अफ़सर-ए-आ’ला (हर रविवार को सुशांत की कलम से)

अफ़सर-ए-आ’ला
(हर रविवार को सुशांत की कलम से)
कैंसर पीड़ितों के लिए मंत्रियों का रवैया ज्यादा पीड़ादायक –
कर्क रोग यानी कैंसर से पीड़ित मरीजों खासकर निर्धन के दुःख दर्द को हर कोई समझ सकता है मगर छत्तीसगढ़ के मंत्री महसूस नहीं कर पा रहे हैं। पैट स्कैन कैंसर के मरीजों के इलाज के दौरान कई बार जरूरी होता है। रायपुर में एम्स ,संजीवनी और बालको कैंसर अस्पताल में ही ये सुविधा है। एम्स में एक माह के इंतजार के बाद छह हजार रु में और प्राइवेट में बाइस से पच्चीस हजार रु में ये स्कैन होता है। सन 2018 में रमन सरकार के स्वास्थ्य मंत्री ने एक पैट स्कैन मशीन मेकाहारा के रीजनल केयर सेंटर के लिए खरीदा। कुछ दिनों में सरकार बदल गई नए स्वास्थ्य मंत्री ने जाने किस कारण से भुगतान रोक दिया। भुगतान की फाइल वित्त विभाग में धूल खा रही है। सुशासन का नया दौर नया भारत और नया छत्तीसगढ़ भी उदित हो गया। मगर सात साल से मशीन चालू नहीं हुई। न जाने अब किस हालात में होगी। न जाने कितने कैंसर पीड़ित इस गैर जिम्मेदारान रवैया के चलते जीवन खो चुके होंगे। कई ने दिल पर पत्थर रखकर पैट स्कैन मंहगी दर पर कराया होगा। टेक्नोलॉजी भी आगे बढ़ गई है और मशीन वहीं की वहीं पड़ी है। अफसरों और पटवारियों की जिम्मेदारी तय करने वाली सरकार को चाहिए कि न केवल मशीन जल्द चालू करवाए बल्कि मंत्रियों की भी गैरजिम्मेदारी पर कार्यवाही करे। सुशासन सिर्फ नारों और बैनरों में नहीं बल्कि जमीन पर दिखाई दे।
पूर्णकालिक डीजीपी के लिए तीन तरफा फील्डिंग में लगे दावेदार
छत्तीसगढ़ को अगले माह तक पूर्णकालिक डीजीपी मिल जाएगा। इस रेस में वैसे तो चार आईपीएस का नाम है लेकिन महानदी भवन से लेकर नई दिल्ली तक की चर्चा के के मुताबिक पवन देव या जीपी सिंह में ही कशमकश है। दोनों आईपीएस सत्ता, संगठन और हाईकमान के समक्ष अपना पक्ष मजबूती से रखा है। वर्तमान में डीजीपी पद के लिए योग्यता जितना महत्वपूर्ण है उतना ही जरूरी सत्ता, संगठन और हाईकमान को एकसाथ साधना भी है। संगठन में भी दो ध्रुव है एक पार्टी संगठन तो दूसरा मातृ संस्था का संगठन। एक संगठन में पड़ोसी राज्य के नेता नीति निर्धारक है तो दूसरे में छत्तीसगढ़िया। जहां पवन देव पड़ोसी राज्य के नेता के माध्यम से दिल्ली में फील्डिंग कर रहें हैं वहीं जीपी सिंह छत्तीसगढ़ के नेता और अधिकारियों के माध्यम से अपना पक्ष रख रहें हैं। समस्या कितनी भी बड़ी क्यों न हो हार न मानने का दृढ़संकल्प जीपी सिंह का मजबूत पक्ष है। तीन साल सरकार के षड्यंत्र से लड़कर जीत हासिल करना उनकी इच्छा शक्ति को भी दर्शाता है। विभागीय सूत्र यह भी बताते है कि आज राज्य सरकार और देश के गृहमंत्री जिस नक्सल मुक्त छत्तीसगढ का सपना लिए बैठे है इसमे जीपी सिंह को विशेषज्ञता हासिल है जिसका उदाहरण है बस्तर , राजनांदगांव , बालाघाट और कवर्धा में इन्होने नक्सल उन्मूलन के लिए बेहतर काम किया है। जिसका परिणाम है कि कवर्धा आज नक्सल मुक्त होकर मूल धाराओं से जुड़ चुका है। इस लिहाज से भी जीपी सिंह का पक्ष ज्यादा मजबूत नजर आता है। बहरहाल कुछ दिनों में पता चल जाएगा कि तीन ध्रुवों के बीच संतुलन किसने बिठाया है।
मंत्रालय की रौनक अफसरों से या मंत्रियों से –
सुशासन की साय सरकार ने डिजिटल मंत्रालय चालू कर दिया। समय पर आमद भी तय कर दी लेकिन सरकार के मंत्री पुरानी कांग्रेस सरकार की ही तर्ज पर चल रहे हैं। सरकार बने 18 माह से अधिक समय हो गया है पर एक भी मंत्री 18 माह में 18 दिन भी मंत्रालय में नहीं बैठे। सभी ने दो बंगले कब्जे में कर रखे हैं। मीटिंग्स के लिए बंगले और पुराना रायपुर में ठिकाने बना रखे हैं । अफसर मंत्रालय में रहते हैं। कितनी भी ई फाइल हो मगर सीधे चर्चा की बात और होती है जिसमें निर्णय होते हैं। अफसरों को पुराना रायपुर और नए रायपुर के बीच चक्कर लगाना पड़ता है। जरा सोचिए कि अगर हर मंत्री तय कर लें कि वो हफ्ते में कम से कम तीन दिन सुबह से शाम मंत्रालय में बैठेंगे तो सुशासन आ जाएगी। केवल 5 मिनिट की दूरी पर मंत्री जी,मंत्रालय और इंद्रावती भवन होंगे। आज कहने मात्र को महानदी भवन को मंत्रालय कहते हैं मगर मंत्री के कमरे के आलों से रोशनी बेहद कम ही नजर आती है। महानदी भवन की रौनक मंत्री जी से ही होगी जिन्हें समझना होगा कि उन्होंने ही इसे बनाया है तो वे ही संवारेंगे। वरना मंत्रालय तो बन गया पर मंत्री जी वहां नज़र नहीं आते। ये तो वो ही मिसाल हुई कि मुर्गा भी जान से गया और खानेवाले को मज़ा भी नहीं आया।
फर्जी नियुक्त घोटलेबाज आज मंत्री का पीए –
प्रदेश में खान-पान विभाग के माननीय ऐसे व्यक्ति को अपना पीए बनाया हुआ है जिसकी नियुक्ति ही फर्जी तरीके से हुई है। दरअसल 2012 में सहायक प्रबंधक की भर्ती के लिए विज्ञापन जारी हुए थे इस विज्ञापन में जो अहर्ताएं थी उसमे आयु सीमा 35 वर्ष की थी। इस पद में जिसकी नियुक्ति हुई उनका नाम संतोष अग्रवाल है जिनका जन्म 1976 का है जब 2012 में भर्ती हुई तब इनकी उम्र 36 वर्ष हो गई थी। मतलब भर्ती के लिए जो अहर्ता थी अभ्यर्थी उन अहर्ताओं की पूर्ति नही करता था। बताते है कि उस समय संतोष ने नियुक्ति के लिए खूब धन वर्षा की। तब से लेकर जब भी इनकी शिकायत हुई इन्होंने लक्ष्मी की कृपा सबका मुँह बंद कर दिया और जमकर घोटाला किया। वर्तमान में यह सेटर माननीय सबसे विश्वासपात्र अधिकारी पीए है , बताते हैं इस पद के लिए भी इसने खूब दक्षिणा चढ़ाई है तब जाके माननीय की कृपा इन पर बरसी। अब यह माननीय के कितने विश्वासपात्र है यह तो समय बताएगा। माननीय जरा संभलकर चढ़ावे की सीढ़ी चढ़कर यहाँ तक पहुँचने वाला यह मुलाजिम अपनी होशियारी से पहले ही पिता और पुत्र में भी दूरी बनवा चुका है। अब इसकी वसूली और घोटाले की छीटों कही आप भी दागदार मत हो जाइयेगा।
फॉर्च्यूनर का क्रेज –
फार्च्यूनर का क्रेज मंत्री तो मंत्री विधायको के सर चढ़कर बोल रहा है। विधायक भी फार्च्यूनर के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। तीन नामों का एक जिला है। एक नाम विधानसभा सीट का है जहाँ सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद पहले सरपंच बने उसके बाद अब वे विधायक है। अविभाजित मध्यप्रदेश के बाद यह सीट पहली बार भाजपा के खेमे में आई है। अब विधायक जी सरल सौम्य थे अपनी स्कार्पियो में घुमा करते थे। विधायक को बाद एक प्राधिकरण भी मिल गया। इस प्राधिकरण में बजट अच्छा खासा था तो क्षेत्र के ठेकेदारों और व्यवसायियों ने विधायक जी को लहाना शुरू किया और उन्हें विलासिताओ के सपने दिखाए और तो और फार्च्यूनर में घुमाते हुए इसकी लक्ज़रियास के बारे में गुणगान बताया। विधायक जी भी विलासिता में मोहा गये और प्राधिकरण से लेकर विधायक निधि मद के सभी कामों का 15 से 20 % फिक्स कर दिए। बताते है कि एक बार के कमीशन की रकम में ही फार्च्यूनर आ गई। अब विधायक जी फार्च्यूनर में फर्राटा मारते घूम रहे है। उनके विधानसभा के कार्यकर्ता और जनता साहेब के इस बदलाव को देख रही है और साहेब है कि दूसरे विधानसभा वालो के आगे पीछे नतमस्तक है। खैर हो भी क्यों न जो मजा फार्च्यूनर में है अब वो मजा स्कॉर्पियो में कहा है।
ऐसा भाजपा में ही हो सकता है –
1984 के समय एससी-एसटी पदों के विरुद्ध पंचायत विभाग में भर्ती हुई थी। उस समय हरिओम शर्मा सब इंजीनियर के रूप में पदस्थ किये गए थे। जिनकीं भर्ती आरक्षित वर्ग के विरुद्ध की गई थी जिसमे शर्त यह थी कि जैसे ही योग्य व्यक्ति मिल जाएंगे इनकी सेवा स्वमेव समाप्त कर दी जाएगी। आगे योग्य व्यक्ति मिलते रहे और इनकी सेवा आज पर्यंत तक चलती रही। वर्ष 2005 तक यह तदर्थ रूप से सब इंजीनियर के पद रहे इनके साथ के लोग आज भी एसडीओ तक ही पहुँच पाए है। मगर शर्मा जी आरक्षित सीट से भर्ती के बाद पद्दोनती के शिखर पर चढ़ते गए। पहले एसडीओ फिर सुपरिटेंडेंट इंजीनियर आज यह बिना अनुमति के एनआरडीए के चीफ इंजीनियर सहित कई अन्य महत्वपूर्ण पदों पर आसीन है। उधर विभागीय जांच चलती रहेगी और साहब सेवानिवृत्त हो जाएंगे। ऐसा भाजपा शासन में संभव माना जाता है। अब यह शर्मा जी जो किसी अन्य राज्य से ताल्लुकात रखते है वह खुद को सत्ता संगठन का भी करीबी बताते है। कहते है सत्ता संगठन का हाथ इनके सर पर है, अब साहेब आपकी नियुक्ति ही फर्जी तरीके से हुई है इसमे सत्ता संगठन का धौस दिखाना कहा तक लाजमी है। सत्ता संगठन का करीबी होने का यह तो मतलब नही की आप कुछ भी कर जाएंगे। बहरहाल सत्ता संगठन को इस ओर ध्यान देना चाहिए और ऐसे लोगो से दूरी बनानी चाहिए ताकि लोग जो कहते है भाजपा सरकार में ही ऐसा हो सकता है वह सत्य साबित हो जाएगा। साथ ही इनकी भर्ती से लेकर पद्दोनती की जांच भी कराई जानी चाहिए ताकि यह स्पष्ट हो कि क्या शासन को 40 साल बाद भी योग्य आरक्षित व्यक्ति नही मिल पाया है।
यक्ष प्रश्न
1 क्या हाउसिंग बोर्ड शासकीय सफेद हाथी बन गया है ?
2 साय सरकार के कितने मंत्रियों के गुपचुप आलीशान बंगले रायपुर में बन रहे हैं ?








