मची हुई है और लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे है कि कौन होगा पूर्णकालिक पुलिस का मुखिया। 13 मई को दिल्ली में स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक के बाद षणयंत्र पूर्वक जो पत्ते काटे गए और लगभग एक सप्ताह बाद जिस तड़ातडी से फाइल का मूमेंट हुआ और दिल्ली फ्लाइट से कागज चला और एयरपोर्ट से कागज सीएस तक पहुँचा तो लगा कि उसी रात तक ही सब तड़फड़ होकर अगली सुबह राज्य में अरुणोदय हो जाएगा। मगर अरुणोदय से पहले ही राजिस्थान कनेक्शन ने सारा खेल बिगाड़ दिया , बताते है कि राजिस्थान लॉबी बिल्कुल नही चाहती कि प्रदेश में कानून व्यवस्था में अरुणोदय हो वह तो इस प्रयास में है कि ऐसा व्यक्ति इस कुर्सी में काबिज हो जिसकी पद्दोनती ही विवादास्पद है। तब तो तमाम शिकायतो के बाउजूद इन्हें न सिर्फ पद्दोन्नति मिली बल्कि इनके राजिस्थान कनेक्शन ने अरुणोदय को अस्तांचल में ढकेलने में भी लगभग सफल हो गए है। अब देखना यह है कि विवादों से घिरा हिम का अंशु सफल होता है या इससे कुछ हटके ही फैसला दिल्ली से आने की संभावना है। खैर चाहे जो हो मगर यह फैसला सरकार की आगे की दशा और दिशा तय करेगा।

राहत की बौछारें
छत्तीसगढ़ की भीषण गर्मी में पिछले दिनों बारिश ने दस्तक दी। इस बारिश में लोगों को राहत की कुछ बौछारें मिलीं। राहत की ये बौछारे अचानक बीते दो दिन पहले रायपुर जेल में बंद नौकरशाहों तक भी पहुंची। सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी शर्तों के साथ अंतरिम जमानत दी । शनिवार को जेल के पिछले दरवाजे से दो मेडम जी और सर जी बाहर निकले। सात दिन में छत्तीसगढ़ छोड़ने का आदेश है सर्वोच्च अदालत का। बेशक खुशी तो बनती है पर आशंका के साथ के कहीं दुबारा अंदर न जाना पड़े। मौसम से ये हालात बड़े मेल खा रहे हैं। अब देखिए जो बारिश हुई है वो राहत की बौछारें भी अंतरिम हैं और जमानत भी अंतरिम । है न गजब का मेल ।

परस्पर सीखने का खेल
मानव प्राणी की ये बड़ी कमजोरी है कि वो दुर्गुण जल्दी अपना लेता है और अच्छे गुण बड़ी मुश्किल से सीखता है। पिछली सरकार में बड़े बड़े खेल हुए। क्या माइनिंग ,क्या आबकारी ,क्या भारतमाला पूछिए ही मत। उसके बाद जीरो टॉलरेंस और सुशासन का नारा लेकर आई सरकार के कुछ आला या यूं कहिए कि सबसे आला अधिकारीगण भी पिछली सरकार के दुर्गुण जल्दी सीख गए। इन बड़े साहब लोगों ने पुरानी परिपाटी को नए अंदाज में अपनाया है। जो बदनाम विभाग थे उन्हें छोड़कर नए रास्ते खोल लिए हैं जिन पर किसी की नजर नहीं है ,जैसे मनचाहे औद्योगिक घराने को बढ़ाना , मनमानी को ऊपर का आदेश बताना। कहने का मतलब ये है कि छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी अपनी हदें पार कर रही है। भ्रष्टाचार में अंतरिम जमानत के आदेशों को समझिए सर जी जिसमें लिखा है कि आप छत्तीसगढ़ से बाहर रहेंगे यानी काडर से बाहर। इसलिए अपनी सीमाओं को समझ के रहना जरूरी है। समझने वाले पाठक सब कुछ समझ गए हैं।

भर्ती और सेवानिवृति सामान्य प्रक्रिया , मगर दिल है कि मानता नहीं
जब भ्रष्टाचार के खून का चस्का लग जाए और साथ ही बिग पावर आ जाए तो ये सोचना कि अपुन ही भगवान है कोई बड़ी बात नहीं होती। अब देखिए कि भरती और सेवानिवृति एक सामान्य प्रक्रिया है। लेकिन जब मनमानी फाइलें करवानी हो और कानून व्यवस्था अपने हाथ में ही रखना हो तो पावरफुल ब्यूरोक्रेट्स किसी भी स्तर तक खेल जाते हैं। बात हो रही है मुख्य सचिव के एक्सटेंशन और डीजीपी के नाम के सिलेक्शन की। क्या जरूरी है कि सब कुछ मनमाने ढंग से ही हो इसलिए तीन नाम का पैनल दो नाम का कर दीजिए ,मुख्य सचिव को एक्सटेंशन दिलवा दीजिए। जनाब ,भरती और सेवानिवृति को सामान्य प्रक्रिया मानते तो काम से काम रखते और शांति से रहते। ऐसी ऊटपटांग हरकतों के कारण कई अच्छे नौकरशाह काम करना बंद कर देते हैं। जब सरकार नियम से चलती है तो ही प्रशासनिक ढांचा सुरक्षित रहता है।
बूझे…?

रील मंत्री जी ऐसे नई चलेगा –
नेता अभिनेता कलाकारों के बाद मंत्री विधायक में इंस्टाग्राम रील का भूत जमकर सवार है। इन मंत्रियों ने बराबर पगार में दो तीन कैमरामैन रख रखा है जो मंत्री जी की सारी एक्टिविटी को कैप्चर करता उनके साथ घूमता रहता है। कुछ विधायक रोड सकड़ में घूमकर अधिकारियों को डांटते डपटते का वीडियो बना रहे है तो कोई मंत्री खेतो में बैठकर खाने की रील बनाने में मस्त है। मुये इस रील ने ही सारा खेल बिगाड़ा है 18 महीने में काम तो कुछ हुआ नही लेकिन रील में मंत्री जी जमकर वाइरल हो रहे है। 18 महीने का कार्यकाल कैसा रहा पूछो तो कहते है इंस्ट्राग्राम रील देखो। आज ही जब आप खबर पढ़ रहे है तो एक शहर कर वसूली से परेशान होकर शहर बंद कर विरोध प्रदर्शन कर रहा है। मगर मंत्री रील बना रहे है। साहेब यहाँ भात दाल ही खाते रह गए वहाँ नौकरशाहो ने पूरी मलाई ही चट कर डाली। पैसे रुपये वाला विभाग तो सिर्फ लूट का अड्डा बन गया है व्यापारी भी चीख चीख के कह रहा है वह चोर नही है असली चोर तो सिस्टम में बैठे है मगर साहेब है कि चोरों को ही शाह बनाये बैठे है। इन शाहों की कारगुजारियों पर नकेल कसिए साहेब अन्यथा तो जो बड़ा आदमी बना सकता है वह सब छीन भी सकता है।

यक्ष प्रश्न
1. क्या सुशासन तिहार के बाद कुछ बड़े परिवर्तन हो सकते हैं ?

2. कानून और व्यवस्था के किस मुख्य के दो बड़े बड़े कमरे पेंडिंग फाइलों से भरे हुए हैं ?

3 . अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी ने अपने किस शीर्ष अधिकारी को पर्याप्त धन देने का बयान जांच एजेंसियों को दिया है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *