विवादित मबावि संचालक सुरेंद्र चौबे पर प्रताड़ना और नियमो की अनदेखी का आरोप , पहले भी कई आरोपो में जांच लंबित

विवादित मबावि संचालक सुरेंद्र चौबे पर प्रताड़ना और नियमो की अनदेखी का आरोप ,
पहले भी कई आरोपो में जांच लंबित

रायपुर : – महिला बाल विकास विभाग के राज्य संसाधन केंद्र के संचालक सुरेंद्र चौबे का नाम एक बार फिर विवादों में आ गया है यह वही अधिकारी है जिनपर पहले भी आँगन बॉडी कार्यकर्ताओ को बंटने वाले 18536 मोबाइल खरीदी को अमानक बताने का आरोप लग चुका है जिसमे उच्च स्तरीय जांच में सभी मोबाइल सही पाए गए थे जिसमें तत्कालीन संयुक्त संचालक सुरेंद्र चौबे पर अनाधिकृत लैब से जांच कराए जाने का दोष सिद्ध पाया गया था . मामला वर्तमान में न्यायालय में लंबित है

पद और अधिकारों का दुरुपयोग किया चौबे ने : –

महिला बाल विकास विभाग के राज्य संसाधन केंद्र के संचालक सुरेन्द्र कुमार चौबे के विरूद्ध अपने पद व अधिकारों का दुरुपयोग करने का गंभीर आरोप लगा है जिसकी विस्तृत दस्तावेजी प्रमाणो के साथ शिकायत भी की गई है . आरोप है कि संचालक सुरेंद्र चौबे अपने शासकीय वाहन से दुर्ग स्थित अपने घर से रायपुर कार्यालय प्रतिदिन आना जाना करते थे जबकि उनका मुख्यालय रायपुर है फिर भी चौबे ने अपने पद नियमो को ताक में रखते हुए रायपुर न रुककर दुर्ग जिले से आनाजाना किया और HR हाउसिंग रेंट भी लेते रहते थे इतना ही नही चौबे को उपसंचालक तथ्यों को छुपाकर पदोन्नत किये जाने से संबंधित फाईल मंत्रालय से गायब की गई थी जिसकी भी शिकायत की गई है .

महिला बाल विकास की उपसंचालक ने भी लगाए गंभीर आरोप : –

शिकायत के इस क्रम में महिला बाल विकास की उपसंचालक राज्य स्तरीय संसाधन केंद्र वर्तमान में सेवानिर्वित हेमलता मिश्रा ने नियमो का हवाला देते हुए शिकायत की है और बताया कि किस तरह से संचालक सुरेंद्र चौबे व्यक्तिगत दुश्मनी और प्रताड़ित करने की नियत से माननीय न्यायालय के आदेश को भी दरकिनार कर रहे है . शिकायत में बताया गया कि उनके सेवानिर्वित हुए लगभग 10 दिनों से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी नियमतः देय किसी भी स्वत्व का भुगतान नही किया है . जबकि माननीय हाई कोर्ट ने निर्देशानुसार सेवानिर्वित हित लाभ का भुगतान उनकी सेवानिर्वित तिथि को ही किया जाना चाहिए था . छतीसगढ़ सिविल सेवा (पेंशन ) नियम 1976 के प्रावधानों के प्रावधानो का कठोरता से पालन कराए जाने का निर्देश है जिसकी समीक्षा हेतु समिति का गठन भी किया गया है . शासन द्वारा यह कार्रवाई माननीय उच्च न्यायालय बिलासपुर द्वारा दिनांक 17.02.2017 को पारित निर्णय की कंडिका 14(3) के आलोक में सपन्न की गयी है . नियमानुसार सेवा निवृति के प्रकरणों में न मांग न जांच प्रमाण पत्रों को निर्धारित समय-सीमा में जारी करने के निर्देश दिये गये है किन्तु सेवानिर्वित के 10 दिनों के बाद भी प्रमाण पत्रों के जारी होने की सूचना नही दी गई .

मामले को लेकर उपसंचालक हेमलता मिश्रा ने मुख्यसचिव को शिकायत की है जिसमे चौबे पर माननीय न्यायालय के नियमो की अनदेखी और व्यक्तिगत दुश्मनी या कहिए प्रताड़ित करने की नियत से सेवा निवृत्त होने के बाद भी परेशान किया जा रहा है

महत्वपूर्ण है कि ऐसे विवादास्पद अधिकारी जो अपने मूल कर्तव्यों को छोड़ हर अनैतिक कार्यो में लगे है उनपर शासन का ध्यानाकर्षण जरूरी है महज एक साल बनी भाजपा की सरकार ऐसे विवादित अधिकारियों की करतूतों की वजह से ही आज कटघरे में खड़ी है इसपर जरूरी हो जाता है कि ऐसे अधिकारियों को सेवा से पृथक कर इनके पूरे कार्यकाल की विस्तृत उच्च स्तरीय जांच कराई जाए ताकि राज्य की जनता को पता चल सके कि ऐसे भ्रष्ट अधिकारी कैसे अपने पद का दुरुपयोग करते हुए सिर्फ अपना घर की जुगत में लगे रहते है .

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